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हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव अधिनियम, 2006

  • 14 Nov 2024
  • 3 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (HP HC) ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियाँ, विशेषाधिकार और संशोधन) अधिनियम, 2006 को रद्द कर दिया है, जिसके तहत राज्य सरकार को विधानसभा सदस्यों (MLAs) को मुख्य संसदीय सचिव (CPS) के रूप में नियुक्त करने की शक्ति दी गई थी।

  • न्यायालय ने फैसला दिया कि HPPSA, 2006 राज्य विधानमंडल की विधायी क्षमता से परे है, जिससे यह कानून असंवैधानिक हो जाता है।
  • HPPSA, 2006 से अनुच्छेद 164 (1-A) का उल्लंघन होता है, जिसके तहत कैबिनेट का आकार और उसकी संरचना सीमित की गई है।
    • अनुच्छेद 164 (1-A) के अनुसार किसी राज्य में मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या 15% से अधिक नहीं होगी।
  • न्यायालय ने कहा कि CPS द्वारा औपचारिक शक्तियों के अभाव के बावजूद मंत्रियों के समान कार्य करने के साथ समान सुविधाएँ, सरकारी फाइलों तक पहुँच और निर्णय लेने में भागीदारी का लाभ उठाया।
  • इसके अतिरिक्त "लाभ के पद" के तहत सार्वजनिक पद धारकों को अतिरिक्त लाभ प्राप्त करने के क्रम में अपने पद का उपयोग करने से रोका गया है। संवैधानिक प्रावधान द्वारा समर्थित न होने पर CPS जैसे पदों का सृजन इसका उल्लंघन है।
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि मंत्रियों और संसदीय सचिवों के बीच अंतर आभासी होने के साथ संवैधानिक नियमों के विरुद्ध है।
  • हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने सरकार को CPS नियुक्तियाँ तुरंत समाप्त करने तथा इनके सभी संबंधित विशेषाधिकार रद्द करने का आदेश दिया।
  • इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल, पंजाब, गोवा और असम जैसे राज्यों में संसदीय सचिव के पदों के सृजन को लगातार असंवैधानिक करार देते हुए मंत्रिपरिषद में 15% की अधिकतम सीमा का हवाला दिया है।

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