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हिमालयी गिद्ध: जिप्स हिमालयेंसिस

  • 07 Aug 2023
  • 7 min read

हाल ही में गुवाहाटी में असम राज्य चिड़ियाघर ने भारत में पहली बार कैद में दुर्ग्राह्य हिमालयी गिद्ध (जिप्स हिमालयेंसिस) का सफलतापूर्वक प्रजनन कराकर एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है।

  • इसके अतिरिक्त केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक के विरचन, विक्रय और वितरण पर रोक लगाने के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के निर्णय ने गिद्ध संरक्षणवादियों और विशेषज्ञों में एक उम्मीद जगाई है।

हिमालयी गिद्ध के विषय में :

  • संरक्षण की स्थिति:
  • विशेषताएँ:
    • विश्व के प्राचीनतम एवं सबसे बड़ी गिद्ध प्रजातियों में से एक हिमालयी गिद्ध के डैने विशालकाय और दुर्जेय होते हैं।
    • इनके पंखों पर काले और भूरे रंग की प्रधानता होती है, जो ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाकों में इन्हें स्वयं को छिपाने में मदद करती है।
    • मज़बूत व मुड़ी हुई चोंच और गहन दृष्टि की विशेषता के कारण गिद्ध, पर्यावरण के सबसे कुशल अपमार्जक होते है, जो सड़े-गले जैविक पदार्थों (विशेषकर मृत जीवों) को खाकर पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • पर्यावास एवं क्षेत्र:
    • हिमालयी गिद्ध का नाम उपयुक्त है, क्योंकि यह मुख्य रूप से हिमालय पर्वत शृंखला की ऊँची चोटियों एवं घाटियों में निवास करता है।
      • यह भारतीय मैदानी क्षत्रों में होने वाला एक सामान्य शीतकालीन प्रवासी है।
    • इसका वितरण भारत, नेपाल, भूटान तथा चीन सहित कई देशों में हैं, जहाँ यह कठिन ऊँचाई वाली परिस्थितियों में फलता-फूलता है।
  • पारिस्थितिकीय महत्त्व:
    • एक शीर्ष शिकारी और सफाईकर्मी के रूप में हिमालयी गिद्ध जानवरों के अवशेषों का कुशलतापूर्वक निपटान करके अपने आवास के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • इसकी सफाई की प्रवृत्ति उन बीमारियों के प्रसार को रोकने में सहायता करती है जो सड़े-गले शवों के कारण उत्पन्न हो सकती हैं, इस प्रकार यह पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र संतुलन में योगदान करता है।
  • चुनौतियाँ तथा संरक्षण के प्रयास:
    • बर्फ से ढके पहाड़ों में घोंसला बनाने की इसकी मूल प्रवृत्ति के कारण हिमालयी गिद्ध को कैद में प्रजनन करने से जटिलताएँ उत्पन्न हुई हैं।
    • चिड़ियाघर में सफल प्रजनन लंबे समय तक कैद में रहने तथा उष्णकटिबंधीय वातावरण में अनुकूलन के माध्यम से संभव हो सका।
    • निवास स्थान की हानि, भोजन की कमी एवं पशु चिकित्सा दवाओं के कारण विषाक्तता जैसे कारकों ने इसकी संख्या में गिरावट लाने में योगदान दिया है।
    • संरक्षण प्रजनन केंद्र, जैसे कि रानी, असम गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र (VCBC), गिद्ध प्रजातियों की सुरक्षा प्रदान करने में सहायक है।

केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक का गिद्धों पर प्रभाव:

  • केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक दो प्रकार की नॉन-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएँ (NSAIDs) हैं जिनका उपयोग पशुओं (विशेषकर मवेशियों में दर्द और सूजन) के इलाज के लिये किया जाता है।
  • इन दवाओं को गठिया, चोटों और सर्जरी के बाद दर्द के उपचार लिये दिया जाता है।
  • जब गिद्ध इन दवाओं से उपचारित पशुओं के शवों को खाते हैं तो गिद्धों में गुर्दे की विफलता और मृत्यु होने की संभावना बढ़ने के कारण ये दवाएँ गिद्धों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक पाई गई हैं।

भारत में गिद्धों की प्रजातियाँ:

क्रम संख्या

गिद्ध प्रजाति

IUCN स्थिति

चित्रण

1.

ओरिएंटल वाइट-बैक्ड वल्चर (Gyps bengalensis)

अतिसंकटग्रस्त (Critically Endangered)

2.

स्लेंडर-बील्ड वल्चर (Gyps tenuirostris)

अतिसंकटग्रस्त

3.

लॉन्ग बील्ड वल्चर (Gyps indicus)

अतिसंकटग्रस्त

4.

इजिप्शियन वल्चर (Neophron percnopterus)

संकटग्रस्त (Endangered)

5.

रेड हेडेड वल्चर (Sarcogyps calvus)

अतिसंकटग्रस्त

6.

इंडियन ग्रिफॉन वल्चर (Gyps fulvus)

कम चिंतनीय (Least Concerned)

7.

हिमालयन  ग्रिफॉन (Gyps himalayensis)

लुप्तप्राय (Near Threatened)

8.

सिनेरस वल्चर (Aegypius monachus)

लुप्तप्राय

9.

बियर्डेड वल्चर/लैमरगियर (Gypaetus barbatus)

लुप्तप्राय

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. कुछ वर्ष पहले तक गिद्ध भारतीय देहातों में आमतौर पर दिखाई देते थे, किंतु आजकल कभी-कभार ही नज़र आते हैं। इस स्थिति के लिये उत्तरदायी है: (2012)

(a) नवीन प्रवेशी प्रजातियों द्वारा उनके नीड़ स्थलों का नाश।
(b) गोपशु मालिकों द्वारा रुग्ण पशुओं के उपचार के लिये प्रयुक्त औषधि।
(c) उन्हें मिलने वाले भोजन में आई कमी।
(d) उनमें हुआ व्यापक, दीर्घस्थायी तथा घातक रोग।

उत्तर: (b)

स्रोत: द हिंदू

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