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गुरु पद्मसंभव

  • 30 Aug 2024
  • 2 min read

स्रोत: पी.आई.बी.

नालंदा, बिहार में गुरु पद्मसंभव के जीवन और जीवंत विरासत पर दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसका आयोजन अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (International Buddhist Confederation- IBC) एवं नव नालंदा महाविहार द्वारा किया गया था।

  • यह कार्यक्रम गुरु पद्मसंभव द्वारा बौद्ध शिक्षाओं को स्थानीय संस्कृतियों और परंपराओं के अनुकूल बनाने पर केंद्रित था।
  • गुरु पद्मसंभव, जिन्हें गुरु रिनपोछे के नाम से भी जाना जाता है, 8वीं शताब्दी के एक ऋषि थे, जिनकी शिक्षाओं ने हिमालय क्षेत्र में बुद्ध धम्म के प्रसार को महत्त्वपूर्ण आयाम दिया। उन्हें दूसरा बुद्ध माना जाता है। 
  • तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापकों में से एक गुरु पद्मसंभव 749 ई. में तिब्बत में प्रकट हुए थे। अन्य दो संस्थापक आचार्य शांत रक्षित और राजा थिसोंग देओत्सेन थे।
    • तिब्बती बौद्ध धर्म भारत के महायान बौद्ध धर्म का वज्रयान (तांत्रिक) रूप है।
  • न्यिंगमा संप्रदाय की शिक्षाएँ पद्मसंभव पर आधारित हैं। शिक्षाओं को नौ यानों में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें ज़ोग्चेन (महा पूर्णता) सबसे महत्त्वपूर्ण है।
    • ज़ोग्चेन ध्यान के माध्यम से परम चेतना पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि वज्रयान परंपरा में निर्वाण प्राप्त करने के लिये अनुष्ठान, प्रतीक और तांत्रिक अभ्यास शामिल हैं।
  • IBC नई दिल्ली में स्थित एक बौद्ध संस्था है जो विश्व भर के बौद्धों के लिये एक साझा मंच के रूप में कार्य करती है। वर्तमान में 39 देशों के 320 से अधिक संगठन इसके सदस्य हैं।

और पढ़ें: भारत में बौद्ध धर्म

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