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गोल्डन लंगूर

  • 05 Feb 2022
  • 6 min read

असम के ग्रामीण लोग एक ‘गोल्डन लंगूर आवास’ के लिये अभयारण्य के टैग का विरोध कर रहे हैं।

Golden-Langur

विवाद:

  • असम वन विभाग ने 19.85 वर्ग किलोमीटर के जंगल को ‘ककोइजना बामुनी हिल वन्यजीव अभयारण्य’ में परिवर्तित करने हेतु एक प्रारंभिक अधिसूचना जारी की थी।
    • काकोइजना रिज़र्व फॉरेस्ट’ गोल्डन लंगूर के लिये काफी प्रसिद्ध है।
  • ग्रामीणों ने मांग की है कि ‘वन्यजीव अभयारण्य के पारंपरिक विचार’ को छोड़ दिया जाए और वन अधिकार अधिनियम, 2006 का उपयोग कर आरक्षित वन को एक सामुदायिक वन संसाधन में परिवर्तित कर दिया जाए, ताकि स्थायी संरक्षण के लिये भागीदारी की सामुदायिक सह-प्रबंधित प्रणाली सुनिश्चित की जा सके।
    • ग्रामीणों ने बताया कि स्थानीय लोगों के संरक्षण प्रयासों ने संबंधित अधिकारियों को लगभग तीन दशकों में वन की कैनोपी को 5% से 70% तक ले जाने और ‘गोल्डन स्वर्ण लंगूर’ की आबादी को 100 से 600 तक बढ़ाने में मदद की है। 

वन्यजीव अभयारण्य, आरक्षित वन और सामुदायिक वन संसाधन में अंतर:

  • वन्यजीव अभयारण्य: यह वह स्थान है जो विशेष रूप से वन्यजीवों के उपयोग के लिये आरक्षित होता है, जिसमें जानवर, सरीसृप, कीड़े, पक्षी आदि मौजूद होते हैं। इसका उद्देश्य वन्यजीवों को एक ऐसा स्थान प्रदान करना है, जहाँ वे जीवन भर अपनी आबादी को व्यवहार्य बनाए रखें।
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 केंद्र और राज्य सरकारों को किसी भी क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने का अधिकार देता है।
  • आरक्षित वन: आरक्षित वन सबसे अधिक प्रतिबंधित वन हैं और किसी भी वन भूमि या बंजर भूमि पर जो कि सरकार की संपत्ति है, राज्य सरकार द्वारा गठित किये जाते हैं। आरक्षित वनों में किसी वन अधिकारी की विशेष अनुमति के बिना स्थानीय लोगों की आवाजाही निषिद्ध होती है।
  • सामुदायिक वन संसाधन: वन अधिकार अधिनियम की धारा 2 (a) के अनुसार, यह गाँव की पारंपरिक या प्रथागत सीमाओं के भीतर प्रचलित सामान्य वन भूमि में मौजूद संसाधन हैं जहाँ वन और संरक्षित क्षेत्र जैसे- अभयारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान तक समुदायों की पारंपरिक पहुँच थी।

गोल्डन लंगूर के बारे में:

  • वैज्ञानिक नाम: ट्रेचीपिथेकस गी (Trachypithecus geei)
  • गोल्डन लंगूरों को उनके फर के रंग के आधार पर पहचाना जा सकता है, जिसके बाद उनका नाम रखा जाता है।
    • यह देखा गया है कि उनके फर मौसम के साथ-साथ भूगोलिक स्थिति (वे जिस क्षेत्र में रहते हैं) के अनुसार रंग बदलते हैं।
    • युवास्था में उनका रंग भी वयस्कों से भिन्न होता है क्योंकि वे लगभग शुद्ध सफेद होते हैं।
    • वे जंगलों में अपर कैनोपी (upper canopy) वाले पेड़ों पर अत्यधिक निर्भर होते हैं। इन्हें लीफ मंकी के नाम से भी जाना जाता है।
  • पर्यावास: यह पश्चिमी असम और भारत-भूटान की सीमा से सटे इलाकों में पाया जाता है।
    • उनका आवास चार भौगोलिक स्थलों से घिरे क्षेत्र तक ही सीमित है: भूटान (उत्तर), मानस नदी (पूर्व), संकोश नदी (पश्चिम), और ब्रह्मपुत्र नदी (दक्षिण) की तलहटी।
  • खतरा:
    • प्रतिबंधित आवास: जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, उनके आवास प्राकृतिक सीमाओं द्वारा प्रतिबंधित हैं और वे विलुप्त होने के खतरे की ओर बढ़ रहे हैं।
    • पर्यावास विखंडन: विशेष रूप से ग्रामीण विद्युतीकरण और बड़े पैमाने पर वनों की कटाई पर के बाद असम में उनका आवास काफी हद तक खंडित हो गया है।
    • इनब्रीडिंग: पेड़ों की कटाई के कारण घने जंगलों की कमी जैसे अवरोधों ने गोल्डन लंगूरों में इनब्रीडिंग के खतरे को बढ़ा दिया है
  • संरक्षण के प्रयास:
    • केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, नई दिल्ली ने 2011 में असम में स्वर्ण लंगूर के संरक्षण, प्रजनन के लिये राज्य के चिड़ियाघर को एक परियोजना सौंपी।
    • वर्ष 2009 में असम में इनकी अनुमानित संख्या 5,140 थी। कोविड-19 लॉकडाउन के कारण 2020 में जनगणना पूरी नहीं हो सकी।
  • संरक्षण स्थिति:

स्रोत: द हिंदू

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