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देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति

  • 08 Nov 2021
  • 3 min read

हाल ही में कनाडा से एक सदी से अधिक समय के बाद देवी अन्नपूर्णा की एक प्राचीन मूर्ति को भारत वापस लाया गया।

  • यह मूर्ति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा प्राप्त की गई है। इसे इसके मूल स्थान काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित किया जाएगा।
  • इस मूर्ति की देश से बाहर तस्करी वर्ष 1913 के आसपास की गई थी।

Goddess-Annapurna-Idol

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • देवी अन्नपूर्णा: यह अन्न की देवी हैं। इन्हें देवी पार्वती की अभिव्यक्ति के रूप में भी जाना जाता है।
      • मूर्ति के एक हाथ में एक कटोरी (जिसमें खीर भरी हुई है) और दूसरे हाथ में एक चम्मच उपस्थित है।
    • बनारस शैली: बनारस शैली में उकेरी गई 18वीं शताब्दी की मूर्ति, कनाडा के रेज़िना विश्वविद्यालय में मैकेंज़ी आर्ट गैलरी में संग्रह का हिस्सा थी।
      • वाराणसी, जिसे बनारस, या काशी या कासी के नाम से भी जाना जाता है, उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध एवं पवित्र शहर है। वाराणसी की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा इसे भारत की सांस्कृतिक राजधानी बनाती है।
  • काशी विश्वनाथ मंदिर: यह भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है।
    • यह वाराणसी, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
    • यह मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है और बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिन्हें शिव मंदिरों में सबसे पवित्र माना जाता है।
    • इसका निर्माण वर्ष 1780 में मराठा साम्राज्य के दौरान, इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया था।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)

  • संस्कृति मंत्रालय के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, पुरातात्विक अनुसंधान और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये एक प्रमुख संगठन है।
  • यह 3650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
  • इसकी गतिविधियों में पुरातात्विक अवशेषों का सर्वेक्षण, पुरातात्विक स्थलों की खोज और उत्खनन करना, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण और रख-रखाव आदि शामिल हैं।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1861 में इसके पहले महानिदेशक ‘अलेक्ज़ेंडर कनिंघम’ ने की थी। ‘अलेक्ज़ेंडर कनिंघम’ को ‘भारतीय पुरातत्व के पिता’ के रूप में भी जाना जाता है।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ‘प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958’ के प्रावधानों के तहत कार्य करता है।
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