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सौर ऊर्जा उत्पादन और वनाग्नि

  • 27 Apr 2022
  • 3 min read

आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्ज़र्वेशनल साइंसेज़ (ARIES) और नेशनल ऑब्ज़र्वेटरी ऑफ एथेंस (NOA), ग्रीस के एक नए अध्ययन में पाया गया है कि वनाग्नि भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन को कम कर सकती है।  

  • वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के लिये रिमोट सेंसिंग डेटा का इस्तेमाल करते हुए मॉडल सिमुलेशन और गहन विश्लेषण के साथ भारतीय क्षेत्र में सौर ऊर्जा क्षमता पर एरोसोल व बादलों के प्रभाव का अध्ययन किया।
  • सौर ऊर्जा प्रणाली के बड़े पैमाने पर विकास के लिये उचित योजना और सौर क्षमता का अनुमान लगाने की आवश्यकता होती है।

वनाग्नि

  • इसे झाड़ी या वनस्पति की आग या जंगल की आग भी कहा जाता है, इसे किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन या प्राकृतिक व्यवस्था जैसे कि जंगल, घास के मैदान, ब्रश भूमि या टुंड्रा में पौधों के जलने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो प्राकृतिक ईंधन की खपत करता है तथा पर्यावरण की स्थिति के आधार पर फैलता है। (जैसे, हवा, स्थलाकृति)।
  • वनाग्नि की घटनाओं में मानव गतिविधियों, जैसे- भूमि की सफाई, अत्यधिक सूखा या दुर्लभ मामलों में बिजली गिरने से वृद्धि होती है।
  • वनाग्नि  के लिये तीन स्थितियों की आवश्यकता होती है: ईंधन, ऑक्सीजन और ऊष्मा स्रोत।

अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष:

  • विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न बादल, एरोसोल और प्रदूषण जैसे कई कारक सौर विकिरण को सीमित करते हैं जिससे फोटोवोल्टिक तथा केंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्र प्रतिष्ठानों के समक्ष उनके कार्य प्रदर्शन संबंधी समस्याएंँ उत्पन्न होती हैं।  
  • बादलों और एरोसोल के अलावा वनाग्नि सौर ऊर्जा उत्पादन को कम करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • वर्तमान अध्ययन के निष्कर्ष देश स्तर पर ऊर्जा प्रबंधन और योजना पर वनाग्नि के प्रभाव के बारे में निर्णय लेने वालों के बीच जागरूकता में वृद्धि करेंगे। 
  • इसके अलावा यह शोध जलवायु परिवर्तन के लिये शमन प्रक्रियाओं एवं नीतियों व सतत् विकास पर इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों के अध्ययन में सहायता कर सकता है। 
  • सौर संयंत्रों के उत्पादन पर वनाग्नि के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों के कारण ऊर्जा और वित्तीय नुकसान के इस तरह के विश्लेषण से ग्रिड ऑपरेटरों को बिजली उत्पादन की योजना बनाने तथा शेड्यूल करने में मदद मिल सकती है, साथ ही बिजली उत्पादन के वितरण, आपूर्ति, सुरक्षा और समग्र स्थिरता में भी मदद मिल सकती है। 

स्रोत: पी.आई.बी.

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