फ्लोराइड संदूषण | 08 Apr 2025
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के भूजल में फ्लोराइड की अधिकता के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बढ़ गया है।
- फ्लोराइड: यह एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील तत्त्व है जो प्रकृति में तात्त्विक रूप में नहीं पाया जाता है।
- यह भू-पर्पटी में 0.3 ग्राम/किग्रा. मात्रा में पाया जाता है तथा फ्लोरस्पार, क्रायोलाइट और फ्लोरापेटाइट जैसे खनिजों में फ्लोराइड (ऑक्सीकरण अवस्था -1) के रूप में पाया जाता है।
- प्रमुख उपयोग: इसका एल्युमीनियम उत्पादन में तथा स्टील और ग्लास फाइबर उद्योगों में फ्लक्स के रूप में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इन्हें फॉस्फेट उर्वरकों, ईंटों, टाइलों और सिरेमिक के निर्माण के दौरान भी उपयोग में लाया जाता है।
- फ्लोरोसिलिक एसिड, सोडियम हेक्साफ्लोरोसिलिकेट और सोडियम फ्लोराइड जैसे यौगिकों का उपयोग नगरपालिका जल के फ्लोराइडीकरण में किया जाता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: फ्लोराइड के दोहरे प्रभाव होते हैं, यह अल्प मात्रा में लाभदायक होता है (दंत क्षय से सुरक्षा), लेकिन अधिक मात्रा में हानिकारक होता है, जिसके कारण दंत फ्लोरोसिस (मुख्य रूप से बच्चों में दाँतों के इनेमल का धब्बेदार होना} और कंकालीय फ्लोरोसिस (अस्थि/जोड़ों की समस्याएँ) होता है।
- भारतीय मानक ब्यूरो के अनुसार, जल में फ्लोराइड का सुरक्षित स्तर 1 से 1.5 मिलीग्राम/लीटर (मिलीग्राम प्रति लीटर) है, इससे अधिक स्तर स्वास्थ्य के लिये खतरनाक माना जाता है।
- भारत में फ्लोराइड नियंत्रण की योजनाएँ: भारत ने 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय फ्लोरोसिस निवारण और नियंत्रण कार्यक्रम (NPPCF) शुरू किया। इसके अतिरिक्त, जल जीवन मिशन का उद्देश्य सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करना है।
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