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पहला स्वदेशी रूप से विकसित पशु-व्युत्पन्न बायोमेडिकल डिवाइस

  • 15 Jun 2023
  • 6 min read

हाल ही में भारतीय औषधि नियंत्रक ने पहले स्वदेशी रूप से विकसित पशु-व्युत्पन्न वर्ग D बायोमेडिकल डिवाइस, कोलेडर्म  (Cholederm) को मंज़ूरी दी है जो त्वचा के घावों का न्यूनतम निशान के साथ कम लागत पर तेज़ी से उपचार कर सकती है।

  • चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 के अनुसार, चिकित्सा उपकरणों को जोखिम स्तर के आधार पर चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया है: वर्ग A (न्यूनतम जोखिम), वर्ग B (न्यूनतम से मध्यम जोखिम), वर्ग C (मध्यम उच्च जोखिम); वर्ग D (उच्च जोखिम)।

प्रमुख बिंदु  

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज़ एंड टेक्नोलॉजी (SCTIMST) ने टिश्यू इंजीनियरिंग स्कैफोल्ड विकसित किया है।
  • यह केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) के मानकों पर खरा उतरने वाला वर्ग D चिकित्सा उपकरणों को विकसित करने वाला भारत का पहला संस्थान है।
  • यह स्तनपायी अंगों से टिश्यू इंजीनियरिंग स्कैफोल्ड तैयार करने की एक नवीन तकनीक है।
  • उन्नत घाव देखभाल उत्पादों के रूप में पशु-व्युत्पन्न सामग्रियों का उपयोग करने की अवधारणा नई नहीं है।
    • हालाँकि औषधि नियंत्रक के मानकों पर खरा उतरने वाले गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के विनिर्माण के लिये अभी तक कोई स्वदेशी तकनीक उपलब्ध नहीं थी।
  • उपचार क्षमता:  
    • कोलेडर्म के रूप में पहचाने जाने वाले स्कैफोल्ड के मेम्ब्रेन रूपों ने चूहे, खरगोश या कुत्तों में जले तथा मधुमेह के घावों सहित विभिन्न प्रकार के त्वचा के घावों का उपचार किया, जो वर्तमान में बाज़ार में उपलब्ध समान उत्पादों की तुलना में कम-से-कम निशान छोड़ती है
    • इससे पता चला कि ग्राफ्ट-सहायता उपचार को एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-Inflammatories) M2 प्रकार के मैक्रोफेज द्वारा नियंत्रित किया गया था, जो विभिन्न ऊतकों में खराब प्रतिक्रियाओं को संशोधित या कम करने में मदद करता था।
  • लागत में कमी और बाज़ार क्षमता:
    • भारतीय बाज़ार में कोलेडर्म की शुरुआत से इलाज की लागत 10,000/- रुपए से घटकर 2,000/- रुपए होने की उम्मीद है, जिससे यह और अधिक किफायती हो जाएगा।
    • इसके अतिरिक्त प्रौद्योगिकी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्रदान करती है और आय-सृजन के अवसर पैदा करती है।
  • भविष्य के घटनाक्रम:
    • अनुसंधान दल वर्तमान में कार्डियक इंजरी के उपचार में आसान उपयोग के लिये स्कैफोल्ड का इंजेक्शन योग्य जेल फॉर्मूलेशन विकसित कर रहा है, जिसका लक्ष्य हृदयपेशीय रोधगलन (Myocardial infarction) से पीड़ित मरीजों के प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव लाना है।

नोट: 

  • चिकित्सा उपकरणों को औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 के तहत दवाओं के रूप में विनियमित किया जाता है।
  • CDSCO चिकित्सा उपकरणों और दवाओं के लिये राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण है, जबकि NPPA को दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिये दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 द्वारा सशक्त बनाया गया है।   

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO):

  • CDSCO औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 के तहत केंद्र सरकार को सौंपे गए कार्यों के निर्वहन के लिये केंद्रीय औषधि प्राधिकरण है।
  • स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के तहत CDSCO भारत का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (NRA) है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • प्रमुख कार्य:
    • दवाओं के आयात पर नियामक नियंत्रण, नई दवाओं की मंज़ूरी और क्लिनिकल परीक्षण।
    • केंद्रीय लाइसेंस अनुमोदन प्राधिकरण के रूप में कुछ लाइसेंसों का अनुमोदन करना भी शामिल है।

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA):

  • NPPA औषध विभाग, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत एक संगठन है जिसे वर्ष 1997 में नियंत्रित थोक दवाओं और फॉर्मूलेशन की कीमतों को संशोधित करने तथा देश में दवाओं की कीमतों को लागू करने एवं उपलब्धता हेतु दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश (DPCO), 1995 के तहत स्थापित किया गया था। 
  • वर्तमान में कीमतें दवा (मूल्य नियंत्रण) आदेश (DPCO), 2013 के तहत तय/संशोधित हैं।
  • दवाओं की कीमतों को उचित स्तर पर बनाए रखने के लिये यह नियंत्रण मुक्त दवाओं के मूल्य की निगरानी भी करता है। 

स्रोत: पी.आई.बी.

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