प्रारंभिक परीक्षा
डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा
- 15 Nov 2024
- 6 min read
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान, अगरकर अनुसंधान संस्थान (Agharkar Research Institute- ARI) के वैज्ञानिकों ने भारत के उत्तरी पश्चिमी घाटों में डिक्लिप्टेरा की एक नई प्रजाति की खोज की है, जिसका नाम डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा (Dicliptera Polymorpha) है।
प्रजातियों से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- डिक्लिप्टेरा पॉलीमोर्फा के अद्वितीय लक्षण:
- अग्नि प्रतिरोधक क्षमता: यह ग्रीष्मकालीन सूखे से बच सकता है तथा घास के मैदानों में लगने वाली आग के प्रति भी अनुकूल हो सकता है।
- फिर से खिलने की प्रकृति: मानसून के बाद (नवंबर-अप्रैल) और फिर आग लगने के बाद मई-जून में खिलता है।
- रूपात्मक विशिष्टता: इसमें पुष्पों की ऐसी संरचनाएँ होती हैं जो भारतीय प्रजातियों में असामान्य हैं, लेकिन अफ्रीकी प्रजातियों में पाई जाने वाली संरचनाओं के समान होती हैं।
- कठोर परिस्थितियों के लिये अनुकूलन:
- यह पश्चिमी घाट के खुले घास के मैदानों की ढलानों पर पनपता है।
- काष्ठीय मूलवृंत दूसरे पुष्पन चरण के दौरान बौने पुष्पीय अंकुर उत्पन्न करते हैं।
- प्रजातियों के लिये खतरा:
- मानव-प्रेरित आग: हालाँकि आग से इस प्रजाति को फिर से पनपने में मदद मिल सकती है, लेकिन बहुत अधिक या खराब तरीके से नियंत्रित आग से इसके आवास को नुकसान पहुँच सकता है।
- आवास का अति प्रयोग: अतिचारण और भूमि-उपयोग में परिवर्तन से चरागाह की जैव विविधता को खतरा है।
पश्चिमी घाट के बारे में कुछ प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- पश्चिमी घाट, जिसे सह्याद्री पहाड़ियों के रूप में भी जाना जाता है, वनस्पतियों और जीवों के अपने समृद्ध और अद्वितीय संयोजन के लिये जाना जाता है।
- इस शृंखला को उत्तरी महाराष्ट्र में सह्याद्रि, कर्नाटक और तमिलनाडु में नीलगिरी पहाड़ियाँ तथा केरल में अन्नामलाई पहाड़ियाँ और कार्डेमम पहाड़ियाँ कहा जाता है।
- इसे यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- पश्चिमी घाट में भारत के दो बायोस्फीयर रिज़र्व, 13 राष्ट्रीय उद्यान, कई वन्यजीव अभयारण्य और कई रिज़र्व वन पाए जाते हैं।
- इसमें नागरहोल के सदाबहार वन, कर्नाटक में बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान और नुगु के पर्णपाती वन तथा केरल व तमिलनाडु राज्यों में वायनाड और मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के क्षेत्र शामिल थे।
- वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट:
- भारत के चार मान्यता प्राप्त जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक, यह कई स्थानिक और अभी तक खोजी जाने वाली प्रजातियों का आवास है।
- चरागाह पारिस्थितिकी तंत्र:
- घास के मैदानों में अद्वितीय वनस्पतियाँ और जीव पाए जाते हैं, जिनमें से कई अग्नि के अनुकूल होते हैं।
- दुर्लभ एवं संकटग्रस्त प्रजातियों के लिये आवास, पारिस्थितिक संतुलन के लिये आवश्यक।
पश्चिमी घाट के संरक्षण के प्रयास:
- गाडगिल समिति (2011):
- इसे पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (Western Ghats Ecology Expert Panel- WGEEP) के नाम से भी जाना जाता है।
- समिति ने सिफारिश की कि समस्त पश्चिमी घाट को पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (Ecological Sensitive Areas- ESA) घोषित किया जाए तथा श्रेणीबद्ध क्षेत्रों में केवल सीमित विकास की अनुमति दी जाए।
- कस्तूरीरंगन समिति, 2013: इसमें गाडगिल रिपोर्ट के विपरीत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया गया।
- कस्तूरीरंगन समिति ने सिफारिश की थी कि पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल के बजाय कुल क्षेत्रफल का केवल 37% ESA के अंतर्गत लाया जाएगा तथा ESA में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
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