देवसहायम पिल्लई | 16 May 2022
चर्चा में क्यों?
हाल ही में देवसहायम पिल्लई को वेटिकन में पोप फ्राँसिस (कैथोलिक चर्च) द्वारा संत घोषित किया गया है।
- उन्होंने 18वीं शताब्दी में तत्कालीन त्रावणकोर साम्राज्य में ईसाई धर्म अपना लिया था। देवसहायम संत का दर्जा पाने वाले पहले सामान्य भारतीय व्यक्ति हैं, वेटिकन द्वारा उन्हें यह उपाधि 'बढ़ती कठिनाइयों को सहन करने' के लिये दी गई है।
जीवन परिचय:
- देवसहायम पिल्लई का जन्म 23 अप्रैल, 1712 को तमिलनाडु के कन्याकुमारी ज़िले के नट्टलम गाँव में हुआ था।
- वह वर्ष 1745 में कैथोलिक बन गए तथा इन्होंने ईसाई धर्म अपनाने के बाद ‘लेज़ारूस’ (Lazarus) नाम रख लिया था जिसका अर्थ है “God is my help” (भगवान मेरी मदद है) लेकिन बाद में वे देवसहायम के नाम से जाने गए।
- बैप्टिज़म (Baptism) अर्थात् दीक्षा-स्नान/ईसाई होने के समय प्रथम जल-संस्कार/ईसाई दीक्षा एक ईसाई संस्कार है जिसमें आनुष्ठानिक जल का उपयोग किया जाता है और इसे प्राप्त करने वाले को ईसाई समुदाय में स्वीकार किया जाता है।
- उनका धर्मांतरण उनके मूल धर्म के प्रमुखों को अच्छा नहीं लगा। उनके खिलाफ राजद्रोह और जासूसी के झूठे आरोप लगाए गए तथा उन्हें शाही प्रशासन के पद से हटा दिया गया।
- उन्होंने देश में प्रचलित जातिगत भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया जिसके परिणामस्वरुप उन्हें बहुत अधिक प्रताड़ित किया गया तथा हत्या कर दी गई।
- 14 जनवरी, 1752 को अरलवैमोझी के जंगल में देवसहाय की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। व्यापाक तौर पर उन्हें एक शहीद माना जाता है और उनके नश्वर अवशेषों को कोट्टार, नागरकोइल में सेंट फ्राँसिस जेवियर्स कैथेड्रल के अंदर दफनाया गया था।
- वेटिकन ने वर्ष 2012 में एक कठोर तथा सख्त प्रक्रिया के बाद उनकी शहादत को मान्यता दी।
देवसहायम को संत क्यों घोषित किया गया है?
- संत देवसहायम पिल्लई समानता के लिये खड़े हुए और जातिवाद तथा सांप्रदायिकता जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
- उन्हें संत की उपाधि ऐसे समय में दी गई है जब भारत में सांप्रदायिकता के मामले में विस्तार देखा जा रहा है।
- देवसहायम पिल्लई को संत घोषित किया जाना चर्च के लिये भी एक बड़ा अवसर है ताकि वह वर्तमान समय में प्रचलित सांप्रदायिकता के समक्ष स्वयं को खड़ा रख सके।
- सांप्रदायिकता (Communalism) हमारी संस्कृति में अपने स्वयं के धार्मिक समुदाय के प्रति अंध निष्ठा है। इसे सांप्रदायिक सेवाओं के लिये अपील करके लोगों को एकत्रित करने या उनके खिलाफ एक उपकरण के रूप में परिभाषित किया गया है। सांप्रदायिकता हठधर्मिता और धार्मिक कट्टरवाद से संबंधित है।