लोकसभा का उपाध्यक्ष | 26 Jun 2024
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में लोकसभा में विपक्ष की सीटों संख्या में हुई वृद्धि ने उपाध्यक्ष या डिप्टी स्पीकर का पद हासिल करने में उनकी रुचि को पुनः जागृत कर दिया है।
- यह पद 17वीं लोकसभा (2019-24) के दौरान रिक्त रहा, जो 16वीं लोकसभा (2014-19) से अलग है, जहाँ सत्तारूढ़ पार्टी के सहयोगी दल के सांसद (Member of Parliament - MP) ने संभाला था।
उपाध्यक्ष की भूमिका क्या है?
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 95(1): इसमें प्रावधान है कि यदि अध्यक्ष का पद रिक्त हो तो उपाध्यक्ष उसके कर्त्तव्यों का निर्वहन करेगा।
- सदन की अध्यक्षता करते समय उपाध्यक्ष को अध्यक्ष के समान ही शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
- नियमों में "अध्यक्ष" के सभी संदर्भों को उपाध्यक्ष के लिये भी संदर्भ माना जाएगा, उस समय के लिये जब वह अध्यक्षता करते हैं।
- अनुच्छेद 93: इसमें प्रावधान है कि लोक सभा को यथाशीघ्र सदन के दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनना होगा।
- अनुच्छेद 178: इसमें राज्य विधानसभाओं के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों के लिये भी प्रावधान है।
- उपाध्यक्ष चुनने की बाध्यता:
- संविधान में उपाध्यक्ष के चयन के लिये कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है, जिससे सरकारें उसकी नियुक्ति में देरी कर सकती हैं या उसे टाल सकती हैं।
- अनुच्छेद 93 और अनुच्छेद 178 में “करेगा” और “जितनी जल्दी हो सके” शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, जो यह दर्शाता है कि न केवल अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव अनिवार्य है, बल्कि इसे जल्द से जल्द कराया जाना चाहिये।
- चुनाव के नियम:
- अध्यक्ष/उपाध्यक्ष का चुनाव लोक सभा के सदस्यों में से उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है।
- लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के नियम 8 द्वारा शासित होता है।
- उपाध्यक्ष का चुनाव आमतौर पर दूसरे सत्र में होता है, लेकिन नई लोकसभा या विधानसभा के पहले सत्र में भी हो सकता है।
- उपाध्यक्ष सदन के भंग होने तक अपने पद पर बना रहता है।
- त्यागपत्र और निष्कासन:
- अनुच्छेद 94 (और राज्य विधानसभाओं के लिये अनुच्छेद 179) के तहत, यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष लोक सभा के सदस्य नहीं रह जाते हैं, तो वे अपना पद छोड़ देंगे।
- वे लोक सभा के सभी सदस्यों के बहुमत (पूर्ण बहुमत) द्वारा पारित प्रस्ताव द्वारा इस्तीफा भी दे सकते हैं या पद से हटाए जा सकते हैं।
- विपक्ष की ओर से उपाध्यक्ष:
- संसदीय परंपरा के अनुसार, विपक्षी पार्टी ने कई मौकों पर लोकसभा के उपाध्यक्ष का पद संभाला है। इसमें काॅन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-I (2004-09) और यूपीए-II (2009-14) सरकारों के साथ-साथ प्रधानमंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी (1999 से 2004), पी वी नरसिम्हा राव (1991-96) और चंद्रशेखर (1990-91) के कार्यकाल के दौरान भी शामिल है।
अध्यक्ष के रूप में उपाध्यक्ष की नियुक्ति
- लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष जी.वी.मावलंकर की वर्ष 1956 में अपना कार्यकाल पूरा किये बिना मृत्यु हो गई जिसके पश्चात् उपाध्यक्ष एम.अनंतशयनम् अयंगर ने 1956 से 1957 की अवधि तक लोकसभा के शेष कार्यकाल का कार्यभार संभाला।
- इसके पश्चात् अयंगर को दूसरी लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था।
- इसी प्रकार वर्ष 2002 में जी.एम.सी. बालायोगी के निधन के बाद मनोहर जोशी द्वारा अध्यक्ष का पद धारण करने से पूर्व उपाध्यक्ष और काॅन्ग्रेस सांसद पी.एम. सईद ने दो माह की अवधि के लिये कार्यवाहक अध्यक्ष का पद ग्रहण किया।
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
(a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. लोकसभा अध्यक्ष के पद के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |