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प्रारंभिक परीक्षा

ऋण मैट्रिक्स

  • 11 Apr 2025
  • 8 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारत का घरेलू ऋण जून-2021 से जून 2024 के बीच सकल घरेलू उत्पाद के 36.6% से बढ़कर 42.9% हो गया, जो एक व्यापक आर्थिक बदलाव का संकेतक है और इससे ऋण-से-जीडीपी अनुपात, लोक बनाम निजी ऋण तथा आंतरिक बनाम बाहरी ऋण जैसे प्रमुख ऋण मैट्रिक्स के परीक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ा है। 

प्रमुख ऋण मीट्रिक्स क्या हैं? 

  • ऋण से जीडीपी अनुपात: 
    • यह किसी देश के कुल ऋण और उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का अनुपात है ।
    • यह देश की ऋण चुकाने की क्षमता को दर्शाता है। इसका उच्च अनुपात, राजकोषीय स्थिरता के लिये संभावित जोखिम का संकेतक है जबकि मध्यम अनुपात प्रबंधनीय है यदि आर्थिक विकास की स्थिति मज़बूत है।
    • भारत का संदर्भ: केंद्र सरकार का ऋण-जीडीपी अनुपात वर्ष 2024-25 में 57.1% और वर्ष 2025-26 में 56.1% होने का अनुमान है।
      • सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक इसे 50 ± 1% तक लाना है।
      • कुल लोक ऋण में राज्य सरकारों की हिस्सेदारी लगभग एक-तिहाई है और वर्ष 2014-15 और 2019-20 के बीच समग्र लोक ऋण में वृद्धि में उनका योगदान 50% से अधिक था। 
  • लोक ऋण:
    • परिचय: लोक ऋण से तात्पर्य सरकार द्वारा अपनी विकासात्मक तथा राजकोषीय आवश्यकताओं के वित्तपोषण हेतु लिये जाने वाले ऋण से है।  
    • इसका भुगतान भारत की संचित निधि से किया जाता है और इसमें आंतरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार के ऋण शामिल होते हैं। 
    • संवैधानिक आधार: संविधान के अनुच्छेद 292 के अनुसार, संघ सरकार लोक ऋण को भारत की संचित निधि से देय अनुबंधित देनदारियों के रूप में परिभाषित करती है, जिसे संसद द्वारा विधि बनाकर निर्धारित किया जा सकता है
    • वर्गीकरण
      • भारत की संचित निधि के अंतर्गत ऋण (इसमें सरकारी प्रतिभूतियाँ और ट्रेज़री-बिल जैसे बाज़ार ऋण शामिल हैं)।
      • लोक खाता देयताएँ (जैसे भविष्य निधि, लघु बचत, आदि)।
  • आंतरिक बनाम बाह्य ऋण:
  • आंतरिक ऋण से तात्पर्य देश के अंदर से लिये गए लोक ऋणों (मुख्य रूप से घरेलू स्रोतों जैसे व्यक्तियों, बैंकों और वित्तीय संस्थानों) से है। इसे भारतीय रुपए में दर्शाया जाता है।
    • यह केंद्र के सार्वजनिक ऋण का 93% से अधिक हिस्सा है और इसे विपणन योग्य (सरकारी प्रतिभूतियाँ,ट्रेज़री-बिल) और गैर-विपणन योग्य (विशेष प्रतिभूतियाँ, आदि) में विभाजित किया गया है।.
  • बाह्य ऋण से तात्पर्य अन्य देशों की सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं या विदेशी निवेशकों के प्रति देश के ऋण दायित्वों से है, जो आमतौर पर विदेशी मुद्राओं में अंकित होते हैं।
    • इसमें विदेशी स्रोतों तथा बहुपक्षीय संस्थाओं से प्राप्त ऋण भी शामिल हैं।
    • सितंबर 2024 के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले बाह्य ऋण का अनुपात 19.4% था।

    भारत में ऋण प्रबंधन से संबंधित प्रमुख प्रावधान: 

    • अनुच्छेद 292 और 293: 
      • अनुच्छेद 292: केंद्र सरकार को संसद द्वारा निर्धारित सीमा के अंदर भारत की संचित निधि की प्रतिभूति पर धन उधार लेने की अनुमति है।
      • अनुच्छेद 293: राज्य सरकारों को केंद्र की पूर्व स्वीकृति से राज्य की संचित निधि की प्रतिभूति पर घरेलू स्तर पर धन उधार लेने का अधिकार है।
    • RBI अधिनियम, 1934: आरबीआई अधिनियम, 1934 के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक को केंद्र सरकार की ओर से लोक ऋण का प्रबंधन करने के लिये अधिकृत किया गया है।
    • FRBM अधिनियम, 2003: FRBM अधिनियम, 2003 का उद्देश्य राजकोषीय अनुशासन को संस्थागत बनाना, राजकोषीय घाटे को कम करना तथा घाटे के लिये लक्ष्य निर्धारित करके, पारदर्शिता बढ़ाकर एवं समय पर राजकोषीय रिपोर्टिंग सुनिश्चित करके दीर्घकालिक समष्टि आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना है। 

    कारक

    लोक ऋण पर प्रभाव

    व्याख्या

    राजकोषीय घाटे में वृद्धि

    वृद्धि

    उच्च राजकोषीय घाटे के कारण राजस्व एवं व्यय के बीच के अंतर को पूरा करने के लिये उधार लेने की आवश्यकता होती है।

    राजस्व में वृद्धि (कर)

    कमी 

    उच्च राजस्व से उधार लेने के साथ लोक ऋण की आवश्यकता कम हो जाती है।

    व्यय में वृद्धि (जैसे, कल्याणकारी योजनाएँ)

    वृद्धि

    सरकारी व्यय में वृद्धि से घाटे के वित्तपोषण के लिये अधिक उधार लेना पड़ता है।

    ब्याज दर में वृद्धि

    वृद्धि

    उच्च ब्याज दरों के कारण ऋण चुकाने की लागत में वृद्धि हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक उधार लेने से इसकी मात्रा में वृद्धि होती है।

    निजीकरण/परिसंपत्ति बिक्री

    कमी

    परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त आय से राजकोषीय घाटा कम हो सकता है और इस प्रकार उधार लेने की आवश्यकता कम हो सकती है। 

    विदेशी उधार

    वृद्धि

    विदेशी स्रोतों से उधार लेने से बाह्य ऋण में वृद्धि होती है।

    मुद्रा अवमूल्यन

    वृद्धि

    अवमूल्यन से विदेशी ऋण के भुगतान की लागत में वृद्धि होने से कुल ऋण में वृद्धि हो जाती है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. निम्नलिखित कथनाें पर विचार कीजिये: (2018)

    1. राजकोषीय दायित्व और बजट प्रबंधन (एफ.आर.बी.एम.) समीक्षा समिति के प्रतिवेदन में सिफारिश की गई है कि वर्ष 2023 तक केन्द्र एवं राज्य सरकारों को मिलाकर ऋण-जी.डी.पी. अनुपात 60% रखा जाए जिसमें केंद्र सरकार के लिये यह 40% तथा राज्य सरकारों के लिये 20% हो। 
    2. राज्य सरकाराें के जी.डी.पी. के 49% की तुलना में केन्द्र सरकार के लिये जी.डी.पी. का 21% घरेलू देयतायें हैं। 
    3. भारत के संविधान के अनुसार यदि किसी राज्य के पास केंद्र सरकार की बकाया देयतायें हैं तो उसे कोई भी ऋण लेने से पहले केंद्र सरकार से सहमति लेना अनिवार्य है।

    उपर्युक्त कथनाें में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल 1   
    (b) केवल 2 और 3
    (c) केवल 1 और 3   
    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (c)

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