DBT का पूर्वोत्तर कार्यक्रम | 24 Feb 2025

स्रोत: पी.आई.बी

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) का पूर्वोत्तर कार्यक्रम भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) में जैव प्रौद्योगिकी आधारित परिवर्तन को आगे बढ़ा रहा है।

  • DBT का पूर्वोत्तर कार्यक्रम: वर्ष 2010-2011 में प्रारंभ किये गए इस कार्यक्रम के बाद से जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने अपने वार्षिक बजट का 10% पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों के लिये आवंटित किया है, जिसका ध्यान शिक्षा, अनुसंधान और जैव-उद्यमिता को बढ़ाने पर केंद्रित है।
    • अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को सक्षम बनाया गया, जिससे शोधकर्त्ताओं और छात्रों को लाभ मिला, तथा अनुसंधान और प्रशिक्षण को समर्थन देने के लिये पूर्वोत्तर क्षेत्र में 6 जैव प्रौद्योगिकी केंद्रों की स्थापना की गई।
    • जैव प्रौद्योगिकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में जैव प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाएँ (BLiSS) शुरू कीं। इसके अतिरिक्त, विजिटिंग रिसर्च प्रोफेसरशिप (VRP) कार्यक्रम NER संस्थानों में जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति को आगे बढ़ाने के लिये शीर्ष वैज्ञानिकों को शामिल करता है। 
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), DBT-नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल बायोटेक्नोलॉजी (DBT-NECAB) जैसी पहल के माध्यम से भी किसानों का समर्थन करता है।
  • प्रमुख उपलब्धियाँ: असम कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित “पटकाई” चावल की किस्म, उन्नत सांभा महसूरी (चावल की किस्म) से ब्लाइट प्रतिरोध (बैक्टीरियल ब्लाइट रोग से सुरक्षा) को एकीकृत करती है।
    • पशुओं में ब्रुसेलोसिस (जीवाणु संक्रमण) का तेज़ी से पता लगाने के लिये लेटरल फ्लो एसे (Lateral Flow Assay- LFA) को मानकीकृत किया गया, जिससे रोग निदान में सुधार  हुआ।
    • इसके अतिरिक्त, सुअर रोग निदान विशेषज्ञ प्रणाली (PDDES), एक मोबाइल एप्लिकेशन, को सुअर रोगों के निदान और प्रबंधन में पशु चिकित्सकों और किसानों की सहायता के लिये विकसित किया गया था।

और पढ़ें: भारत की जैव प्रौद्योगिकी क्रांति