HT बासमती चावल की व्यावसायिक खेती | 06 Aug 2024
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने पहली बार शाकनाशी-सहिष्णु (Herbicide-Tolerant: HT) बासमती चावल की दो गैर-ट्रांसजेनिक किस्मों: पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 की व्यावसायिक खेती की अनुमति दी।
- इसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) द्वारा धान की धारणीय कृषि के तरीकों को बढ़ावा देने के लिये विकसित किया गया है जो जल का संरक्षण करते हैं तथा कार्बन उत्सर्जन को कम करते हैं।
नोट:
- ट्रांसजेनिक एक आनुवंशिकतः रूपांतरित जीव (GMO) या कोशिका को संदर्भित करता है, जिसके जीनोम को कृत्रिम साधनों की सहायता से किसी अन्य प्रजाति से एक या अधिक बाह्य DNA अनुक्रम या जीन को निर्दिष्ट कर रूपांतरित किया गया है।
- GMO एक ऐसा जीव है जिसमें आनुवंशिक रूप से संशोधित जीनोम होता है।
- सभी ट्रांसजेनिक जीव GMO होते हैं।
- गैर-ट्रांसजेनिक में कोई बाह्य DNA सम्मिलित नहीं होता है।
चावल की नई किस्मों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- इन नई किस्मों में उत्परिवर्तित एसीटो-लैक्टेट सिंथेज़ (ALS) जीन होता है, जिससे किसानों के लिये खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिये इमेजेथापायर (एक शाकनाशी) का छिड़काव करना संभव हो जाता है।
- चूँकि उत्परिवर्तित ALS जीन के कारण ALS एंज़ाइमों में इमेजेथापायर बंधनकारी स्थल/बाइंडिंग साइट (वह साइट/स्थल या पॉकेट जहाँ रासायनिक प्रतिक्रिया होती है।) का अभाव होता है, इसलिये अमीनो एसिड संश्लेषण अप्रभावित रहता है।
- चावल/धान में ALS जीन फसल की वृद्धि और विकास के लिये आवश्यक अमीनो एसिड के संश्लेषण हेतु उत्तरदायी एंज़ाइम को एनकोड करता है।
- जबकि, सामान्य धान के पौधों में, शाकनाशी पदार्थ ALS एंज़ाइमों के साथ बंध बनाता है, जिससे अमीनो एसिड का उत्पादन बाधित होता है।
- इमेजेथापायर प्रभावी रूप से विभिन्न प्रकार के चौड़ी पत्ती वाले, घास वाले और सेज खरपतवारों (सेज वर्गीय खरपतवार भी घास की तरह ही दिखते हैं, परंतु इनका तना बिना जुड़ा हुआ, ठोस तथा कभी-कभी गोल की अपेक्षा तिकोना होता है) को लक्षित करता है, लेकिन फसल एवं आक्रामक पौधों के बीच अंतर नहीं कर सकता।
- परिणामस्वरूप, ये पौधे शाकनाशी (जो केवल खरपतवारों को समाप्त करता है) सहिष्णु हो सकते हैं।
- चूँकि इस प्रक्रिया में कोई विदेशी जीन शामिल नहीं है, इसलिये उत्परिवर्तन प्रजनन के माध्यम से शाकनाशी सहिष्णुता प्राप्त की जाती है, जिससे ये पौधे गैर-आनुवंशिक तरीके से रूपांतरित जीव (Non-GMO) बन जाते हैं।
- महत्त्व: चावल की ये HT किस्में कई लाभ प्रदान करती हैं जैसे कि नर्सरी की तैयारी, पोखर, रोपाई व कृष्ट भूमि में जल संभरण की आवश्यकता को समाप्त करना, धान के प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) विधि के समर्थन द्वारा प्रमुख ग्रीनहाउस गैस मीथेन के उत्सर्जन को कम करना।
चावल की HT किस्म के उपयोग को लेकर विद्यमान चिंताएँ
- बारंबार प्रयोग से ‘सुपर वीड्स’ विकसित होने का जोखिम है जो शाकनाशी प्रतिरोधी हो जाते हैं तथा उन्हें नियंत्रित करना कठिन हो जाता है।
- डेवलपर्स ने उपभोक्ताओं को आश्वासन दिया है कि इस किस्म के बीजों द्वारा उत्पादित अनाज शाकनाशी अवशेषों-मुक्त होगा तथापि खाद्य उत्पादों में संभावित शाकनाशी अवशेषों के संचय को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं।
- जहाँ भारत इमेजेथापायर जैसे कुछ शाकनाशियों के उपयोग की अनुमति देता है वहीं यूरोपीय संघ उन पर प्रतिबंध लगाता है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार एवं सुरक्षा मानकों को प्रभावित कर सकता है।
- HT फसलों की दीर्घकालिक संधारणीयता पर इसलिये भी प्रश्चिह्न है क्योंकि समय के साथ शाकनाशियों के बढ़ते उपयोग से पारिस्थितिक चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
धान की रोपाई बनाम प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) |
|
धान की रोपाई |
धान का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) |
जिस खेत में रोपाई की जाती है, उसमें जल भरकर मृदा को दलदल के समान बनाया जाता है। |
अंकुरित बीजों को ट्रैक्टर द्वारा संचालित मशीनों द्वारा सीधे खेत में डाला जाता है। |
रोपाई के बाद पहले तीन सप्ताह तक पौधों के लिये लगभग 4-5 सेमी. की जल गहनता बनाए रखने के लिये प्रतिदिन सिंचाई की जाती है। |
इस विधि में नर्सरी की तैयारी या रोपाई शामिल नहीं है। |
किसान अगले चार-पाँच सप्ताह तक भी 2-3 दिन के अंतराल पर जल से सिंचाई करते रहते हैं, जब फसल टिलरिंग (तना विकास) अवस्था में होती है। |
किसानों को केवल अपनी कृष्ट भूमि को समतल करना होता है और बुवाई से पहले एक बार सिंचाई करनी होती है। |
धान की रोपाई में श्रम और जल दोनों की आवश्यकता होती है। |
यह जल और श्रम दोनों की बचत करता है। तुलनात्मक रूप से जल संग्रहण अवधि एवं मृदा की असंतुलन में वांछनीय कमी होने के कारण मीथेन उत्सर्जन को कम करता है। |
चावल/धान:
- यह एक खरीफ फसल है जिसके लिये उच्च तापमान (25 डिग्री सेल्सियस से अधिक) और उच्च आर्द्रता एवं वार्षिक तौर पर 100 सेमी. से अधिक की वर्षा की आवश्यकता होती है।
- दक्षिणी राज्यों और पश्चिम बंगाल में, जलवायु परिस्थितियाँ एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलों की खेती में सहायक हैं।
- पश्चिम बंगाल में किसान चावल की तीन फसलें उगाते हैं जिन्हें ‘औस’, ‘अमन’ और ‘बोरो’ कहा जाता है।
- भारत में कुल फसल वाले क्षेत्र का लगभग एक-चौथाई हिस्सा चावल की खेती के अंतर्गत आता है।
- प्रमुख उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब।
- उच्च उपज वाले राज्य: पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल।
- भारत चीन के बाद चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- बासमती चावल भारत का शीर्ष कृषि-निर्यात उत्पाद है। वर्ष 2022-23 में, भारत ने इसका 4.56 मिलियन टन निर्यात किया, जिसका मूल्य 4.78 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
- बासमती की विशिष्ट सुगंध का श्रेय 2-एसिटाइल-1-पाइरोलाइन (2-AP) को जाता है, जो परिपक्वता के दौरान उत्पन्न होता है और चावल को पौष्टिकता एवं सुगंध प्रदान करने वाला एक कार्बनिक यौगिक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. कृषि में शून्य-जुताई (Zero-Tillage) का/के क्या लाभ है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1 और 2 उत्तर: D व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |