प्रारंभिक परीक्षा
अपतानी वस्त्र उत्पाद
- 29 Dec 2021
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक फर्म द्वारा अरुणाचल प्रदेश अपतानी कपड़ा उत्पाद के लिये भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग की मांग हेतु आवेदन किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- परिचय:
- अपतानी बुनाई अरुणाचल प्रदेश की अपतानी जनजाति से संबंधित है जो लोअर सुबनसिरी ज़िले के मुख्यालय ज़ीरो वैली में निवास करती है।
- अपतानी समुदाय अनुष्ठानों और सांस्कृतिक उत्सवों सहित विभिन्न अवसरों के लिये स्वयं अपने वस्त्र बुनते हैं।
- इस जनजाति के लोगों द्वारा बुना गया कपड़ा इसके ज्यामितीय और ज़िगज़ैग पैटर्न तथा कोणीय डिज़ाइनों के लिये भी जाना जाता है।.
- यह जनजाति मुख्य रूप से जिग ज़ीरो और जिलान या जैकेट के रूप में जानी जाने वाली शॉल बुनती है जिसे सुपुंतरी (supuntari) कहा जाता है।
- यहाँ के लोग अपने पारंपरिक तरीकों से सूती धागे को जैविक रूप में ढालने के लिये विभिन्न पत्तियों और पौधों जैसे संसाधनों का उपयोग करते हैं।
- केवल महिलाएँ ही इस पारंपरिक बुनाई कार्य में लगी हुई हैं।
- इस जनजाति का पारंपरिक हथकरघा एक प्रकार का करघा है जिसे चिचिन कहा जाता है और यह निशि जनजाति के पारंपरिक हथकरघा के समान है।
- यह पोर्टेबल, स्थापित करने में आसान और एक ही बुनकर विशेष रूप से समुदाय की महिला सदस्यों द्वारा संचालित किया जाता है।
- अपतानी बुनाई अरुणाचल प्रदेश की अपतानी जनजाति से संबंधित है जो लोअर सुबनसिरी ज़िले के मुख्यालय ज़ीरो वैली में निवास करती है।
- अपतानी जनजाति:
- अपतानी अरुणाचल प्रदेश में ज़ीरो घाटी में रहने वाले लोगों का एक आदिवासी समूह है।
- वे तानी नामक एक स्थानीय भाषा बोलते हैं और सूर्य तथा चंद्रमा की पूजा करते हैं।
- वे एक स्थायी सामाजिक वानिकी प्रणाली का पालन करते हैं।
- वे प्रमुख त्योहार ड्री (Dree) को भरपूर फसल और प्रार्थना के साथ सभी मानव जाति की समृद्धि के लिये तथा मायोको (Myoko) को दोस्ती के जश्न के लिये मनाते हैं।
- अपतानी अपने भूखंडों पर चावल की खेती के साथ-साथ जलीय कृषि का अभ्यास करते हैं।
- घाटी में राइस-फिश कल्चर (Rice-fish Culture) राज्य में एक अनूठी प्रथा है, जहांँ चावल की दो फसलें (मिप्या और इमोह) तथा मछली की फसल (नगिही)) एक साथ उगाई जाती हैं।
- यह अरुणाचल प्रदेश में एक अनुसूचित जनजाति है।
अरुणाचल प्रदेश के वर्तमान जीआई उत्पाद:
- अरुणाचल नारंगी (कृषि)
इडु मिश्मी टेक्सटाइल्स (हस्तशिल्प)
अरुणाचल प्रदेश की जनजातियाँ:
अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों में शामिल हैं: अबोर, उर्फ, डफला, गैलोंग, खम्पटी, खोवा, मिश्मी, मोनपा, मोम्बा, कोई भी नागा जनजाति, शेरडुकपेन, सिंगफो।
भौगोलिक संकेतक/जीआई टैग (GI):
- जीआई टैग के बारे में:
- भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। किसी उत्पाद को दिया गया टैग जो जीआई के रूप में कार्य करता है उस उत्पाद के मूल स्थान की पहचान के रूप में कार्य करता है।
- इसका उपयोग कृषि, प्राकृतिक और निर्मित वस्तुओं हेतु किया जाता है।
- GI के लिये अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा:
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीआई औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण हेतु पेरिस कन्वेंशन के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (Intellectual Property Rights- IPRs) के एक घटक के रूप में शामिल है।
- वर्ष 1883 में अपनाया गया पेरिस कन्वेंशन व्यापक अर्थों में औद्योगिक संपत्ति पर लागू होता है, जिसमें पेटेंट, ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन, उपयोगिता मॉडल, सेवा चिह्न, व्यापारिक नाम, भौगोलिक संकेत और अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करना शामिल है।
- इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीआई औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण हेतु पेरिस कन्वेंशन के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (Intellectual Property Rights- IPRs) के एक घटक के रूप में शामिल है।
- भारत में GI संरक्षण:
- भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य के रूप में माल के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 को अधिनियमित किया, जो वर्ष 2003 से प्रभावी हुआ।
- यह अधिनियम भारत में जीआई सामानों के पंजीकरण और उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है।
- यह अधिनियम पेटेंट, डिज़ाइन और ट्रेडमार्क महानियंत्रक द्वारा प्रशासित है, जो भौगोलिक संकेतकों के रजिस्ट्रार भी हैं।
- भारत के लिये भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री चेन्नई में स्थित है।
- भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्षों की अवधि के लिये वैध होता है। इसे समय-समय पर 10-10 वर्षों की अतिरिक्त अवधि हेतु नवीनीकृत किया जा सकता है।
- भारत में भौगोलिक संकेतकों के कुछ उदाहरणों में बासमती चावल, दार्जिलिंग चाय, कांचीपुरम रेशम साड़ी, नागपुर की नारंगी और कोल्हापुरी चप्पल शामिल हैं।
- भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य के रूप में माल के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 को अधिनियमित किया, जो वर्ष 2003 से प्रभावी हुआ।
- जीआई टैग का लाभ:
- यह भारत में भौगोलिक संकेतक को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
- दूसरों द्वारा किसी पंजीकृत भौगोलिक संकेतक के अनधिकृत प्रयोग को रोकता है।
- यह भारतीय भौगोलिक संकेतक को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है जिसके फलस्वरूप निर्यात को बढ़ावा मिलता है।
- यह संबंधित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।