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‘सारागढ़ी के युद्ध‘ की 127 वीं वर्षगाँठ

  • 16 Sep 2024
  • 3 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में 12 सितंबर, 2024 को ‘सारागढ़ी के युद्ध की 127 वीं वर्षगाँठ मनाई गई। यह विश्व सैन्य युद्ध इतिहास के सबसे महान अंतिम संघर्षों में से एक है।

  • 12 सितम्बर, 1897 को 36वीं सिख रेजिमेंट (अब 4 सिख ) के 21 सैनिकों और एक गैर-लड़ाकू (जिसका नाम दाद था, इसका कार्य लड़ना न होकर सेना में कार्य करने वाले लोगों की सेवा करना था) द्वारा उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP) में (जो अब पाकिस्तान में है), अफरीदी और ओरकजई जनजातियों के सैनिकों (जिनकी संख्या 8 हजार से अधिक थी) के विरुद्ध युद्ध हुआ था।
    • हवलदार ईशर सिंह के नेतृत्व में सैनिकों ने सात घंटे तक बहादुरी से युद्ध किया, जिसमें 200 आतंकवादी मारे गए और लगभग 600 घायल हो गए।
  • सारागढ़ी का सामरिक महत्त्व: सारागढ़ी फोर्ट लॉकहार्ट और फोर्ट गुलिस्तान के बीच एक संचार टॉवर था।  लॉकहार्ट और गुलिस्तान उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत में दो महत्त्वपूर्ण ब्रिटिश किलें थे, जिन्हें मूल रूप से महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था, जिनका नाम बाद में अंग्रेज़ों द्वारा बदल दिया गया था।
    • इस चौकी को खोने का मतलब किलों का अलग-थलग पड़ जाना था, यह सारागढ़ी के दोनों किलों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता था, जहाँ बड़ी संख्या में ब्रिटिश अधिकारी, परिवार और सैनिक सुलेमान रेंज असुरक्षित थे।
  • शहीदों के लिये सम्मान: महारानी विक्टोरिया ने 21 मृत सैनिकों को उनकी बहादुरी के लिये ‘इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट’ (विक्टोरिया क्रॉस के समतुल्य) से सम्मानित किया।
    • अंग्रेज़ों ने शहीदों के सम्मान में सारागढ़ी से लाई गई पकी हुई ईंटों का उपयोग करके एक स्मारक-स्तंभ का निर्माण करवाया।
    • वर्ष 2017 में पंजाब सरकार ने सैनिकों के बलिदान को सम्मान देने हेतु 12 सितंबर को ‘सारागढ़ी दिवस’ के रूप में अवकाश घोषित किया।
    • फोर्ट लॉकहार्ट के नज़दीक स्मारक पर पाकिस्तानी सेना की खैबर स्काउट्स रेजिमेंट गार्ड और सलामी देकर सारागढ़ी शहीदों को सम्मानित करती है।

आगे पढ़ें: सारागढ़ी का युद्ध

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