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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

शी जिनपिंग का बढ़ता दबदबा

  • 06 Apr 2018
  • 7 min read

संदर्भ 
हाल ही में चीन में संविधान संशोधन द्वारा राष्ट्रपति पद की अधिकतम कार्यकाल संबंधी सीमा के प्रावधान को हटा दिया गया है। इस संशोधन के पश्चात् वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग का आजीवन पद पर बने रहने का रास्ता साफ़ हो गया है। 1949 में वर्तमान चीन गणराज्य की स्थापना के पश्चात् माओ ज़ेदोंग और डेंग शाओपिंग जैसी शक्तियाँ प्राप्त करने और राजनीतिक नियंत्रण स्थापित करने वाले ये तीसरे राजनेता हैं।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1953 में बीजिंग में जन्मे शी जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी के चुनिंदा संस्थापक सदस्यों में से एक शी झोंग्क्सन के पुत्र हैं।
  • वर्ष 1962 में इनके पिता को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में जेल में डाल दिया गया एवं 15 वर्ष की उम्र में ही जिनपिंग को सात साल के लिये ग्रामीण क्षेत्र (countryside) में कठोर परिश्रम करने के लिये भेज दिया गया था।
  • किंतु कम्युनिस्ट पार्टी का विरोधी बनने की बजाय उन्होंने कई बार पार्टी के साथ जुड़ने की कोशिश की लेकिन उन्हें अपने पिता के कारण स्वीकार नहीं किया गया।
  • अंत में उन्हें वर्ष 1974 में पार्टी में शामिल किया गया और तब से वर्तमान समय तक उनका राजनीतिक कद निरंतर बढ़ता गया।
  • शी जिनपिंग को वर्ष 2012 में राष्ट्रपति पद पर चुना गया।
  • वर्तमान में शी जिनपिंग राष्ट्रपति होने के साथ - साथ कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव तथा केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष भी हैं।

क्या था संशोधन?

  • संविधान संशोधन से पूर्व कोई भी नागरिक अधिकतम 2 कार्यकालों के लिये ही चीन का राष्ट्रपति बन सकता था।
  • संविधान में संशोधन द्वारा 2 कार्यकाल संबंधी इस सीमा को हटा दिया गया है।
  • ध्यातव्य है कि चीनी संविधान में अधिकतम कार्यकाल संबंधी यह प्रावधान डेंग शाओपिंग द्वारा 1982 में देश को भविष्य में तानाशाही शासन से सुरक्षित करने हेतु अधिरोपित किया गया था।

शी जिनपिंग की बढ़ती लोकप्रियता का कारण

  • शी जिनपिंग को शुरुआत से ही राजनीतिक लोकप्रियता हासिल होने लगी थी। इसका मुख्य कारण उनकी भ्रष्टाचार विरोधी छवि और देश के विकास हेतु समर्पण भाव था।
  • जिनपिंग ने विपक्ष और पार्टी के प्रभावशाली नेताओं पर सख्ती से नियंत्रण स्थापित किया।
  • साथ ही जिनपिंग ने भ्रष्टाचार विरोधी कार्यक्रमों द्वारा अपनी  सर्वोच्चता को चुनौती देने में सक्षम  नेताओं का दमन कर दिया।
  • उन्होंने सख्त इंटरनेट सेंसरशिप द्वारा संगठित बगावती अभिव्यक्तियों को दबा दिया और अपने वफादार साथियों को महत्त्वपूर्ण पदों पर बिठाया।
  • पार्टी के भीतर अनुशासन पर अधिकाधिक ध्यान दिया।
  • वैश्विक स्तर पर चीन की बढ़ती ताकत ने जिनपिंग को एक वैश्विक नेता का दर्जा प्रदान किया है जिससे आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता में और भी अधिक इज़ाफा हुआ है।
  • ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल शी जिनपिंग के दिमाग की ही उपज है जिससे चीन दुनिया के एक बड़े भाग तक अपनी पहुँच सुनिश्चित कर सकता है।

वैश्विक स्तर पर चीन की बढ़ती ताकत

  • पिछले कुछ वर्षों में चीन की ताकत में वृहद् स्तर पर इज़ाफा हुआ है तथा वह एक महाशक्ति के रूप में अमेरिका के समकक्ष खड़ा होता जा रहा है।
  • अमेरिका के पश्चात् चीन विश्व की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है और एक अनुमान के अनुसार 2030 तक अमेरिका को पीछे छोड़कर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
  • जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया के अलावा लगभग सभी दक्षिण–पूर्वी देशों से चीन के संबंध अच्छे हैं।
  • दक्षिण चीन सागर विवाद में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को न मानकर चीन ने संपूर्ण विश्व में अमेरिकी प्रभुत्व को खुलेआम चुनौती दे दी है।
  • रूस के साथ बढ़ती नज़दीकियों एवं उत्तर कोरिया का समर्थन जैसे कदमों को ‘चीन द्वारा अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती’ के रूप में देखा जा रहा है।
  • विश्व की अधिकांश बड़ी औद्योगिक कंपनियाँ चीन में अपने उपक्रम स्थापित कर रही हैं। फलस्वरूप वहाँ रोज़गार एवं प्रति व्यक्ति आय में काफी वृद्धि हुई है।
  • चीन हिंद महासागर में लगातार अपनी पकड़ मज़बूत करता जा रहा है। इसी क्रम में वह श्रीलंका के हंबनतोता और पाकिस्तान के ग्वादर जैसे बंदरगाहों तक अपनी पहुँच सुनिश्चित कर चुका है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य 

  • चीन धीरे – धीरे एशिया पर अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है जो भारत के लिये चिंता का विषय है।
  • चीन भारत के पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को और अधिक सुदृढ़ कर रहा है। नेपाल, श्रीलंका, म्याँमार, मालदीव में चीनी पहुँच में इज़ाफा दर्ज किया गया है।
  • चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल के अंतर्गत पकिस्तान में बन रहा चीन – पकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (POK) से गुजरता है जिसका भारत शुरू से ही विरोध कर रहा है।
  • दोनों देश शुरुआत से ही सीमा विवादों में उलझे हैं जिसका हालिया उदाहरण दोकलाम गतिरोध के समय देखने को मिला था।
  • हालाँकि, शी जिनपिंग के शासनकाल में द्विपक्षीय संबंधों में थोड़ी प्रगति हुई है लेकिन यह अपेक्षानुसार संतोषजनक नहीं है।
  • शी जिनपिंग ने 2014 में भारत का दौरा किया था और तब संबंधों के बेहतर होने की उम्मीद जागी थी किंतु हालात कमोबेश एक जैसे बने रहे। हालाँकि , जिनपिंग के कार्यकाल विस्तार के बाद दोनों देशों के संबंधों में बेहतरी की संभावना फिर से दिख रही है।
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