सशस्त्र बल और महिलाएँ | 18 Feb 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय और महिलाओं को कॉम्बैट भूमिका देने संबंधी विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
संपूर्ण वैश्विक इतिहास पर गौर करें तो ज़ाहिर होता है कि समाज में महिलाओं की केंद्रीय भूमिका ने राष्ट्रों की स्थिरता, प्रगति और दीर्घकालिक विकास सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। मौजूदा समय में ऐसा कोई भी क्षेत्र शेष नहीं है, जहाँ महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज न की हो। पुरुष प्रधान माने जाने वाले सैन्य क्षेत्र में भी महिलाओं की भूमिका काफी सराहनीय रही है और उन्होंने अतीत के कई युद्ध अभियानों में हिस्सा लिया है। भारतीय सशस्त्र बल में अपनी भूमिका के माध्यम से महिलाओं ने आत्मविश्वास और साहस के नए प्रतिमान स्थापित किये हैं। भारतीय सेना में महिलाओं के लिये स्थायी कमीशन को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय नारी सशक्तीकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। न्यायालय ने सरकार को आगामी तीन महीनों में शाॅर्ट सर्विस कमीशन (SSC) की सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने को कहा है। न्यायालय ने कहा कि महिलाओं को केवल शाॅर्ट सर्विस कमीशन तक सीमित रखना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जो कि देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करता है।
क्या है विवाद?
- लंबे समय तक सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका चिकित्सीय पेशे जैसे- डॉक्टर और नर्स तक ही सीमित थी। भारतीय सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति की शुरुआत वर्ष 1992 से हुई। शुरुआत में महिला अधिकारियों को नॉन-मेडिकल जैसे- विमानन, रसद, कानून, इंजीनियरिंग और एक्ज़ीक्यूटिव कैडर में नियमित अधिकारियों के रूप में पाँच वर्ष की अवधि के लिये कमीशन दिया जाता था, जिसे समाप्ति पर पाँच वर्ष और बढ़ाया जा सकता था।
- वर्ष 2006 में नीतिगत संशोधन किया गया और महिला अधिकारियों को शाॅर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के तहत 10 वर्ष की सेवा की अनुमति दे दी गई, जिसे 4 वर्ष और बढ़ाया जा सकता था।
- वर्ष 2006 में हुए नीतिगत संशोधनों के अनुसार, पुरुष SSC अधिकारी 10 वर्ष की सेवा के अंत में स्थायी कमीशन का विकल्प चुन सकते थे, किंतु यह विकल्प महिला अधिकारियों के लिये उपलब्ध नहीं था।
- इस प्रकार सभी महिला अधिकारी कमांड नियुक्ति से बाहर हो गईं और वे सैन्य अधिकारियों को दी जानी वाली पेंशन की आवश्यक योग्यता को भी पूरा नहीं करती थीं, जो एक अधिकारी के रूप में 20 वर्षों की सेवा के पश्चात् ही शुरू होती है।
निर्णय का प्रभाव
- न्यायालय ने कहा है कि कई शौर्य व सेना पदक जीत कर महिलाएँ अपनी क्षमता साबित कर चुकी हैं, इसीलिये सेना में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिये मानसिकता में परिवर्तन की ज़रूरत है।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से महिला अधिकारियों को अपने समकक्ष पुरुष अधिकारियों के समान ही सभी कमांड में नियुक्ति मिल सकेगी, जिससे महिला अधिकारियों के लिये उच्च रैंक और पदोन्नति के नए रास्ते खुलेंगे।
भारतीय सशस्त्र बल और महिलाएँ
- भारत के प्रत्येक क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी भारत सरकार की है। सरकार ने इस कार्य के लिये देश में भारतीय सशस्त्र बल का गठन किया गया है।
- वर्तमान में भारतीय सशस्त्र बल के तहत सेना, नौसेना, वायु सेना और तटरक्षक बल को शामिल किया जाता है। ज्ञात हो कि तटरक्षक बल को सशस्त्र बल के रूप में वर्ष 1978 में स्थापित किया गया था।
- मौजूदा समय में केवल भारतीय वायु सेना ही लड़ाकू पायलटों के रूप में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में शामिल करती है। साथ ही भारतीय वायु सेना में महिला अधिकारियों का प्रतिशत भी अन्य शाखाओं से काफी अधिक है। आँकड़ों के अनुसार, भारतीय वायु सेना में तकरीबन 13.09 प्रतिशत महिला अधिकारी हैं।
- वर्ष 2016 में तीन महिलाओं को फायटर पायलट के रूप में तैनात किया गया था। इनकी नियुक्ति पायलट प्रोजेक्ट के रूप में की गई थी।
- वहीं भारतीय थल सेना और नौसेना में महिला अधिकारियों का प्रतिशत अपेक्षाकृत काफी कम है। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, भारतीय थल सेना और नौसेना में महिला अधिकारियों का प्रतिशत क्रमशः 3.80 और 6 है।
- जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यू.एस., ब्रिटेन, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्राँस, नॉर्वे, स्वीडन और इज़राइल जैसे देशों ने महिलाओं को युद्ध में भूमिका निभाने की अनुमति दी है।
- ज्ञात हो कि वर्ष 2000 में कमीशन प्राप्त करने वाली लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता वर्ष 2010 में काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए हमले के दौरान दिखाए गए अपने निर्विवाद साहस के लिये वीरता पुरस्कार (Gallantry Award) पाने वाली भारत की पहली महिला अधिकारी हैं।
- इसके अलावा डॉ. सीमा राव जो ‘भारत की वंडर वुमन’ के रूप में जानी जाती हैं, भारत की पहली महिला कमांडो ट्रेनर हैं, जिन्होंने भारत के 15,000 से अधिक विशेष बल के कर्मियों को प्रशिक्षित किया है।
महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने में कठिनाइयाँ
- महिला-पुरुष के बीच कद, ताकत और शारीरिक संरचना में प्राकृतिक विभिन्नता के कारण महिलाएँ चोटों और चिकित्सीय समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। यह समस्या विशेष रूप से गहन प्रशिक्षण के दौरान होती है।
- इसके अलावा महिलाओं में अधिक ऊँचाई, रेगिस्तानी इलाकों, क्लीयरेंस डाइविंग और हाईस्पीड एविएशन (G-forces) जैसे कठिन इलाकों में नॉन-कॉम्बैट चोटें भी प्रायः देखी जाती हैं।
- कठिन युद्धों के दौरान लंबे समय तक तैनाती और महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर शारीरिक गतिविधियों के गंभीर प्रभाव को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका में विशेष रूप से अध्ययन किया जा रहा है।
- महिलाओं को अपने परिवार विशेष रूप से अपने बच्चों से काफी अधिक लगाव होता है और इसलिये युद्ध स्थिति में लंबे समय तक अपने परिवार से अलग रहना महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
सक्षम हैं महिलाएँ
- महिलाओं को कॉम्बैट भूमिका की अनुमति देना देश में लैंगिक समानता की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
- यदि ऐसा होता है तो इससे महिलाओं को उनकी उचित स्थिति और अधिकार प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जो आखिरकार सामाजिक पदानुक्रम में उनकी स्थिति को बढ़ाने में मददगार होगा।
- यह वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुका है कि महिलाएँ अपने पुरुष समकक्षों की अपेक्षा तनाव को अधिक बेहतर तरीके से झेल सकती हैं।
- मनोवैज्ञानिक रूप से महिलाएँ इसके लिये तैयार होती हैं, उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण और समुचित वातावरण प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।
- वास्तव में आज की दुनिया में युद्ध, हथियार और रणनीति में अद्भुत खोज और नवाचारों के साथ कौशल की एक नई प्रवृत्ति को प्राथमिकता दी गई है। यह अनुकूलता, चपलता, अनुशासन, त्वरित सोच, निपुणता, टीमवर्क और नेतृत्व जैसे गुणों की मांग करता है, जिसे पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा समान रूप से हासिल किया जा सकता है।
निष्कर्ष
आज महिलाएँ संपूर्ण विश्व में सैन्य क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। भारत भी कॉम्बैट भूमिका में महिलाओं को शामिल करने की ओर तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है। सेना में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाने और इस विषय से संबंधित विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को समझने के लिये एक समेकित अध्ययन करने की आवश्यकता है जिसमें नागरिक समाज के अलावा स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास तथा मानव संसाधन विकास (HRD) मंत्रालय को शामिल किया जाना चाहिये ताकि हम निकट भविष्य में इस क्षेत्र में अपेक्षित चुनौतियों का सामना करने एवं उनसे निपटने में सक्षम हो सकें।
प्रश्न: महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी कमीशन देने को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के आलोक में सशस्त्र बल में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा कीजिये।