अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पवन ऊर्जा परियोजनाओं की नीलामी
- 27 Feb 2017
- 10 min read
सन्दर्भ
गौरतलब है, कि पिछले 25 वर्षों में पवन ऊर्जा परियोजनाओं को फीड इन टैरिफ (फिट) के आधार पर आवंटित किया जाता रहा है किन्तु हाल ही में, देश में पवन ऊर्जा क्षेत्र के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया, जब पहली बार पवन ऊर्जा परियोजनाओं की नीलामी की गई । भारत सरकार द्वारा अपने जन-कल्याणकारी उद्देश्यों और व्यावसायिक बाध्यताओं के मध्य इष्टतम सामंजस्य स्थापित करते हुए, पवन ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा देने का यह अभिनव प्रयास किया गया है |
प्रमुख बिंदु
- 23 फरवरी 2017 को सार्वजनिक उपक्रम भारतीय सौर ऊर्जा निगम लिमिटेड (एसईआईसी) ने इस नीलामी का आयोजन किया ।
- कुल 1,000 मेगावॉट की परियोजनाओं को हासिल करने की होड़ में शामिल 5 विजेता कंपनियों ने 3.46 रुपये प्रति यूनिट की बोली लगाई।
- नीलामी गुरुवार दोपहर 4.47 रुपये प्रति यूनिट के साथ शुरू हुई ।
- मित्रा एनर्जी, आईनॉक्स विंड और ऑस्ट्रो कच्छ विंड प्राइवेट लिमिटेड 250-250 मेगावॉट की परियोजनाएं स्थापित करेंगी जबकि ग्रीन इन्फ्रा (सेंबकॉर्प इंडिया) को 249 मेगावॉट की परियोजना मिली है।
- सरकार ने सफल बोली लगाने वाली एक और कंपनी अदाणी ग्रीन एनर्जी को न्यूनतम शुल्क के कारण 50 मेगावॉट का अतिरिक्त कोटा दिया।
- नीलामी में जो बोली प्राप्त हुई है वह 5 रुपये प्रति यूनिट के मौजूदा फिट औसत से बहुत कम है।
- मित्रा एनर्जी ने विज्ञान और तकनीक पर आधारित इस मॉडल पर भारी निवेश किया है।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की कंपनी मित्रा एनर्जी लिमिटेड का मुख्यालय लंदन में हैं और यह लंदन स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्घ है। इस समय कंपनी की देश के 8 राज्यों में 1,000 मेगावॉट की परियोजनाएँ चल रही हैं।
- आईनॉक्स विंड गुजरात फ्लोरोकेमिकल्स की सहायक कंपनी है जो 2008 से पवन ऊर्जा के क्षेत्र में सक्रिय है।
- ऑस्ट्रो कच्छ (ostro kutch) एक्टिस द्वारा वित्तपोषित कंपनी है जिसकी 1,000 मेगवाट की नवीकरणीय परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं।
- सेंबकॉर्प इंडिया ने ग्रीन इन्फ्रा के जरिये बोली लगाई जिसका उसने करीब दो साल पहले अधिग्रहण किया था।
- नीलामी में शामिल अन्य कंपनियां हीरो फ्यूचर एनर्जीज, रिन्यू पावर और गमेशा इंडिया होड़ में पिछड़ गईं।
- बोली जीतने वाली कंपनियों ने अपने पूंजी व्यय पर नुकसान झेला है और इसकी भरपाई के लिए उन्हें रकम हासिल करने के नए तरीकों की दरकार होगी।
पृष्ठभूमि
- पर्यावरणीय सक्रियता के लिये भारत की पहल और रणनीति को स्टॉकहोम में वर्ष 1972 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मलेन में अपनाया गया था | भारत अपनी विकासीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपने ऊर्जा संसाधनों को स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिये प्रयासरत है | वर्तमान में भारत तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है|
- ध्यातव्य है, कि पेरिस समझौते के तहत भारत को 2030 तक अपनी 40 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतों को नवीकरणीय उर्जा स्रोतों से पूरा करना होगा |
- इसके अतिरिक्त, भारत सरकार द्वारा वर्ष 2022 तक भारत को हरित ऊर्जा का बड़ा केंद्र बनाने का प्रयास किया जा रहा है |
- विदित हो कि भारत में वर्ष 2014 में ही नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने 'ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप एंड स्मॉल सोलर पावर प्लांट प्रोग्राम' का सूत्रपात कर दिया गया था ।
- इस कार्यक्रम के तहत वर्ष 2022 तक कुल 175 गीगावॉट की क्षमता वाले सौर ऊर्जा प्लांट लागना प्रस्तावित है ।
- इसमें से 40 गीगावॉट बिजली रूफटॉप सोलर पीवी के ज़रिये हासिल किये जाने का लक्ष्य है |
- गौरतलब है कि भारत इस वर्ष दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक बन जाएगा ।
- उल्लेखनीय है कि हाल ही में, तमिलनाडु के कमूथी में दुनिया का सबसे बड़ा सोलर पावर पार्क बनाया गया है ।
- विदित हो कि मध्य प्रदेश के रीवा में इससे भी बड़ा सोलर पार्क बनाया जा रहा है जिसमें दुनिया की सबसे सस्ती सौर विद्युत (2.97 रुपए/यूनिट) के उत्पादन की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
- कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश के रीवा में सौर ऊर्जा परियोजना के लिए 2.97 रुपये प्रति यूनिट की न्यूनतम बोली प्राप्त हुई थी ।
- बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि सौर ऊर्जा परियोजनाओं की नीलामी में इस तरह की बोली लगने की उम्मीद की जा रही थी, क्योंकि कंपनियों का जोर पोर्टफोलियो से ज्यादा रिटर्न पर है लेकिन कंपनियों को अब रकम जुटाने के लिए आक्रामक तरीके अपनाने होंगे।
- कोयला भण्डार की दृष्टि से भारत का विश्व में तीसरा स्थान है, लेकिन अंधाधुंध नीलामी और उपकर लगाए जाने के बाद भारत कोयले से विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करने वाला सबसे महँगा देश बन गया है|
- गौरतलब है कि कोयला उपकर जो कुछ वर्ष पहले लगाया गया था, अब 400 रुपए प्रति टन है जो कि एक टन कोयला खनन में लगने वाली लागत के पाँचवे हिस्से के बराबर है|
- इसके साथ ही, हमारे यहाँ पहले से ही सभी विद्युत वितरण कंपनियों और बंदी उत्पादकों (captive producers) के लिये अक्षय ऊर्जा खरीद दायित्व (Renewable purchase obligations- RPOs) तंत्र विद्यमान है| इसके अतिरिक्त खरीदारी के लिये सौर और पवन ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है|
- अभी तक नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों से ऊर्जा प्राप्ति व्यापक रूप में सुनिश्चित नहीं हो पाई है और आरपीओ भार भी प्रतिवर्ष बढ़ ही रहा है जो ऊर्जा लागत को बढ़ा रहा है|
- इसके अलावा, पेट्रोल और डीज़ल के उत्पाद कर में भी वृद्धि हो रही है| वर्तमान में भारत पेट्रोलियम पदार्थों पर सबसे अधिक कर आरोपित करने वाला राष्ट्र है|
- वस्तुतः जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप संसाधनों में हो रही कमी के फलस्वरूप ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की भूमिका और भी बढ़ गई है। अतः पवन ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा मिलना चाहिये |
- भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के अपार संसाधन उपलब्ध हैं |
- वर्ष भर हवाएँ चलती है और धूप भी उपलब्ध होती है | अतः पवन तथा सौर ऊर्जा के माध्यम से भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को प्रयासों के द्वारा आसानी से पूरा किया जा सकता है|
- नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में रोज़गार सृजन की भी अपार संभावना है|
निष्कर्ष
इस तरह की प्रतिस्पर्द्धात्मक प्रक्रिया से यह अवश्य सुनिश्चित हो रहा है कि उद्योग द्वारा लंबे समय के दौरान अर्जित की गई क्षमताएँ कंपनियों के पास जा रही है। अतः इस सन्दर्भ में, निम्न प्रशुल्कों का अर्थ यह नहीं है कि इससे सौर ऊर्जा सस्ती हो जाएगी; बल्कि कई औद्योगिक विशेषज्ञों द्वारा दी गई चेतावनी के अनुसार, ऐसे कम शुल्कों पर प्रायः कम लाभ की प्राप्ति होती है | हालाँकि अभी इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी किन्तु एक बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि दरअसल आज ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की भूमिका में निरंतर वृद्धि हो रही है अतः कल्याणकारी उद्देश्यों और व्यावसायिक बाध्यताओं के मध्य इष्टतम सामंजस्य स्थापित करते हुए पवन ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । प्रशुल्क आधारित नीलामी इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकती है |