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स्वास्थ्य सेवाओं के कायापलट में कहाँ तक कारगर होगा ‘मोदी केयर’?

  • 06 Feb 2018
  • 7 min read

संदर्भ

  • किसी स्वास्थ्य प्रोग्राम का केंद्रीय बजट की प्रमुख विशेषता बन जाना कोई आम बात नहीं है। वर्ष 2011 में यूपीए सरकार एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह के सुझावों पर अमल करने में विफल रही थी, जिसमें यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (universal health coverage) की बात की गई थी।
  • गौरतलब है कि वर्तमान एनडीए सरकार ने वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में फ्लैगशिप “राष्ट्रीय स्वास्थ्य सरंक्षण स्कीम” (national health protection scheme) की चर्चा की है। जिसके तहत 10 करोड़ से अधिक गरीब एवं कमज़ोर परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) को 5 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा।
  • विश्व की अब तक की सबसे बड़ी इस स्वास्थ्य बीमा स्कीम से स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के कायापलट की उम्मीद लगाई जा रही है। जबकि इसकी सफलता पूर्व शर्तों के पूरे होने पर निर्भर करती है।
  • इस लेख में हम इस स्कीम के महत्त्व, इसकी सफलता की पूर्व-शर्तों सहित अन्य महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे।

क्या है “राष्ट्रीय स्वास्थ्य सरंक्षण स्कीम”?

  • मोदी केयर के रूप में चर्चित राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण स्कीम के तहत कुल आबादी के 40 प्रतिशत यानी 10 करोड़ परिवारों को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आने पर पाँच लाख रुपए तक की चिकित्सा बीमा सुरक्षा दी जाएगी।
  • इसमें तमाम सरकारी अस्पताल और कुछ चुनिंदा निजी अस्पताल शामिल होंगे। इसे अगले वित्त वर्ष में क्रियान्वयित किया जाएगा।
  • आरंभ में 10 करोड़ से अधिक गरीब एवं कमज़ोर परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) को इसके दायरे में लाया जाएगा।
  • उल्लेखनीय है कि इसके तहत द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु प्रति परिवार 5 लाख रुपए प्रतिवर्ष तक का कवरेज प्रदान किया जाएगा।
  • यह विश्व का सबसे बड़ा सरकारी वित्तपोषित स्वास्थ्य देख-रेख कार्यक्रम होगा।
  • इस योजना के लिये इस वर्ष 2000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
  • राज्यों के पास इस योजना को लागू करने के लिये ट्रस्ट मॉडल या बीमा कंपनी आधारित मॉडल अपनाने का विकल्प है, हालाँकि ट्रस्ट मॉडल को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • मौजूदा राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना गरीब परिवारों को 30,000 रुपए तक का वार्षिक कवरेज प्रदान करती है।
  • स्वास्थ्य सुरक्षा को और अधिक उच्च स्तर पर ले जाने में यह योजना सहायक होगी।

इस स्कीम की सफलता की पूर्व-शर्तें क्या हैं?

Health Budget

  • कवर की जाने वाली शर्तों को परिभाषित करने की ज़रूरत:
    ♦ इस स्कीम में सार्वजनिक और निजी अस्पतालों के साथ 'रणनीतिक क्रय' के माध्यम से लाभार्थियों को अस्पताल में भर्ती होने के खर्चों का भुगतान करना है।
    ♦ ऐसे में वे कौन सी सेवाएँ होंगी जिनके एवज़ में भुगतान किया जाएगा और किन शर्तों के तहत भुगतान किया जाएगा अच्छे से परिभाषित होनी चाहियें।
  • लागत प्रभावी बनाने की चुनौती:
    ♦ जैसा की हम जानते हैं कि इस स्कीम में निजी और सरकारी दोनों ही अस्पतालों को शामिल किया जाएगा, ऐसे में इलाज को लागत-प्रभावी बनाने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
    ♦ ज़्यादा-से-ज़्यादा भुगतान के लालच में अस्पताल इलाज के खर्चों को बढ़ा-चढ़ाकर बताएंगे तो इस स्कीम को लागू करना अत्यंत ही खर्चीला साबित हो सकता है।
  • चिकित्सा मानकों को बनाए रखने की चुनौती:
    ♦ स्कीम को लागत-प्रभावी बनाने की जुगत में चिकित्सा मानकों से समझौता किये जाने के मामले सामने आ सकते हैं।
    ♦ अतः स्कीम की सफलता बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि लागत प्रभावशीलता के साथ-साथ चिकित्सकीय मानकों का भी पालन किया जाए। 

समस्याएँ एवं चुनौतियाँ

Budget Problem

  • नज़रअंदाज़ हैं प्राथमिक चिकित्सा क्षेत्र की समस्याएँ:
    ♦ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिये कम आवंटन और इसके शहरी घटक पर कम ध्यान देने के कारण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के नज़रअंदाज़ होने का संकट उत्पन्न हो गया है।
    ♦ यदि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ उन्नत स्थिति में रहेंगी तो द्वितीय व तृतीयक स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की लागत में कमी भी आएगी और स्वास्थ्य सेवाएँ और बेहतर भी बनेंगी।
  • बजट आवंटन की समस्या:
    ♦ विदित हो कि इस स्कीम के लिये वर्तमान में आवंटित ₹ 2,000 करोड़ से अधिक की आवश्यकता होगी। यदि यह स्कीम अक्तूबर 2018 में शुरू होती है, अगले बजट तक 5,000-6,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।

आगे की राह

Health

  • राज्यों की व्यापक भूमिका:
    ♦ वित्तीय रूप से इस योजना की लागत सालाना 10,000-12,000 करोड़ रुपए होगी। इसके लिये उपकरों द्वारा फंड जुटाए जाने के बावजूद राज्यों से लागत का कम-से-कम 40 प्रतिशत जुटाना होगा।
    ♦ विदित हो कि सार्वजानिक स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है। अतः राज्यों को इस संबंध में व्यापक भूमिका निभानी होगी और स्वास्थ्य लागत को बढ़ाना होगा।
  • चिकित्सकों की संख्या में वृद्धि:
    ♦ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1000 की जनसंख्या पर एक डॉक्टर का होना आवश्यक है, लेकिन भारत में 1700 लोगों की स्वास्थ्य देखभाल की ज़िम्मेदारी एक डॉक्टर पर है।
    ♦ अतः डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मियों की कमी और सार्वजनिक या निजी अस्पतालों की कम संख्या जैसे मुद्दों का समाधान खोजना होगा।
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