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एक नई टेक्सटाइल नीति की ज़रूरत क्यों?

  • 12 Jul 2017
  • 7 min read

सन्दर्भ
औपनिवेशिक शासन ने भारतीय पारंपरिक वस्त्र उद्योग की जड़ें खोद दी। आज़ादी मिलने के बाद उम्मीद थी कि जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुँच चुके वस्त्र उद्योग की सुध ली जाएगी, हालाँकि ऐसा हुआ नहीं। यही कारण है कि पानी और बिजली की ही तरह आज भी राजनैतिक दलों के चुनावी घोषणा-पत्रों में बुनकरों, कारीगरों और हथकरघा कामगारों की बात की जाती है, लेकिन उनकी हालत में कितना सुधार हुआ है, यह सर्वविदित है। इस लेख में हम यह देखेंगे कि क्यों आज भारत को एक नई टेक्सटाइल नीति की ज़रूरत है?

क्यों महत्त्वपूर्ण है टेक्सटाइल क्षेत्र ?

  • विदित हो कि भारत में कृषि क्षेत्र के बाद टेक्सटाइल क्षेत्र ही है, जो लोगों को सर्वाधिक रोज़गार उपलब्ध कराता है।
  • दरअसल, टेक्सटाइल क्षेत्र में धागे कातने से लेकर वस्त्रों की सिलाई और बुनाई भी शामिल है और इस क्षेत्र ने लगभग 32 मिलियन लोगों को रोज़गार दे रखा है।
  • उल्लेखनीय है कि नीति आयोग के विज़न डॉक्यूमेंट के अनुसार अगले 7 वर्षों में यह क्षेत्र 64 मिलियन रोज़गार मुहैया करा सकता है।
  • टेक्सटाइल उद्योग ऐसा क्षेत्र है, जो कृषि और उद्योग के बीच सेतु का कार्य करता है। कपास की खेती हो या रेशम का उत्पादन, इस उद्योग पर बहुत कुछ निर्भर करता है।
  • दरअसल, टेक्सटाइल उद्योग, इन कृषि उत्पादों को बाज़ार मुहैया कराने का काम करता है। इसकी एक पटरी पर किसान है और दूसरी पर उद्योग है ।
  • टेक्सटाइल क्षेत्र न केवल लाखों परिवारों का पेट भरने का काम करता है, बल्कि यह पारंपरिक कौशल और विरासत का भंडार होने के साथ-साथ हमारी संस्कृति का वाहक भी है।
  • कारीगर, बुनकर और हथकरघा चलाने वाले श्रमिक उस कौशल के संरक्षक हैं, जो उन्हें विरासत में मिली है।

टेक्सटाइल क्षेत्र की वर्तमान चिंताएँ क्या हैं ?

  • भारत का टेक्सटाइल क्षेत्र स्वचालन, डिजिटल प्रिंटिंग और ई-कॉमर्स की निरंतर वृद्धि के कारण एक बदलाव के दौर से गुजर रहा है।
  • संभावना व्यक्त की जा रही है कि स्वचालन और डिजिटल प्रिंटिंग जैसी तकनीकों से टेक्सटाइल क्षेत्र के सम्पूर्ण स्वरुप में बदलाव हो सकता है।
  • बड़ा सवाल यह है कि इस बदलाव के दौर में प्रशासन की क्या भूमिका होनी चाहिये? 
  • इस बदलाव के दौर में, कौन बचा रहता है, कौन बर्बाद होता है या फिर कौन नवाचार करता है, क्या हमें यह सब मुक्त बाज़ार की शक्तियों पर छोड़ देना चाहिये? उत्तर होगा, बिलकुल नहीं।

क्या हो आगे का रास्ता?

  • टेक्सटाइल क्षेत्र, इस परिवर्तन के साथ सामंजस्य बैठा सके, इसके लिये वर्ष 1999 की राष्ट्रीय टेलीकॉम नीति की तर्ज़ पर ही हमें एक ‘राष्ट्रीय टेक्सटाइल नीति’ (national textile policy) की ज़रूरत है।
  • विदित हो कि वर्ष 1999 में भारत सरकार एक टेलीकॉम नीति लेकर आई थी, जिसके माध्यम से कुछ क्रान्तिकारी परिणाम हासिल किये गए।
  • ध्यातव्य है कि पिछले 17 वर्षों से भारत में एक ही टेक्सटाइल नीति के तहत काम होता आ रहा है। अतः यह उपयुक्त समय है जब एक प्रभावी, साहसिक और भविष्य की ज़रूरतों का ध्यान रखने वाला खाका तैयार किया जाए।

किन बातों का रखना होगा ध्यान ?

  • दरअसल, पहले पूरे विश्व में टेक्सटाइल क्षेत्र में एक अनुचित पेटेंट कानून लागू हुआ करता था, जिसे मल्टी फाइबर एग्रीमेंट के नाम से जाना जाता है, लेकिन वर्ष 2005 में इसे खत्म कर दिया गया।
  • तदोपरान्त केवल भारत को छोड़कर समूची दुनिया के टेक्सटाइल क्षेत्र में सुधार दिखने लगा। भारत को इसके पीछे के कारणों की पहचान करनी होगी और उनकी पुनरावृत्ति नहीं करनी होगी।
  • भारत कपास के साथ-साथ जूट, रेशम और पॉलिस्टर एवं अन्य सिंथेटिक वस्त्रों का भी उत्पादन करता है, लेकिन यह दोषपूर्ण नीतियों का ही प्रभाव है कि हम आज भी कपास केन्द्रित टेक्सटाइल उद्योग तक ही सीमित हैं, जबकि हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश ने जूट उत्पादन के दम पर अपनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री को बदलकर रख दिया है।
  • भारत का टेक्सटाइल क्षेत्र के उत्पादन में सूती वस्त्रों का हिस्सा 70 प्रतिशत है, जबकि वैश्विक टेक्सटाइल उद्योग के उत्पादन में महज़ 30 प्रतिशत है। यह भी हमारी टेक्सटाइल उद्योग के पिछड़ने का एक महत्त्वपूर्ण कारण है।

निष्कर्ष
विदित हो कि जीएसटी के लागू होने से पहले कपास से वस्त्र निर्माण की पूरी मूल्य श्रृंखला को अप्रत्यक्ष करों से मुक्त रखा गया था, जबकि सिंथेटिक धागों से वस्त्र निर्माण करने वाली कंपनियों पर 12 प्रतिशत का उत्पाद शुल्क देना पड़ता था। यही कारण है कि सिंथेटिक फाइबर का उत्पादन करने वाली सूरत और अहमदाबाद की कई कंपनियाँ बंद हो गईं। हालाँकि, अब जीएसटी में भी सूती वस्त्रों की मूल्य श्रृंखला और सिंथेटिक फाइबर से होने वाले निर्माण की मूल्य श्रृंखला के लिये अलग-अलग दरें निर्धारित की गई हैं, जो चिंताजनक है, क्योंकि हमें अब एक तटस्थ टेक्सटाइल नीति की ज़रूरत है। चीन में श्रमिकों के वेतन में हो रही वृद्धि से संभावना बन रही है कि श्रम आधारित टेक्सटाइल उद्योग अब भारत की तरफ रुख करेगा। यह भारत के लिये एक सुनहरा अवसर है, लेकिन यह सब तभी संभव है, जब हमारे पास एक नई राष्ट्रीय टेक्सटाइल नीति होगी।

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