क्यों बना है ‘आरटीआई’ विवाद का विषय? | 27 May 2017
संदर्भ
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में आरटीआई विवाद का विषय बन चुका है| पिछले कुछ समय में लगभग 20,000 मामलों को संज्ञान में लेते हुए यह देखा गया था कि इनमें से अधिकतर मामले आरटीआई के उपयोगकर्ताओं और ‘सार्वजनिक सूचना अधिकारियों’ (public information officers-PIO) से संबंधित थे| सामान्यतः सार्वजनिक सूचना अधिकारी उन आवेदकों को कहा जाता है जो नियमित रूप से ब्लैकमेलर (blackmailers) और उत्पीड़कों के रूप में आरटीआई आवेदनों को जमा करते हैं तथा इस अधिनियम का दुरुपयोग भी करते हैं|
महत्त्वपूर्ण तथ्य
- आरटीआई आवेदकों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया गया है-
→ वे लोग जो सरकार में भ्रष्टाचार अथवा मध्यस्थता को उजागर करने के उद्देश्य से आरटीआई आवेदन दाखिल करते हैं|
→ वे लोग जो अपने साथ हुई गलत चीज़ों को सही साबित करने के उद्देश्य से बार-बार आवेदन करते हैं|
→ वे लोग जो आरटीआई का उपयोग लोगों को ब्लैकमेल करने के लिये करते हैं| इस श्रेणी में बड़े पैमाने पर भवनों, खनन अथवा कुछ अन्य प्रकार की गतिविधियों को शामिल किया जाता है|
→ वे लोग जो इस अधिनियम का उपयोग सरकारी अधिकारियों को परेशान करने के उद्देश्य से करते हैं|
- यह पाया गया है कि आरटीआई के तहत प्राप्त होने वाले कुल आवेदनों में से 10% से भी कम आवेदन प्रथम श्रेणी के थे| प्रायः सरकारी अधिकारियों से ब्लैकमेलरों के कार्य के बारे में पूछा जाता रहा है| इस पर अधिकारियों का कहना है कि आरटीआई के ब्लैकमेलर गैर-कानूनी काम करने वाले व्यक्तियों को डराते हैं तथा उनसे धन लेते है| ध्यातव्य है कि गैर-कानूनी कार्य करने वाले पीड़ितों के लिये सहानुभूति बहुत मायने रखती है|
- यह तथ्य कि आरटीआई के प्रावधानों का दुरुपयोग हो रहा है, निर्विवाद है| चूँकि इसके माध्यम से केवल नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षण किया जाता है| भारत में अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत शामिल किया गया है तथा समय के साथ ही इसके दायरे में भी विस्तार किया जाता रहा है|
- दरअसल, अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उपयुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आरटीआई से छूट प्रदान की गई है| यदि आरटीआई को समाप्त कर दिया जाता है तो वह दिन दूर नहीं जब नागरिकों को अपनी पहचान बनाए रखने और बोलने के भी कारण बताने होंगे| किसी व्यक्ति को उसके बोलने अथवा लिखने के तरीके से ही पहचाना जा सकता है| प्रश्न यह उठता है कि क्या अब नागरिकों को यह मांग करनी चाहिये कि केवल उन्हीं व्यक्तियों को बोलने की अनुमति दी जाएगी जो अपने वक्तव्य का कारण बताएंगे|
- कुछ वर्ष पूर्व, सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि आरटीआई के दुरुपयोग को अनुमति प्रदान नहीं की जानी चाहिये| न्यायालय के अनुसार, इसका उपयोग राष्ट्रीय विकास और अखंडता में अवरोध उत्पन्न करने, शांति व्यवस्था को भंग करने तथा नागरिकों के मध्य शांति और सद्भाव को नष्ट करने के लिये नहीं होना चाहिये| सर्वोच्च न्यायालय का मानना था कि आरटीआई के आवेदनों में अधिकारियों का 75% समय नष्ट हो सकता है|
- विदित हो कि भारत में प्रतिवर्ष दर्ज होने वाले आरटीआई आवेदनों की संख्या 10 मिलियन से कम है, जबकि यहाँ 20 मिलियन से भी अधिक सरकारी कर्मचारी हैं| यदि इनमें से प्रत्येक कर्मचारी काम के 250 दिनों में से प्रत्येक दिन छह घंटे काम करता है तो मामलों का निपटारा किया जा सकता है| एक वर्ष में काम के घंटों की संख्या 30,000 मिलियन होती है| यदि कोई कर्मचारी एक आरटीआई आवेदन में औसतन तीन घंटे का समय लेता है तो 10 मिलियन आवेदनों के लिये केवल 30 मिलियन घंटों की ही आवश्यकता होगी|
- संक्षेप में, आरटीआई के सभी आवेदनों के संबंध में सूचना एकत्रित करने के लिये सरकारी कार्यबल को अपने कार्य के समय का 3.2% समय इन पर व्यतीत करना होगा|
- यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस अधिनियम के अंतर्गत सार्वजानिक प्राधिकरणों को उनके दायित्वों का निर्वहन करने का प्रावधान नहीं है, जबकि नागरिकों को उनके मूल अधिकार का प्रयोग करने का प्रावधान है|
- प्रभावशाली लोग आरटीआई से संतुष्ट नहीं हैं अतः वे इसके दुरुपयोग के प्रश्न को उठाते रहते हैं| कई प्रतिष्ठित व्यक्ति आरटीआई का विरोध करते हैं और सरकार पर इसे प्रतिबंधित करने का दबाव बनाते हैं| यह सर्वमान्य है कि वक्तव्यों, पुस्तकों, साहित्यिक कार्यों, कला आदि को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत शामिल किया गया है|
- हालाँकि, जब भी आरटीआई के उपयोगकर्ताओं का तिरस्कार किया जाता है तो जनमानस इसके विरोध में कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता है, जबकि इसे भी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत शामिल किया गया है| प्रभावशाली लोगों का कहना है कि वे लोगों के अधिकारों के लिये अपनी जान को जोखिम में डाल सकते हैं परन्तु लोग बेवकूफ हैं क्योंकि वे आरटीआई का उपयोग इस प्रकार से करते हैं जिसे वे स्वीकृति नहीं दे सकते हैं|
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
- यह भारत सरकार का एक अधिनियम है जिसे सूचना अधिनियम, 2002 के तहत मिली पूर्ण स्वतंत्रता को प्रतिस्थापित करने तथा नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया था|
- इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने का अनुरोध कर सकता है जो उसे 30 दिन के अंदर मिल जानी चाहिये|
- इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सार्वजानिक प्रधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेगें|
- संसद द्वारा इसे 15 जून, 2005 को पारित किया गया था तथा यह 12 अक्तूबर, 2005 से प्रभाव में आया|
- यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर (यहाँ जम्मू और कश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम प्रभावी है) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों पर लागू होता है|
- इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय, संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियम द्वारा गठित संस्थान और निकाय शामिल हैं|
निष्कर्ष
एक सूचना प्राप्तकर्ता केवल दर्ज सूचना को ही प्राप्त कर सकता है| यदि कोई सूचना गलत है तो इसके लिये आरटीआई को दोषी ठहराना अनुचित है| भारत को आरटीआई के प्रावधानों के मामले में विश्व के प्रमुख पाँच देशों तथा इसके क्रियान्वयन के मामले में विश्व में 66वाँ स्थान प्राप्त है| इस कानून में संशोधन नहीं होना चाहिये| इसके अतिरिक्त, इस अधिनियम के प्रति कठोर रुख ने लोगों की मानसिकता में इस कदर परिवर्तन कर दिया है कि उन्हें लगता है कि इस अधिनियम को समाप्त किया जाना चाहिये, जोकि अर्थहीन है|