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क्यों अवांछनीय है ‘मेगा स्पीशीज़ मायोपिया’?

  • 02 Dec 2017
  • 6 min read

संदर्भ

  • वन्यजीवों के सरंक्षण के संबंध में उनकी आबादी के आधार पर प्रतिबद्धताएँ तय करना एक उचित कदम है।
  • लेकिन, आईयूसीएन ( International Union for Conservation of Nature- IUCN) द्वारा जारी रेड-लिस्ट में एक ही वर्ग (category) से संबंध रखने वाले दो जीवों को लेकर अलग-अलग मानदंड तय करना तथा कम या अधिक संवेदनशीलता दिखाना उचित नहीं कहा जा सकता।
  • यह इसलिये हो रहा है, क्योंकि हम ‘मेगा स्पीशीज़ मायोपिया’ (Mega species myopia) से ग्रसित हैं।

क्या है मेगा स्पीशीज़ मायोपिया?

  • देश के नेशनल पार्क से किसी बाघ की मौत की खबर अगले दिन समाचार-पत्रों की हैडलाइन बन जाती है। अधिकारी वर्ग सचेत हो उठता है और पशु प्रेमियों का विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाता है।
  • जब हाथी, गैंडा और तेंदुए जैसे बड़े जानवरों का शिकार हो जाए, तब भी ऐसी ही गतिविधियाँ देखने को मिलती हैं।
  • लेकिन किसी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड या फिर किसी पैंगोलिन की मौत की खबर हमारी व्यवस्था को प्रभावित क्यों नहीं करती, जबकि ये जीव विलुप्ति के कगार पर हैं।
  • वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर अपनाए जा रहे दोहरे मापदंड जिसमें कि बड़े वन्यजीवों के सरंक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जबकि छोटों को नज़रंदाज़ किया जाता है को ‘मेगा स्पीशीज़ मायोपिया’  कहा जा रहा है।

कैसे मिलता है मेगा स्पीशीज़ मायोपिया को बढ़ावा?

क्या है वर्तमान स्थिति?

  • वर्ष 1960 के दौर में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के मुख्य शिकार ‘चीतल’ हुआ करते थे और तब इनकी संख्या भी अभूत अधिक थी, लेकिन आज यहाँ इनकी संख्या मात्र 20 रह गई है।
  • ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ राजस्थान का राजकीय पक्षी और दुर्लभ प्रजातियों में से एक है, जिनका अस्तित्व संकट में है।
  • माउस हिरण दक्षिण भारत, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल के साल वृक्ष वनों में पाए जाते हैं।
  • वे गिरते हुए साल वृक्ष के अंदर अपना परिवार बढ़ाते हैं, लेकिन इन पेड़ों को ईंधन की लकड़ी के रूप में उपयोग किया जाता है और इससे उनकी आबादी बुरी तरह से प्रभावित हुई है।
  • पैंगोलिन की खाल और मांस के लिये इतना शिकार किया गया है कि यह विलुप्तप्राय हो गया। इसकी खाल औषधीय गुणों से युक्त होती है।

मेगा स्पीशीज़ मायोपिया के प्रभाव

  • मेगा स्पीशीज़ मायोपिया का सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव यह होगा कि इससे खाद्य श्रृंखला (फूड चैन) प्रभावित हो सकती है।
  • सभी जीवों का खाद्य श्रृंखला में एक निश्चित स्थान है, यदि केवल बड़ों जीवों का ही सरंक्षण किया गया तो उनकी बढ़ी हुई आबादी के लिये भोजन जुटाना दुष्कर हो जाएगा।
  • अंततः जिन जीवों का प्रत्यक्ष सरंक्षण किया जा रहा है उनका भी जीवन अप्रत्यक्ष रूप से उनसे प्रभावित होगा, जिनके सरंक्षण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

क्या है फूड चैन?

  • पादपों एवं जन्तुओं के एक-दूसरे के भोजन बनने और बनाने की प्रक्रिया में ऊर्जा का स्थानांतरण होता है और यही ऊर्जा का स्थानांतरण खाद्य श्रृंखला कहलाती है।
  • उल्लेखनीय है कि श्रृंखला के प्रत्येक स्तर पर ऊर्जा का अत्यधिक ह्रास होता है। किसी खाद्य श्रृंखला में एक प्राणि उसे प्राप्त होने वाली ऊर्जा की मात्रा का 10 प्रतिशत ही आगे प्रसारित कर पाता है।
  • अतः खाद्य श्रृंखला जितनी छोटी होगी, जीवों के लिये उतनी अधिक ऊर्जा उपलब्ध होगी, जबकि बड़ी होती खाद्य श्रृंखला में कम ऊर्जा उपलब्ध रहती है।

एक स्तर से दूसरे स्तर तक कम ऊर्जा क्यों पहुँचती है?

  • जब ऊर्जा एक रूप से दूसरे में बदलती है, तो कुछ ऊर्जा का ह्रास हो जाता है। इसे हम एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं।
  • यदि यह मान लिया जाए कि जंगल के किसी भाग में प्रतिदिन इतनी सूर्य की रौशनी आती है कि 100 कैलोरी ऊर्जा बन सके।
  • लेकिन ऐसा होता नहीं है, क्योंकि अधिकांश सूर्य का प्रकाश अवशोषित नहीं हो पाता है, जबकि कुछ प्रकाश परावर्तित हो जाता है।
  • उसमें भी सूर्य के अवशोषित प्रकाश का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही हरे पौधों द्वारा भोजन बनाने के लिये उपयोग किया जाता है।
  • इसी तरह पौधों को आहार बनाने वाले जीव भी सम्पूर्ण आहार को ऊर्जा में परिवर्तित नहीं कर पाते और यही प्रक्रिया आगे के स्तरों पर भी जारी रहती है।

निष्कर्ष

हमने वन्यजीवों के सरंक्षण के समुचित प्रावधान किये हैं, यदि समस्या है तो वह इनके कार्यान्वयन से संबंधित है। जीवों का सरंक्षण आईयूसीएन की रेड-लिस्ट के आधार पर की जानी चाहिये। पिछले कुछ वर्षों में बाघों की संख्या बढ़ी है, लेकिन यदि उनके आहार बनने वाले जीवों की संख्या घटती रही तो खाद्य श्रृंखला असंतुलित हो जाएगी।

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