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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्यों हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं करना चाहता है भारत ?

  • 07 Aug 2017
  • 9 min read

हाल ही में अमेरिकी संसद में एक अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण विधेयक पेश किया गया। इस विधेयक का नाम है- ‘बिंदू फिलिप्स एंड डेवन डेवनपोर्ट इंटरनेशनल चाइल्ड एबडक्सन रिटर्न एक्ट, 2017’ (Bindu Philips and Devon Davenport International Child Abduction Return Act, 2017)। विदित हो कि इस विधेयक में उन देशों को दण्डित करने की बात की गई है, जो अपहृत बच्चों की वापसी पर अमेरिकी अदालत के आदेशों का पालन नहीं करते हैं। आरम्भ के दो-चार वाक्यों को पढ़ने के बाद यह लगना स्वाभाविक है कि अमेरिकी संसद में पेश किसी विधेयक से हमें क्या लेना है? लेकिन ऐसा नहीं है, यह अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम है, जिससे भारत के हित जुड़े हुए हैं।

क्या है मामला ?

  • दरअसल, बिंदु फिलिप्स और डेवन डेवनपोर्ट दो महिलाएँ हैं। बिंदु फिलिप्स जहाँ एक इंडो-अमेरिकन है वहीं  डेवन डेवनपोर्ट एक ब्राज़ील-अमेरिकन महिला है। इन दोनों महिलाओं ने एक अमेरिकी कोर्ट में शिकायत दर्ज़ कराई है कि उनके पति बलपूर्वक उनके बच्चों को भारत और ब्राज़ील लेकर चले गए हैं।
  • अमेरिका उन देशों में से एक है, जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय बाल अपहरण के नागरिक पहलुओं को लेकर 1980 के हेग कंवेंशन के साथ प्रतिबद्धता जताई है, जबकि भारत, एनआरआई माता-पिता के बीच विवाद होने या अलग होने पर उनके बच्चों की सुरक्षा को लेकर अब तक कोई कानून नहीं बना पाया है। उल्लेखनीय है कि भारत ने हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर भी नहीं किया है।
  • विदित हो कि इस वर्ष फरवरी में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने हेग समझौते पर राष्‍ट्रीय परामर्श बैठक का आयोजन किया था। इस विषय के विभिन्‍न पहलुओं पर विचार करने और अपनी सिफारिश देने के लिये पंजाब और हरियाणा उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति श्री राजेश बिंदल की अध्‍यक्षता में एक बहुसदस्‍यीय समिति बनाई गई थी। इस समिति ने एक विचार पत्र तैयार किया है।

क्यों तैयार किया गया है यह विचार-पत्र ?

  • मसलन, पारदेशीय विभागों में वृद्धि तथा आज के संबंधों में शामिल जटिलताओं को देखते हुए अभिभावकों और बच्‍चों के अधिकारों की रक्षा राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय महत्त्व का विषय है।
  • विदित हो कि सीमा कपूर बनाम दीपक कपूर मामले में पंजाब और हरियाणा उच्‍च न्‍यायालय ने इस विषय को आगे विचार के लिये विधि आयोग को भेज दिया। आयोग से विषय में शामिल अंतर देश, परिवारों में अंतर, माता-पिता बाल अप‍हरण जैसे पक्षों पर विचार करने को कहा गया।
  • साथ ही यह भी कहा गया कि विधि आयोग विचार करे कि क्‍या बाल अपहरण से संबंधित पर हेग समझौते पर हस्‍ताक्षर के लिये उचित कानून बनाया जाना चाहिये?
  • विधि आयोग ने अपनी 263वीं रिपोर्ट में सरकार को परामर्श दिया कि हेग समझौता 1980 के प्रावधानों को देखते हुए इस विषय पर विचार की आवश्‍यकता है। तत्पश्चात न्‍यायमूर्ति श्री राजेश बिंदल की अध्‍यक्षता में एक बहुसदस्‍यीय समिति बनाई गई।

वर्तमान स्थिति

  • पिछले महीने पंजाब एनआरआई आयोग के अध्यक्ष, एक पारिवारिक कानून विशेषज्ञ और विभिन्न मंत्रालयों के छह प्रतिनिधियों तथा पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की एक समिति ने सार्वजनिक सुझावों के लिये एक अवधारणा नोट जारी किया था। विदित हो कि इस समिति को बड़ी संख्या में टिप्‍पणियाँ और सुझाव प्राप्त हुए हैं।

क्या है अंतर्राष्ट्रीय बाल अपहरण के नागरिक पहलुओं को लेकर 1980 का हेग कंवेंशन ?

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जो उन बच्चों की त्वरित वापसी को सुनिश्चित करता है, जिनका "अपहरण" कर उन्हें उस जगह पर रहने से वंचित कर दिया गया है, जहाँ वे रहने के अभ्यस्त हैं।
  • अब तक 97 देश इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव के बावजूद, भारत ने अभी तक इस कन्वेंशन की पुष्टि नहीं की है।
  • कन्वेंशन के तहत हस्ताक्षर करने वाले देशों को उनके अभ्यस्त निवास स्थान से गैरकानूनी ढंग से निकाले गए बच्चों का पता लगाने और उनकी वापसी को सुनिश्चित करने के लिये एक केन्द्रीय प्राधिकरण का निर्माण करना होगा।
  • मान लिया जाए कि किसी देश ने हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर कर रखा है और इस मसले पर उस देश का अपना कानून कोई अलग राय रखता हो तो भी उसे कन्वेंशन के नियमों के तहत ही कार्य करना होगा।

क्यों इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने से कतरा रहा है भारत ?

  • विदित हो कि इस कन्वेंशन को लेकर पहला विवाद इसके नाम से ही संबंधित है। ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल अपहरण के नागरिक पहलुओं को लेकर 1980 का हेग कंवेंशन’ उन बच्चों की बात करता है, जिनका ‘अपहरण’ किया गया है। इस मुद्दे पर विचार करने के दौरान विधि आयोग ने भी कहा था कि कैसे कोई माता-पिता अपने ही बच्चे का ‘अपहरण’ कर सकते हैं।
  • विदित हो कि विदेशी न्यायालयों द्वारा दिये गए निर्णय, भारत के लिये बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन अब हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने के उपरांत हम स्वयं के कानूनों के तहत फैसला लेने के बजाय अंतर्राष्ट्रीय नियमों को मानने के लिये बाध्य हो जाएंगे।
  • शादी के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों में बसने वाली कई महिलाओं का उनके पतियों द्वारा बहिष्कार कर दिया जाता है। ऐसे में वे अपने बच्चों के साथ भारत में रहने लगती हैं। यदि भारत ने इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किया तो उन्हें अपने बच्चों के बिना रहना होगा।

निष्कर्ष

  • इसमें कोई शक नहीं है कि हेग कन्वेंशन एक सार्थक उद्देश्यों वाला कन्वेंशन है, लेकिन भारत की वैधानिक व्यवस्था कुछ ऐसी है कि किसी अन्य देश के अदालती फैसले को बाध्यकारी नहीं माना जा सकता है।
  • यदि कोई बच्चा भारत लाया जाता है और उसके अभ्यस्त निवास स्थान देश की अदालत उसे वापस लाने का निर्णय दे देती है, तब भी वह ऐसा करने में असफल रहेगा।
  • विदित हो कि इस तरह के मामलों में सुनवाई के लिये भारत में अभी भी संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 (Guardians and Wards Act, 1890) का ही सहारा लिया जाता है। अतः बिना किसी कानूनी सुधार के हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करना निरर्थक ही साबित होगा।
  • हेग कन्वेंशन बच्चों के अधिकारों से संबंधित और अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है। यूरोप, अमेरिका के अलावा अरब देशों में भी बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय रहते हैं और इन परिस्थितियों में यह मुद्दा और भी गंभीर हो जाता है।
  • यह भी प्रमाणित है कि बच्चे का समुचित विकास उसी परिवेश में हो पाता है, जहाँ वह रहने को अभ्यस्त है। बच्चों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिये देश को हस्तक्षेप करना ही चाहिये।
  • यदि भारत हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं भी करता है तो विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संधियों के माध्यम से इस समस्या का हल किया जाना चाहिये।
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