अमेरिका-ईरान तनाव के नए आयाम | 01 Jul 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में अमेरिका-ईरान तनाव के नए आयाम व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
वर्ष 2020 के प्रारंभ में संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईरान की कुद्स फोर्स के प्रमुख और इरानी सेना के शीर्ष अधिकारी मेजर जनरल कासिम सुलेमानी सहित सेना के कई अन्य अधिकारियों को बगदाद हवाई अड्डे के बाहर हवाई हमले में मार गिराया था। इस घटना के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुँच गया था। अमेरिका ने इसे अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिहाज से उठाया गया कदम बताया था, तो वहीं ईरान ने इसे युद्ध का कारण (Act of War) माना था। इस घटना के पाँच माह बाद ईरान के एक न्यायालय ने ईरानी सेना के शीर्ष अधिकारी की हत्या करने व ईरान में आतंकवादी गतिविधियों को प्रायोजित करने के आरोप में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत 30 अन्य लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश ज़ारी किया है। इसके साथ ही अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिये इंटरपोल (Interpol) से रेड कॉर्नर नोटिस (Red Corner Notice) जारी करने की भी माँग की गई है। निश्चित रूप से ईरान का यह कदम पश्चिम एशिया में व्याप्त तनाव को बढ़ाने वाला है।
ऐसे में यह आवश्यक है कि दोनों देशों के संबंधों का विश्लेषण कर यह जानने का प्रयास किया जाए कि इस प्रकार के घटनाक्रम से पश्चिम एशिया व भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं?
कौन थे मेजर जनरल कासिम सुलेमानी?
- ईरान के सबसे प्रसिद्ध व्यक्तियों में से एक कासिम सुलेमानी को मध्य-पूर्व में सबसे शक्तिशाली मेजर जनरल के रूप में देखा जाता था। साथ ही ईरान के भावी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में उनकी दावेदारी भी काफी प्रबल दिखाई दे रही थी।
- कमांडर सुलेमानी के विषय में यह कहा जाता था कि मौजूदा ईरान को समझने के लिये यह ज़रूरी है कि पहले आप कासिम सुलेमानी को समझें।
- कमांडर सुलेमानी ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (Islamic Revolutionary Guard Corps-IRGC) की कुद्स फोर्स (Quds Force) के प्रमुख थे।
- विदित है कि बीते वर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका ने IRGC को आतंकी संगठन घोषित करते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- वर्ष 1998 से कुद्स फोर्स का प्रतिनिधित्व कर रहे कमांडर सुलेमानी न केवल ईरान के लिये खुफिया सूचनाओं को एकत्र करने और गुप्त सैन्य अभियानों के लिये प्रसिद्ध थे बल्कि वे ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खुमैनी से निकटता के लिये भी जाने जाते थे।
- कमांडर सुलेमानी ने ईरान के हालिया विदेशी अभियानों (मुख्य रूप से सीरिया और इराक) में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। सीरिया में बशर अल-असद के शासन को बचाने और दोनों देशों (सीरिया और इराक) में इस्लामिक स्टेट (IS) को पराजित करने में इनकी प्रमुख भूमिका थी।
किस तरह की नीतियाँ दोनों देश अपना रहे हैं?
- संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका ईरान पर ‘अधिकतम दबाव बनाने की नीति’ अपना रहा है। इसके लिये वह परमाणु समझौते से बाहर आने, आर्थिक प्रतिबंध लगाने और ईरानी सेना को आतंकवादी संगठन घोषित करने जैसे कदम उठा रहा है।
- ईरान: अमेरिका के खिलाफ ईरान ‘अधिकतम विरोध करने की नीति’ अपना रहा है। इसके लिये वह फारस की खाड़ी से निकलने वाले टैंकरों पर हमला करवाने, अमेरिकी ड्रोन को मार गिराने और यमन में सक्रिय हाउथी विद्रोहियों को सऊदी अरब के खिलाफ समर्थन देने जैसे कदम उठा रहा है।
अमेरिका-ईरान तनाव बढ़ने के कारण
- परमाणु करार का रद्द होना: वर्ष 2015 में, जर्मनी समेत संयुक्त राष्ट्र के पाँच स्थायी सदस्यों (P5+1) और ईरान के बीच एक परमाणु समझौता हुआ। समझौते के मुताबिक ईरान को अपने संवर्धित यूरेनियम भंडार को कम करने और अपने परमाणु संयंत्रों में संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षकों को पर्यवेक्षण की अनुमति देनी थी। इसके अलावा इस समझौते के तहत ईरान पर विनाशक हथियारों और मिसाइलों की खरीद करने पर भी रोक थी। अमेरिका इस समझौते के बदले ईरान को तेल और गैस के व्यापार, वित्तीय लेन देन, उड्डयन और जहाज़रानी क्षेत्रों में लागू प्रतिबंधों में ढील देने के लिये तैयार था। लेकिन अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी इस समझौते के विरोध में थी, उनके चुनावी घोषणा पत्र में यह मंतव्य था कि यदि रिपब्लिकन पार्टी सत्ता में आती है तो वे इस समझौते को रद्द कर देंगे। इसी के अनुसार ट्रंप प्रशासन ने इस परमाणु समझौते से बाहर होने का निर्णय लिया।
- ईरान पर प्रतिबंधों का आरोपण: ईरान की अर्थव्यवस्था कमज़ोर करने के उद्देश्य से अगस्त, 2018 में अमेरिकी प्रशासन ने वे सभी प्रतिबंध फिर से उस पर लगा दिए जिन्हें परमाणु करार के तहत हटा लिया गया था। अमेरिका का मानना था कि आर्थिक दबाव के चलते ईरान नए समझौते के लिये तैयार हो जाएगा और अपनी हानिकारक गतिविधियों पर रोक लगा देगा।
- IRGC को आतंकी संगठन घोषित करना: अमेरिका ने बीते वर्ष ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स अर्थात IRGC को आतंकी संगठन घोषित किया। ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी देश द्वारा किसी अन्य देश की सरकारी सुरक्षा एजेंसी को आतंकी संगठन घोषित किया गया हो। अमेरिका के इस कृत्य का जवाब देते हुए ईरान ने भी अमेरिकी सेना को आतंकी समूह करार दे दिया।
तनाव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- वर्ष 1979 की इस्लामिक क्रांति से पहले का शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी द्वारा शासित ईरान किसी भी मायने किसी यूरोपीय देश से कम नहीं था, लेकिन इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान में नए नेता अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी का आगमन हुआ, जो इस्लामिक क्रांति से पहले तुर्की, इराक़ और पेरिस में निर्वासित जीवन जी रहे थे।
- वह शाह पहलवी के नेतृत्व में ईरान के पश्चिमीकरण और अमेरिका पर बढ़ती निर्भरता के घोर विरोधी थे। ध्यातव्य है कि वर्ष 1953 में अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेग को अपदस्थ कर शाह पहलवी को सत्ता सौंप दी थी।
- ईरान में हुई वर्ष 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद वहाँ रूढ़िवादिता ने अपने पैर पसार लिये और खुमैनी की उदारता में भी अचानक से परिवर्तन आया। उन्होंने विरोधी आवाज़ों को दबाना शुरू कर दिया और इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की लोकतांत्रिक आवाज़ कहीं खो सी गई।
- इस क्रांति के तत्काल बाद ईरान और अमेरिका के राजनयिक संबंध समाप्त हो गए। राजधानी तेहरान में ईरानी छात्रों के एक समूह ने अमेरिकी दूतावास को अपने क़ब्ज़े में ले लिया और 52 अमेरिकी नागरिकों को 444 दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया।
- माना जाता है कि इसमें खुमैनी का भी मौन समर्थन था। ईरान ने अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर से शाह पहलवी को ईरान वापस भेजने की मांग की थी, जो इलाज कराने न्यूयॉर्क गए थे। क्रांतिकारियों ने अमेरिकी बंधकों को तब तक रिहा नहीं किया, जब तक रोनाल्ड रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं बन गए। इस दौरान शाह पहलवी की मिस्र में मौत हो गई और खुमैनी ने अपनी ताकत को और धर्म केंद्रित कर लिया।
- अमेरिकी तेल टैंकरों पर हमला: होर्मुज़ की खाड़ी में चार अमेरिकी तेल टैंकरों पर हमला किया गया। अमेरिका को लगता है कि यह हमला ईरान ने कराया है लेकिन ईरान ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। इसके बाद अमेरिकी प्रशासन ने इस क्षेत्र में अपनी स्थिति और मज़बूत करने के उद्देश्य से तकरीबन 1500 और सैनिकों को भेजने का निर्णय लिया।
- सऊदी अरामको पर ड्रोन हमला: सितंबर, 2019 को सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी सऊदी अरामको के दो बड़े क्षेत्र अबकीक और खुरैस पर भयानक ड्रोन हमले हुए। जिसके चलते अस्थाई तौर पर इन दोनों जगहों पर तेल उत्पादन प्रभावित हुआ। सऊदी अरब ने इस हमले का आरोप ईरान पर लगाया। अमेरिका ने भी इस हमले का आरोप ईरान पर मढ़ा और कहा कि उसके पास इस बात का प्रमाण है कि यह हमला ईरान द्वारा करवाया गया है। हालाँकि ईरान ने अपने ऊपर लगे इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। वहीं इस हमले का आधिकारिक उत्तरदायित्व यमन के हाऊथी विद्रोहियों ने लिया था। गौरतलब है कि यमन के हाऊथी विद्रोहियों को ईरान का समर्थन प्राप्त है।
क्या है इंटरपोल?
- इंटरपोल का पूरा नाम अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संस्था (International Criminal Police Organization) है।
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो विभिन्न देशों की पुलिस के बीच सहयोग कर अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों को पकड़ती है।
- वर्तमान में इंटरपोल में 194 सदस्य देश शामिल हैं।
- इसका मुख्यालय फ्राँस के लियोन (Lyon) शहर में है।
इंटरपोल द्वारा ज़ारी किये जाने वाले नोटिस
- रेड कॉर्नर नोटिस: यह नोटिस सभी इंटरपोल सदस्य देशों को संदिग्धों को ट्रैक करने और गिरफ्तार करने के लिये सुरक्षा एजेंसियों को अनुमति देता है ताकि उनके खिलाफ प्रत्यर्पण की कार्रवाई शुरू की जा सके।
- येलो कॉर्नर नोटिस : लापता नाबालिगों को खोजने या उन व्यक्तियों की पहचान करने (जो स्वयं को पहचानने में असमर्थ हैं) में सहायता प्राप्त करने के लिये ज़ारी किया जाता है।
- ब्लैक कॉर्नर नोटिस: अज्ञात शवों की जानकारी लेने के लिये ज़ारी किया जाता है।
- ग्रीन कॉर्नर नोटिस: किसी ऐसे व्यक्ति की आपराधिक गतिविधियों के बारे में चेतावनी जारी करना, जिसे सार्वजनिक सुरक्षा के लिये संभावित खतरा माना जाता है।
- ऑरेंज कॉर्नर नोटिस: किसी घटना, व्यक्ति, वस्तु या प्रक्रिया को सार्वजनिक सुरक्षा के लिये एक गंभीर और आसन्न खतरा मानकर चेतावनी देने के लिये ज़ारी किया जाता है।
- पर्पल कॉर्नर नोटिस: अपराधियों द्वारा उपयोग किये जाने वाले स्थानों, प्रक्रियाओं, वस्तुओं, उपकरणों, या उनके छिपने के स्थानों के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिये ज़ारी किया जाता है।
- ब्लू कॉर्नर नोटिस: यह नोटिस किसी अपराध के संबंध में व्यक्ति की पहचान, स्थान या गतिविधियों के बारे में अतिरिक्त जानकारी एकत्र करने के लिये ज़ारी किया जाता है।
पश्चिम एशिया पर पड़ने वाला प्रभाव
- यदि यह तनाव सैन्य संघर्ष में तब्दील हो जाता है तो इस तनाव का सबसे अधिक प्रभाव पश्चिम एशिया पर पड़ने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका कि सोच सीमित सैनिक संघर्ष के माध्यम से ईरान से अपनी मांगे मनवाने की है जो कि भ्रामक है। यदि अमेरिका, ईरान पर कार्यवाही करता है तो संभव है कि ईरान भी जवाबी कार्यवाही करेगा।
- यदि ईरान भी सैन्य कार्यवाही करता है तो वह अमेरिकी सहयोगियों जैसे- सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात तथा इसराइल में स्थित अमेरिका के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाएगा। जिससे पूरा खाड़ी क्षेत्र व पश्चिम एशिया संघर्ष का मैदान बन सकता है।
- इसके साथ ही यदि ईरान होर्मुज़ जलसंधि को भी बाधित करने का प्रयास करता है, तो खाड़ी देशों पर निर्भर कई देशों में तेल का संकट गंभीर रूप ले सकता है।
भारत पर प्रभाव
- अमेरिका व ईरान का हालिया घटनाक्रम भारत के हितों को खासा प्रभावित कर सकता है। ज्ञात है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, जो कच्चे तेल की अपनी 80 प्रतिशत से अधिक और प्राकृतिक गैस की 40 प्रतिशत ज़रूरतों को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर रहता है।
- हालाँकि भारत लगातार तेल सुरक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है, परंतु विगत कुछ वर्षों में देश का घरेलू तेल और प्राकृतिक गैस उत्पादन काफी धीमा रहा है, जिससे देश और अधिक आयात पर निर्भर हो गया है। ऐसे में तेल बाज़ार को प्रभावित करने वाला कोई भी घटनाक्रम भारत पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
- भारत के समक्ष एक राजनयिक चुनौती भी उत्पन्न हो गई है, क्योंकि भारत कभी नहीं चाहेगा कि उसे विश्व के दो महत्त्वपूर्ण देशों में से किसी एक का चुनाव करना पड़े। जहाँ एक ओर भारत अमेरिका जैसी बड़ी शक्ति के साथ अपने संबंधों को खराब नहीं करना चाहेगा, वहीं ईरान भी पश्चिमी एशिया में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहा है। इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान तक पहुँचने के लिये भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में अशांति का माहौल भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है।
- अमेरिका और ईरान के बीच चल रहा तनाव के कारण इन क्षेत्रों में रहने वाले भारतीयों को भी प्रभावित करने वाला है क्योंकि कोई भी तनावपूर्ण परिस्थिति उनके जीवन को जोखिम में डाल सकती है। तनाव के कारण कई सारे भारतीय लोगों को इन क्षेत्रों से सुरक्षित निकालना पड़ेगा।
- खाड़ी देशों में रह रहे भारतीय अपने सगे-संबंधियों को करीब प्रतिवर्ष लगभग 40 अरब डालर की मुद्रा रेमिटेंसेस के रूप में भेजते हैं। यदि मध्य-पूर्व में किसी भी प्रकार का संघर्ष होता है तो भारत को इसका आर्थिक खामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है।
प्रश्न- अमेरिका-ईरान तनाव में वृद्धि के क्या कारण हैं? दोनों देशों के मध्य किसी भी प्रकार का संघर्ष न केवल मध्य-पूर्व बल्कि भारत के आर्थिक व सामरिक हितों को प्रभावित करेगा। विश्लेषण कीजिये।