क्यों है भारत और अमेरिका के बीच कृषि सब्सिडी पर असहमति? | 17 Aug 2018
संदर्भ
बढ़ते वैश्विक व्यापार युद्ध में कृषि सब्सिडी एक प्रमुख मुद्दा बन गई है। मई 2018 में भारत में खाद्यान्न पर दिये जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नीति का अमेरिका द्वारा विरोध किया गया था। इसके जवाब में भारत ने चीन के साथ मिलकर मांग की थी कि विकसित देश 2019 के बाद से अपनी कृषि सब्सिडी का बड़ा हिस्सा छोड़ देंगे। उल्लेखनीय है कि दोनों देशों ने इस संदर्भ में 2017 में इसकी माँग की थी।
प्रमुख बिंदु
- भारत और अमेरिका के बीच असहमति की जड़ें कृषि समर्थन मूल्य की गणना हेतु अपनाए जाने वाले विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों को माना जाता है। अमेरिका ने आरोप लगाया है कि भारत गेहूँ और चावल के उत्पादन के लिये प्रदान की जाने वाली सब्सिडी के विषय में पूरी तरह से गलत रिपोर्ट पेश कर रहा है।
- प्रत्युत्तर में भारत ने दावा किया कि चावल के लिये प्रदान किया गया बाज़ार मूल्य समर्थन (market price support -MPS) 2013-14 में उत्पादन मूल्य का 5.45% था, जो 10% की निर्धारित सीमा से काफी नीचे था।
- बाज़ार मूल्य समर्थन, न्यूनतम समर्थन मूल्य (जिस पर सरकार चावल और कुछ अन्य फसलों को खरीदती है) और "बाहरी संदर्भ मूल्य" (External Reference Price-ERP) के बीच का अंतर है जिसका निर्धारण WTO द्वारा 1986-89 की कीमतों के आधार पर किया जाता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य
(Minimum Support Price- MSP)
- न्यूनतम समर्थन मूल्य वह न्यूनतम मूल्य होता है जिस पर सरकार किसानों द्वारा बेचे जाने वाले अनाज की पूरी मात्रा क्रय करने के लिये तैयार रहती है।
- जब बाज़ार में कृषि उत्पादों का मूल्य गिर रहा हो तब सरकार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों को क्रय कर उनके हितों की रक्षा करती है।
- सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा फसल बोने से पहले करती है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की संस्तुति पर वर्ष में दो बार रबी और खरीफ के मौसम में की जाती है।
अमेरिका का आरोप
- अमेरिका ने आरोप लगाया है कि वर्ष 2013-14 में चावल के लिये भारत का MPS उत्पादन मूल्य का 77% था। इसी प्रकार अमेरिका ने यह भी आरोप लगाया कि भारत गेहूँ के लिये नकारात्मक MPS की रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहा है, जबकि वास्तविक MPS उत्पादन मूल्य का लगभग 65% है।
- भारत और अमेरिका की गणना के बीच विसंगति के पीछे दो मुख्य कारण हैं- पहला डॉलर-रुपया विनिमय दर और दूसरा मात्रा की पसंद का विकल्प।
- हालाँकि इन दोनों मानकों के समायोजन पर यह पाया गया है कि दोनों देशों की फाइलिंग के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं था।
भारत की सब्सिडी पर अमेरिकी दावे अतिशयोक्तिपूर्ण
- अमेरिकी गणना के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि यह प्राप्त मात्रा की बजाय चावल और गेहूँ के कुल उत्पादन का उपयोग करता है। अकेले इस आधार पर समायोजन अमेरिका के दावों को काफी हद तक कमज़ोर कर देता है क्योंकि चावल और गेहूँ का आधे से भी कम उत्पादन सरकार द्वारा प्राप्त किया जाता है।
- दूसरा मुद्दा एक्सचेंज दरों का उपयोग है। भारत अपनी सब्सिडी को डॉलर में प्रदर्शित करता है।
- उदाहरण के लिये वित्तीय वर्ष 2013-14 के लिये चावल के 20,000 रुपए प्रति टन के न्यूनतम समर्थन मूल्य को 60.50 रुपए प्रति डॉलर की औसत विनिमय दर का उपयोग करके 325 डॉलर प्रति टन के रूप में सूचित किया गया है। चावल के लिये WTO द्वारा निर्धारित ERP 262.51 डॉलर प्रति टन है। इस प्रकार, भारत द्वारा अपने चावल उत्पादकों को दी गई सब्सिडी 62 डॉलर प्रति टन या 3,751 रुपए प्रति टन है।
- अमेरिका MSP को डॉलर में बदलने की बजाय बाहरी मूल्य को रुपए में बदल देता है। अमेरिका ने 1986-89 विनिमय दर (ERP सेट होने की अवधि) 13.4 रुपए प्रति डॉलर का उपयोग करते हुए ERP 2,346.67 रुपए प्रति टन (262.51 डॉलर प्रति टन) कर दिया।
- भारत के MSP से इस संख्या को घटाने के बाद चावल पर दी जाने वाली प्रति टन सब्सिडी (2013-14 के लिये) 17,300 रुपए है, जो भारत के आँकड़े से काफी अधिक है।
अमेरिकी गणनाओं में दोष
- अमेरिकी गणनाओं का स्पष्ट दोष यह है कि वह रुपए की शर्तों में ERP निर्धारित करने के लिये 1986-89 विनिमय दर का उपयोग करता है, जबकि तब से रुपया लगातार कमज़ोर हुआ है और एक पुरानी विनिमय दर ERP के दमन और भारत की सब्सिडी की मात्रा के अनुमान से अधिक होने का कारण बनती रही है। उल्लेखनीय है कि भारत WTO को अपना घरेलू समर्थन अमेरिकी डॉलर के रूप में सूचित करता है।
- कृषि पर समझौता (Agreement on Agriculture -AoA) भारत को किसी विशेष मुद्रा में सूचित करने के लिये बाध्य नहीं करता है इसके लिये AoA की अनुसूची के भाग IV में घटक डेटा और पद्धति को ध्यान में रखना आवश्यक है जो कि भारत ने किया है।
- तुलनात्मक अनुमानों के आधार पर भारत 1995-1996 के बाद से अमेरिकी डॉलर में घरेलू समर्थन को सूचित करता रहा है।
- इसके साथ ही भारत ने घरेलू समर्थन अधिसूचनाओं को सूचित करते समय मुद्रा के दृष्टिकोण का लगातार पालन भी किया है।
भारत की न्यूनतम MSP नीति पर विरोध अवांछनीय
- भारत की MSP नीति पर हमला भी अवांछनीय प्रतीत होता है क्योंकि चावल और गेहूँ के लिये भारत की समर्थन कीमतें हाल के वर्षों में वैश्विक कीमतों से कम रही हैं।
- भारत एक बड़ा बाज़ार और प्रभावशाली WTO सदस्य है और इसलिये, इसकी MSP नीति को लक्षित किया जा रहा है।
- भारत का विरोध भारी सब्सिडी पैकेजों वाले अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे विकसित बाज़ारों द्वारा प्रस्तावित किये जा रहे हैं। भारत का कुल कृषि समर्थन यूरोपीय संघ और अमेरिका द्वारा पेश किये गए समर्थन मूल्य कि तुलना में बहुत कम है।
- वर्तमान WTO नियम उत्पादकों के उत्पाद-विशिष्ट समर्थन पर असहमति के बावजूद 'ग्रीन बॉक्स' सब्सिडी को हतोत्साहित नहीं करते हैं, जो किसानों को बिना शर्त लाभ प्रदान करते हैं।
- अमेरिका की 88% (2015) और यूरोपीय संघ की 85% (2014-15) के विरोध में भारत की ग्रीन बॉक्स सब्सिडी 2016-17 में कुल कृषि सब्सिडी का लगभग 40% थी।
निष्कर्ष
भारत जैसे विकासशील देशों ने ग्रीन बॉक्स सब्सिडी और अनकैप्पड सब्सिडी के बीच भेद का लंबे समय से विरोध किया है क्योंकि ग्रीन बॉक्स सब्सिडी भी विकसित बाज़ारों में कृषि उत्पादन को सस्ता बनाकर वैश्विक व्यापार को विकृत करती है। अब यह निर्णय किया जाना शेष है कि एशिया की उभरती शक्तियाँ ऐसे समय में WTO में इस लड़ाई को जीत पाती हैं अथवा नहीं वह भी तब जब इस बहुपक्षीय निकाय की प्रासंगिकता पर सवाल उठाया जा रहा है।