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कितना उचित है सार्वजनिक वितरण प्रणाली को आधार से जोड़ना?

  • 13 Nov 2017
  • 7 min read

हाल के कुछ दिनों में भुखमरी से हुई मौतों के कारण एक बार फिर से यह चर्चा व्यापक हो उठी है कि सार्वजानिक वितरण प्रणाली को आधार से जोड़ना कितना उचित है। केंद्र सरकार पीडीएस (public distribution system), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना और पेंशन योजनाओं में 100% आधार "सीडिंग" (seeding) पर ज़ोर दे रही है।

क्या है "सीडिंग"?

  • जिस प्रक्रिया के तहत राशन-कार्ड पर घर के प्रत्येक सदस्य की आधार संख्या दर्ज़ कराई जाती है उसे सीडिंग कहते हैं।
  • सीडिंग, आधार आधारित बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण (Aadhaar-based Biometric Authentication -ABBA) की पहली शर्त है। विदित कि पीडीएस के लिये सीडिंग और एबीबीए को अनिवार्य बना दिया गया है।

बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण में निहित समस्याएँ

  • 100% आधार-सीडिंग का लक्ष्य हासिल करने के उत्साह में लाभार्थियों की सूची से उन लोगों के नाम हटा दिया गया है, जिन्होंने आधार का विवरण जमा नहीं किया था।
  • सरकार का दावा है कि ये हटाए गए नाम फर्ज़ी हैं और इन्हें लाभार्थियों की सूची से हटाकर कई करोड़ रुपए की बचत की गई।
  • इस पूरी प्रक्रिया में उन लोगों का भी नाम सूची से बाहर हो गया जिनके पास या तो आधार नहीं है या फिर आधार तो है लेकिन उनकी सीडिंग नहीं हुई है। इसका उदाहरण झारखंड की 11 वर्षीय संतोषी नाम की बच्ची है जिसने भोजन के अभाव में दम तोड़ दिया था।
  • कुछ लोगों का मानना है कि सरकार द्वारा बार-बार घोषणा किये जाने और आधार सीडिंग के लिये गाँव-गाँव तक पहुँचने के बावज़ूद ऐसा नहीं हो पाया है तो इसके दोषी वे लोग हैं जो आधार को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
  • दरअसल पीडीएस के ज़रिये अनाज़ की खरीद के लिये सीडिंग तो अनिवार्य है ही साथ में इनका भी होना ज़रूरी है:

♦ आधार-आधारित बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण सिस्टम के लिये अनवरत बिजली आपूर्ति।
♦ सुचारू ढंग से काम करने वाली एक पीओएस मशीन।
♦ मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी।
♦ केंद्रीय पहचान डाटा रिपोजिटरी (State and Central Identities Data Repository-CIDR)) का क्रियाशील सर्वर।
♦ फिंगर-प्रिंट का सफल प्रमाणीकरण।

  • उपरोक्त में से किसी भी एक शर्त का पालन न हो पाना लाभार्थी को राशन पाने से वंचित कर सकता है। इसका उदाहरण झारखण्ड में ही कथित तौर पर भूख से अपनी जान गँवा बैठे रूपलाल मरांडी हैं, जिन्होंने उपरोक्त सभी बाधाएँ पार कर ली, लेकिन फिंगर-प्रिंट मैच न होने की वज़ह से उन्हें राशन नहीं दिया गया।
और पढ़ें: नज़रअंदाज़ हैं आधार की वास्तविक चिंताएँ

क्या भ्रष्टाचार रोक पाएगा आधार-आधारित बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण?

  • पीडीएस को आधार-आधारित बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण से जोड़ने का मुख्य उद्देश्य यही है कि फर्ज़ी लाभार्थियों को सूची से बाहर करते हुए पीडीएस में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है, जबकि यह पूरी तरह से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में शायद ही सफल हो।
  • ऐसा इसलिये क्योंकि पीडीएस में भ्रष्टाचार का एक मुख्य ज़रिया है लाभार्थियों को कम राशन देना। पीडीएस डीलरों द्वारा प्रायः कम राशन दिया जाता है और इस पर सीडिंग या बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण से अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
  • साथ ही इससे जुड़ी एक अहम् समस्या यह है कि चलने-फिरने में असमर्थ कोई बुज़ुर्ग अपने पड़ोसी से उसके हिस्से का राशन लाने को नहीं कह सकता, क्योंकि यह बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण के दौरान पहचान संबंधी धोखाधड़ी मानी जाएगी।

आगे की राह?

  • इसमें कोई शक नहीं है कि आधार एक कल्याणकारी उद्देश्यों वाली योजना है, जिसकी सहायता से “डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर” जैसे उपक्रमों को आसान बनाया जा सकता है, भ्रष्टाचार में कमी लाई जा सकती है और अपराधियों को कानून की जद में लेना आसान बनाया जा सकता है। लेकिन, इससे जुड़ी हुई तमाम चिंताओं को नज़रन्दाज करना उचित नहीं कहा जा सकता है।
  • बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण के बजाय हमें स्मार्ट कार्ड जैसी तकनीकों के उपयोग पर ज़ोर देना चाहिये। प्रत्येक लाभार्थी के लिये एक स्मार्ट कार्ड जारी किया जाए जिसे वह राशन की दुकानों में स्वाइप कर राशन प्राप्त कर सके। एक रिपोर्ट के अनुसार कई राज्यों में तो बायोमेट्रिक फेलियर की दर 30 प्रतिशत तक है। ऐसे में स्मार्ट कार्ड जैसे व्यवहार्य विकल्प अजमाए जाने चाहिये।

निष्कर्ष

  • कल्याणकारी राज्य और चयन की स्वतंत्रता लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ हैं। यह सही है कि तकनीकी नवाचार के माध्यम से प्रशासन को चपल और प्रभावी बनाया जाना चाहिये, लेकिन यह नवाचार यदि किसी एक भी व्यक्ति के मौत का कारण बनता है तो हमें रुककर सोचना होगा कि हम कल्याणकारी राज्य निर्माण के उद्देश्यों से भटक तो नहीं रहे। हाल में भुखमरी से हुई मौतों का कारण यदि आधार-आधारित बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण सिस्टम है तो इसे जाना ही चाहिये।
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