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इलाहाबाद या प्रयागराज : नाम में क्या रखा है?

  • 17 Oct 2018
  • 7 min read

संदर्भ

हाल ही में उत्तरप्रदेश सरकार ने अपने प्राचीनतम शहरों में से एक इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने को मंज़ूरी दे दी। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शहर का नाम बदलने से राष्ट्रीय मामलों में इसका महत्त्व बढ़ जाएगा या वो शहर जो पिछले कई दशकों से उपेक्षा का शिकार हो रहा है उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन होगा? केवल शहर का नाम बदल देने से समस्याएँ समाप्त नहीं हो जाती और ना ही शहर के निवासियों की जरूरतें पूरी हो जाती हैं। इस लेख के माध्यम से हम इन सभी बिंदुओं पर विचार करने का प्रयास करेंगे।

कितना आसान है नाम बदलना?

जिस तरह से नाम बदलने की प्रक्रिया चल रही है उससे तो यही प्रतीत होता है कि नाम बदलना बहुत आसान है लेकिन वास्तविकता कुछ इस प्रकार है-

  • नाम बदलने का असर सरकारी खजानों के अलावा सरकारी तथा गैर-सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों पर भी पड़ता है।
  • यदि किसी ज़िले का नाम बदलना हो तो सबसे पहले कैबिनेट से इस प्रस्ताव के लिये मंज़ूरी मिलना आवश्यक है। कैबिनेट से नाम बदलने का प्रस्ताव पास होने के बाद राज्यपाल की सहमति आवश्यक है तत्पश्चात् शासन द्वारा एक गजट प्रकाशित किया जाता है जिसकी एक कॉपी संबंधित ज़िले के ज़िलाधिकारी को भेजी जाती है।
  • ज़िलाधिकारी द्वारा इसकी सूचना अपने अधीन सभी विभागाध्यक्षों को दी जाती है।
  • ज़िलाधिकारी की सूचना मिलने के बाद सभी विभागों के दस्तावेज़ों में नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू की जाती है तथा सभी सरकारी बोर्डों पर नया नाम लिखवाया जाता है।
  • इसके अलावा ज़िले में स्थित सभी बैंकों, थानों, बस अड्डों, विद्यालयों और महाविद्यालयों आदि को भी उपलब्ध स्टेशनरी में ज़िले का नाम बदलना पड़ता है।
  • उपरोक्त सभी कार्य ज़िला स्तर पर होते हैं लेकिन राज्य सचिवालय को भी इस संबंध में काम करने पड़ते हैं जैसे केंद्र सरकार, रेलवे एवं चुनाव आयोग आदि को सूचना भेजना।
  • कुल मिलकर यह कहा जा सकता है कि इस प्रक्रिया में पूरी तरह से धन तथा श्रम का नुकसान होता है।

इलाहाबाद के बारे में

  • इलाहाबाद शहर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर स्थित है। संगम का वह विशाल स्थान जहाँ कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है उसे हमेशा से प्रयागराज के नाम से जाना जाता रहा है।
  • मुगल सम्राट अकबर को 16वीं शताब्दी में आधुनिक इलाहाबाद शहर के निर्माण का श्रेय दिया जाता है उस समय अकबर ने संगम के किनारे सामरिक महत्त्व वाले किले का निर्माण करवाया था।
  • अकबर ने ही इस शहर का नाम इलाहाबाद रखा था उससे पहले यह प्रयाग के नाम से जाना जाता था।
  • भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी इलाहाबाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
  • इलाहाबाद में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व लियाकत खाँ ने किया था।
  • नेहरु परिवार का पैत्रिक आवास ‘स्वराज भवन’ और ‘आनंद भवन’ भी यही स्थित है।
  • महारानी विक्टोरिया का 1 नवंबर 1858 का प्रसिद्ध घोषणा पत्र यहीं अवस्थित 'मिंटो पार्क' में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड केनिंग द्वारा पढ़ा गया था।
  • चंद्रशेखर आज़ाद भी इलाहाबाद स्थित अल्फ्रेड पार्क में ही अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हुए थे।
  • इलाहाबाद न केवल राज्य का अग्रणी शैक्षिक केंद्र है बल्कि राज्य का उच्च न्यायालय भी यहीं स्थित है साथ ही लोक सेवा आयोग मुख्यालय भी यहीं है। संगम धार्मिक दृष्टि से भी लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण है। इलाहाबाद के साथ कुंभ मेले का संबंध भी बहुत पुराना है।

प्रयाग/पियाग, इलाहाबाद और प्रयागराज

  • 1575 से पहले इस शहर को प्रयाग नाम से जाना जाता था। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस नगर को प्रयाग इसलिये कहा जाता था क्योंकि श्रृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा ने प्रथम बार यहीं यज्ञ किया था।
  • अकबर के दरबार के इतिहासकार अबुल फजल समेत कुछ मध्ययुगीन ग्रंथों ने इसे पियाग नाम से भी संबोधित किया।
  • 1575 में शहर को इलाहाबास नाम दिया गया था जिसका अर्थ है ‘ईश्वर का निवास’ धीरे-धीरे इसे इलाहाबाद के नाम से जाना जाने लगा। अकबर ने यह नाम अपने द्वारा चलाए गए धर्म ‘दीन-ए-इलाही’ केनाम पर रखा था।

निष्कर्ष

प्रसिद्द नाटककार शेक्सपियर ने लिखा है – “नाम में क्या रखा है? गुलाब को किसी अन्य नाम से भी पुकारो तो उसकी सुंदरता और सुगंध पर कोई फर्क नहीं पड़ता।” ऐसे ही इलाहाबाद का नाम प्रयागराज रख देने से क्या शहर की स्थिति बदल जाएगी? आए दिन शहर, अस्पताल, चौराहे या सड़कों के नाम बदलते रहते हैं। नाम बदलने के पीछे अपने तर्क हो सकते हैं। कुछ लोग सरकार के फैसलों का स्वागत करते हैं तो कुछ विरोध भी करते हैं। बदलाव की आवश्यकता तो है लेकिन केवल नाम बदलने की नहीं, बल्कि इसके साथ-साथ शहरों का विकास करने और लोगों की आकांक्षाओं को पूरा कर वास्तविक परिवर्तन करने की।

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