विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
PSLV-C45
- 03 Apr 2019
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संदर्भ
1 अप्रैल की सुबह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रक्षेपण यान PSLV-C45 ने एमिसैट सैटेलाइट (EMISAT) की लॉन्चिंग के साथ श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसके साथ 28 विदेशी नैनो उपग्रहों को तीन अलग-अलग कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया।
नई तकनीक का हुआ इस्तेमाल
अमेरिका के 24, लिथुआनिया के दो और स्पेन व स्विट्जरलैंड के एक-एक उपग्रह को तीन अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित करने के लिये इसरो ने नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया। इसके लिये इसरो के विश्वसनीय प्रक्षेपण यान PSLV-QR के नए प्रकार का इस्तेमाल किया गया। 50 मीटर लंबा यह रॉकेट अपनी पहली उड़ान में प्रक्षेपण के पहले चरण में चार स्ट्रैप-ऑन मोटर्स से लैस था। यह पहली बार था जब किसी PSLV रॉकेट ने एक बार में तीन अलग-अलग कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित किया।
क्या खास है PSLV-C45 में?
इसकी अनेक विशेषताओं में से दो का उल्लेख करना बेहद ज़रूरी है। पहला यह कि इसरो ने पहली बार ऐसे रॉकेट का इस्तेमाल किया जिसने उपग्रहों को तीन अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किया। दूसरी प्रमुख विशेषता यह कि इस रॉकेट का चौथा और अंतिम चरण कुछ समय के लिये एक उपग्रह के रूप में कार्य करेगा, जो कि पहले पेलोड्स (उपग्रहों आदि) को स्थापित करने के बाद बेकार हो जाया करता था। चौथा चरण वह है जो रॉकेट के अवशेषों में सुरक्षित बचता है, क्योंकि पहले तीन चरणों में इसका अधिकांश हिस्सा उड़ान के दौरान प्रणोदक (Propellant) खत्म हो जाने के बाद वज़न कम करने के काम आ जाता है।
इस रॉकेट की अन्य विशेषताओं में चार स्ट्रैप-ऑन मोटर्स हैं। ये स्ट्रैप-ऑन ऐसे बूस्टर रॉकेट हैं जो मुख्य रॉकेट से बाहरी रूप से जुड़े होते हैं और उड़ान के दौरान स्वयं दगकर (Firing Themselves) इसे अतिरिक्त बल या ऊर्जा प्रदान करते हैं। पहले की उड़ानों में इसरो ने दो या छह स्ट्रैप-ऑन मोटर्स का उपयोग किया है, लेकिन इस बार इस्तेमाल किये गए चार अतिरिक्त बड़े स्ट्रैप-ऑन ने छह मोटरों के बराबर शक्ति प्रदान करते हुए रॉकेट का कुल वज़न कम कर दिया।
इसरो पहले भी कर चुका है एक साथ कई उपग्रहों का प्रक्षेपण
PSLV यानी Polar Satellite Launch Vehicle को ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान कहा जाता है। यह विश्व के सर्वाधिक विश्वसनीय प्रमोचन वाहनों में से एक है। यह पिछले 20 वर्षो से भी अधिक समय से अपनी सेवाएं उपलब्ध करा रहा है। इसरो ने फरवरी 2017 में PSLV C-37 पर एकल प्रक्षेपण यान से 104 उपग्रहों को ले जाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। अब तक इन उपग्रहों को दो अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किया जाता रहा है, लेकिन PSLV-C45 से तीन अलग-अलग कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित करने का यह पहला मामला है।
कैसे संभव हुआ?
इससे पहले प्राथमिक उपग्रह को उसकी कक्षा में ले जाया जाता था, जबकि अन्य को अलग कर दिया जाता था या अलग-अलग प्रक्षेप वक्रों (Trajectories) में छोड़ दिया जाता था। उपग्रहों के बीच ऊर्ध्वाधर (Vertical) दूरी में बेहद कम अंतर हुआ करता था। लेकिन PSLV-C45 ने निश्चित रूप से कुछ अलग किया है। इसने DRDO द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले निगरानी (प्राथमिक) उपग्रह EMISAT को 748 किमी. की ऊँचाई पर सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा (Sun-synchronous Polar Orbit) में स्थापित किया। इसके बाद इसने पृथ्वी का एक चक्कर लगाया और अपनी ऊँचाई कम करके 504 किमी. पर लाकर 28 अन्य उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया। इसके बाद इसने फिर पृथ्वी का एक और चक्कर लगाया तथा अपनी ऊँचाई कम करके 485 किमी. कर ली, जहाँ रॉकेट का चौथा चरण कुछ समय के लिये जारी रहा। इस पूरे अभियान में तीन घंटे से अधिक समय लगा, जबकि पहले यह काम मिनटों में पूरा हो जाया करता था।
- पृथ्वी के दो चक्कर लगाने के लिये इंजनों का चौथा चरण एक बार फिर सक्रिय किया गया और ऐसा पहली बार हुआ। इससे पहले के अभियानों में इंजनों को केवल एक बार सक्रिय किया जाता था (Single Shot) और अभियान पूरा हो जाता था।
इस उपलब्धि का क्या महत्त्व है?
एक ही अभियान में तीन अलग-अलग कक्षाओं तक पहुँच बनाना निश्चित ही इसरो की एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि है। इससे इंजन के चौथे चरण के इंजन का पुन: उपयोग करने की इसकी क्षमता का पता चलता है। साथ ही यह भी देखा गया कि प्रक्षेपण यान में लगी मार्गदर्शन और नेविगेशन प्रणालियाँ पहले के अभियानों की तुलना में अधिक समय तक कैसे इस्तेमाल की जा सकती हैं। व्यावहारिक रूप में यह इसरो को भविष्य के रॉकेटों को एक साथ कई उपग्रहों को ले जाने में मदद करेगा, चाहे उन्हें काफी अलग लेकिन सटीक कक्षाओं में रखा जाना हो। वर्तमान में ऐसा करने के लिये कई अभियानों की आवश्यकता पड़ती है।
उपग्रह की तरह इंजन के चौथे चरण का इस्तेमाल
- रॉकेट या प्रक्षेपण यान केवल एक वाहन (Carrier) है। एक बार उपग्रह को उसकी निश्चित कक्षा में स्थापित कर देने के बाद यह व्यावहारिक रूप से बेकार हो जाता है और अंतरिक्ष मलबे का हिस्सा बन जाता है।
- पिछले कुछ वर्षों से इसरो इस प्रयास में लगा है कि रॉकेट को कुछ जीवन दिया जाए, कम-से-कम उसके अंतिम चरण के साथ ऐसा किया जा सकता है, जो प्रक्षेपित होने तक उपग्रह के साथ सक्रिय रहता है।
- अंतिम या चौथे चरण के साथ ऐसा करने का प्रयास इसलिये किया गया क्योंकि रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान प्रारंभिक चरणों में इसका निचला हिस्सा अनिवार्य रूप से बेकार हो जाता है।
- लेकिन चौथे तथा अंतिम चरण के साथ ऐसा नहीं है और इसका कुछ समय के लिये (अस्थायी) इस्तेमाल किया जा सकता है। पूर्व में ये सब किसी कक्षा में जाकर भटकते हुए चक्कर लगाते रहते थे।
क्या उद्देश्य हासिल होगा?
इंजन का चौथा चरण कुछ मापन और प्रयोग करने के लिये तीन प्रकार के उपकरण ले गया है और इसके साथ इन उपकरणों को ऊर्जा देने के लिये एक सौर पैनल भी लगा है। इससे पृथ्वी पर स्थित नियंत्रण केंद्रों के साथ संपर्क कायम करने में सुविधा होगी। इनमें एक उपकरण ऐसा है जिसकी सहायता से जहाज़ों से आने वाले संदेशों को पकड़ा जा सकता है। दूसरे प्रकार के उपकरण का उपयोग करके शौकिया (Amateur) रेडियो ऑपरेटर डेटा की ट्रैकिंग और स्थिति की निगरानी कर सकते हैं। तीसरे प्रकार के उपकरण की मदद से आयनमंडल (Ionosphere) की संरचना का अध्ययन किया जा सकता है।
कब तक काम करेगा?
- चौथे चरण में किसी उपग्रह की तरह निर्धारित जीवन नहीं होगा, यह केवल कुछ हफ्तों या कुछ महीनों तक ही सक्रिय रह सकता है।
- ऐसा इसलिये क्योंकि यह बहुत सी ऐसी चीज़ों से लैस नहीं है जो कि उपग्रह को बाहरी अंतरिक्ष में अधिक समय तक मौजूद रहने में सक्षम बनाती हैं, जैसे कि रेडिएशन शील्ड।
- हालाँकि छोटी अवधि के प्रयोगों को करने और डेटा संग्रह का काम करने के लिये यह बेहद उपयोगी हो सकता है...और इसीलिये इसके साथ तीन प्रकार के उपकरण भेजे गए हैं।
- भविष्य में ऐसे कक्षीय मंच (Orbital Platform) का इस्तेमाल कक्षाओं में छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिये भी किया जा सकता है।
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