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भारतीय समाज

जल, स्वच्छता और महिला अधिकार

  • 02 Jan 2021
  • 12 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जल, स्वच्छता और महिला अधिकारों के बीच संबंध व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

जल और स्वच्छता के अधिकार को अन्य सभी मानव अधिकारों को प्राप्त करने के लिये मौलिक माना जाता है। हालाँकि वैश्विक स्तर पर 2.1 बिलियन लोगों को अपने घर पर स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है, वहीं 2.3 बिलियन लोगों के पास बुनियादी स्वच्छता की सुविधा नहीं है और लगभग 1 बिलियन लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं। इन सबके बीच महिलाएँ सबसे सुभेद्य वर्ग का हिस्सा होती हैं।  जल, स्वच्छता और सफाई  सुविधाओं तक पहुँच की कमी  महिलाओं और लड़कियों को असमान रूप से प्रभावित करती है।  

घरेलू स्तर पर पेयजल, सफाई और स्वच्छता प्रबंधन के लिये काफी हद तक महिलाएँ ही ज़िम्मेदार होती हैं, अतः इन बुनियादी सेवाओं की कमी के दौरान उन्हें स्वास्थ्य, सुरक्षा और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों  का सामना करना पड़ता है।

ऐसे में जल और स्वच्छता तक समान पहुँच महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाती है। परंतु इसकी कमी हर घर और समुदाय में महिलाओं की स्थिति को कमज़ोर कर सकती है। 

‘जल, सफाई व्यवस्था और स्वच्छता’ एवं महिला अधिकारों का परस्पर संबंध:  

  • पेयजल के संदर्भ में महिलाओं का उत्तरदायित्त्व:  अधिकांश घरों में जहाँ पीने के पानी के स्रोत आवासीय परिसर के बाहर हैं, वहाँ पानी लाने की ज़िम्मेदारी महिलाओं और लड़कियों की ही होती है। 
    • यह प्रथा महिलाओं के स्वास्थ्य, कार्यभार और उनके द्वारा खर्च  की गई कैलोरी को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। 
    • जब लड़कियों को पानी लाने के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, तो इसके कारण उन्हें शिक्षा पर ध्यान देने के लिये कम समय उपलब्ध होता है। 
    • जल लाने की ज़िम्मेदारी उन पर अवैतनिक घरेलू काम के बोझ में वृद्धि करती है,  साथ ही इससे उनको अन्य आयजनक गतिविधियों में शामिल होने हेतु कम समय मिलता है, साथ ही यह उनके अवकाश तथा गैर-व्यावसायिक गतिविधियों को भी प्रभावित करती है। 
  • स्वच्छता की पहुँच और लिंग-आधारित हिंसा:  वर्तमान में स्वच्छता से संबंधित लिंग आधारित हिंसा के पर्याप्त प्रमाण देखने को मिलते हैं जो शौचालय जैसी कई अन्य मूलभूत सुविधाओं की अनुपलब्धता में महिलाओं के लिये उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को रेखांकित करते है। 
    • साथ ही ऐसी संभावित हिंसा का भय महिलाओं को स्वतंत्र रूप से कहीं भी आने-जाने और उनके लिये समान अवसरों की संभावनाओं को भी प्रभावित करता है।
  • जल, स्वच्छता और सफाई आवश्यकताएँ: महिलाओं को मासिक धर्म, गर्भावस्था, प्रसव के बाद की अवधि और बीमार परिवार के सदस्यों या छोटे बच्चों की देखभाल के दौरान जलयोजन (Dehydration), स्वच्छता तथा सफाई के लिये पानी की आवश्यकता अधिक होती है।    
    • जब ये बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं होती हैं, तो महिलाएँ और लड़कियाँ समाज में समान रूप से भाग नहीं ले पाती हैं। 
  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG) से संबंध:  संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित SDG अपने लक्ष्य 6.2 के माध्यम से ‘जल, स्वच्छता और सफाई’ (SDG-6) तथा  ‘लैंगिक समानता व सशक्तीकरण’ (SDG-5) को जोड़ने के लिये एक प्रारंभिक पहल करता है।
    • SDG के लक्ष्य 6.2 में स्वच्छता, सफाई तथा महिलाओं की अन्य ज़रूरतों की समान पहुँच पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
    • इसके अतिरिक्त SDG-10 के तहत देशों की सीमाओं के भीतर और दो देशों के बीच असमानताओं को कम करने का लक्ष्य रखा गया है।    

चुनौतियाँ:  

  • निर्णय लेने में महिला भागीदारी की कमी:  घरेलू स्तर पर पेयजल की व्यवस्था के साथ स्वच्छता तथा  सफाई में महिलाओं एवं लड़कियों की केंद्रीय भूमिका को स्वीकार किया जाता है।
    • हालाँकि वृहद् रूप में महिलाओं को जल, सफाई और स्वच्छता के प्रबंधन तथा ऐसे संसाधनों पर घरेलू निर्णय लेने का अधिकार बहुत ही कम होता है।
    • उदाहरण के लिये स्वच्छता से संबंधित मामलों जैसे कि शौचालय का निर्माण और उपयोग से जुड़े निर्णयों में महिलाओं का परामर्श नहीं लिया जाता है।  
  • आँकड़ों की कमी: वर्तमान में इन चुनौतियों के कारण महिलाओं पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार या उनके द्वारा उपलब्ध अवसरों का लाभ न उठा पाने के रूप में चुकाई जाने वाली लागत को मापने का कोई विशेष तंत्र मौजूद नहीं है। साथ ही जल, स्वच्छता और सफाई संबंधी निर्णय तथा स्वायत्तता के मामले में महिला सशक्तीकरण के प्रयास भी बहुत सीमित हैं। 
  • पर्याप्त अवसंरचना का अभाव: भारत के कई हिस्सों में (विशेषकर ग्रामीण भारत में) स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में जल, स्वच्छता और सफाई की व्यवस्था पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं है।
    • स्कूलों में मासिक धर्म की चुनौतियों से निपटने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा, गोपनीयता, मार्गदर्शन और आवश्यक सामग्री आदि के अभाव को उत्पीड़न, यौन शोषण, मनोसामाजिक प्रभावों, लड़कियों की स्कूल में उपस्थिति दर में गिरावट तथा उनके पढ़ाई छोड़ने या ड्रॉप-आउट होने से जोड़कर देखा जाता है। 

आगे की राह: 

  • तटस्थ लैंगिक दृष्टिकोण: वर्तमान में जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य रक्षा के सतत् प्रबंधन के लिये पुरुषों तथा महिलाओं की भागीदारी की अनिवार्यता को स्वीकार करना बहुत ही आवश्यक है। 
  • महिला नेतृत्त्व के लिये नीतिगत रूपरेखा: जल और स्वच्छता के क्षेत्र में महिलाओं के नेतृत्व तथा उनके निर्णय लेने की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। अतः इस क्षेत्र में स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर महिला नेतृत्व तथा इसे बनाए रखने के लिये संसाधनों, प्रशिक्षण एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति के समर्थन के साथ एक मज़बूत नीतिगत ढाँचे का होना बहुत ही आवश्यक है।   
  • स्वच्छ भारत मिशन पर विशेष ध्यान: स्वच्छ भारत मिशन (SBM) के “सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह” अभियान की मांग से भारत में स्वच्छता की आदतों में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। 
    • SBM के अगले चरण में ऐसे स्थायी व्यवहार परिवर्तन के समाधान खोजने की परिकल्पना की जानी चाहिये, जो महिलाओं और उनकी स्वच्छता ज़रूरतों पर केंद्रित हों।
  • समाज की भूमिका:  महिलाएँ पहले से ही अवैतनिक गतिविधियों में पुरुषों की तुलना में 2.6 गुना अधिक समय खर्च करती हैं, जिसमें देखभाल और घरेलू काम शामिल हैं। 
    • जल और स्वच्छता प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका के महत्त्व को रेखांकित करने तथा  उनके लिये विकास के समान अवसर उपलब्ध कराने हेतु सामाजिक जागरूकता लाना बहुत ही आवश्यक है।
  • स्वयं सहायता समूहों की भूमिका:  हाल में देश भर में ऐसे उदाहरणों की संख्या में वृद्धि देखने को मिली है जहाँ महिलाएँ स्वयं सहायता समूहों (SHGs) या सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से आगे बढ़ने और बड़े सुधार लाने में सफल रहीं हैं। 
    • इसलिये महिला SHGs को जल, स्वच्छता और सफाई का मुद्दा उठाने के लिये बढ़ावा दिया जाना चाहिये।    
    • इस संदर्भ में झारखंड का उदाहरण अनुकरण योग्य है। जहाँ प्रशिक्षित महिला राजमिस्त्रियों ने एक वर्ष के अंदर 15 लाख से अधिक शौचालयों का निर्माण किया और इसकी सहायता से राज्य को 2 अक्तूबर, 2019 की राष्ट्रीय कट-ऑफ तारीख से बहुत पहले ही खुले में शौच मुक्त (ग्रामीण) राज्य घोषित कर दिया गया।

निष्कर्ष:  

वर्तमान में जब विश्व के सभी देश सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे में स्वच्छ जल और स्वच्छता की पहुँच इन लक्ष्यों की प्राप्ति तथा व्यापक सामाजिक परिवर्तन में उत्प्रेरक का कार्य कर सकती है। जल और स्वच्छता से जुड़ी नीतियों में महिलाओं को केंद्रीय भूमिका में रखने के साथ ही उन्हें परिवर्तन के एजेंट के रूप में सक्षम बनाना बहुत ही आवश्यक है 

साथ ही वर्तमान में सरकारों, व्यवसायों, गैर-सरकारी संगठनों और शैक्षणिक संस्थानों के लिये यह देखना आवश्यक है कि वे स्थानीय समितियों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक जल, स्वच्छता और सफाई के क्षेत्र में महिलाओं के नेतृत्त्व को मज़बूत करने पर किस प्रकार कार्य कर रहे हैं।

Sustainable-Development-Goals

अभ्यास प्रश्न: पेयजल और स्वच्छता तक व्यवस्थित पहुँच, महिलाओं को आर्थिक तथा सामाजिक रूप से सशक्त बनाती है। परंतु इसकी कमी हर घर एवं समुदाय में महिलाओं की स्थिति को कमज़ोर कर सकती है। टिप्पणी कीजिये।

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