अपशिष्ट जल प्रबंधन: सामाजिक और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार | 22 Mar 2017
‘अपशिष्ट जल’ किसी के लिये भी ध्यान देने वाली बात नहीं है, चाहे कोई व्यक्ति हो या कोई बड़ा उद्योग, सभी अपशिष्ट जल को बहने के लिये छोड़कर निश्चिंत हो जाते हैं| शायद ही किसी को इस बात की चिंता होती है कि यह अपशिष्ट जल कहाँ जाता है और इसके दुष्प्रभाव क्या हैं| 22 मार्च 2017 को विश्व जल दिवस पर ज़ारी की गई संयुक्त राष्ट्र की विश्व ‘ वैश्विक जल विकास रिपोर्ट’ (World Water Development Report-WWDR) में अपशिष्ट जल को गंभीरता से लिये जाने के कई मज़बूत कारण गिनाए गए हैं|
‘वैश्विक जल विकास रिपोर्ट’ 2017
‘वैश्विक जल विकास रिपोर्ट’ 2017 के अनुसार पूरी दुनिया का 80 प्रतिशत से अधिक अपशिष्ट जल पर्यावरण में अनुपचारित ही छोड़ दिया जाता है| कुछ विकासशील देशों में तो 95 प्रतिशत से भी अधिक अपशिष्ट जल अनुपचारित छोड़ दिया जाता है| थाईलैंड में वर्ष 2012 तक 77 प्रतिशत से भी अधिक अपशिष्ट जल अनुपचारित ही छोड़ दिया जाता था| इसी साल के आँकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में 82 प्रतिशत तो वियतनाम में 81 प्रतिशत अपशिष्ट जल अनुपचारित छोड़ा जाना पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत ही चिंतनीय है| दरअसल, इन आँकड़ों के निहितार्थ यही हैं कि प्रशांत-एशिया क्षेत्र में यह समस्या कुछ ज़्यादा ही व्यापक है|
प्रशांत एशिया क्षेत्र में यह समस्या व्यापक क्यों ?
गौरतलब है कि प्रशांत-एशिया क्षेत्र में बेतरतीब शहरीकरण की समस्या अधिक है, बेतरतीब शहरीकरण के कारण शहरों की आधारभूत अवसरंचना को अवांछनीय दबाव झेलना पड़ता है| फलस्वरूप अपशिष्ट जल का प्रवाह आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ जाता है| वर्ष 2009 तक के आँकड़ों के अनुसार लगभग 30 प्रतिशत शहरी जनसंख्या झुग्गीवासियों की है| ऐसे स्थानों पर निवास करने वाले लोगों के पास अपशिष्ट जल को अपने नजदीकी जल निकायों में अनुपचारित प्रवाहित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है| साथ ही यह भी देखा गया है कि शहरों में स्थित छोटे-बड़े सभी अस्पतालों से निकलने वाले रासायनिक अपशिष्ट को जल के साथ बहा दिया जाता है|
अपशिष्ट जल, खोल सकता है संभावनाओं का द्वार
वैश्विक जल विकास रिपोर्ट में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यदि स्वच्छता पर 1 मिलियन डॉलर की राशि खर्च की जाती है तो समाज को 5.5 मिलियन के बराबर लाभ प्राप्त होता है| यह स्वच्छता के आर्थिक महत्त्व का परिचायक है| एक वृत्तीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास और पर्यावरण सुरक्षा एक-दुसरे के पूरक होते हैं| और यह बात अपशिष्ट जल के सन्दर्भ में भी लागू होती है| गौरतलब है कि उपचारित जल का समुचित उपयोग किया जाए तो यह ऊर्जा तथा पोषक तत्त्वों का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हो सकता है| उचित उपचार के माध्यम से अपशिष्ट जल से नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे रसायनों का एकत्रण किया जा सकता है|
क्या हो आगे का रास्ता
गौरतलब है कि सिंगापुर ने उन्नत तकनीक के माध्यम से अपशिष्ट जल के उपचार की ऐसी व्यवस्था बनाई हुई है जो उद्योंगों से निकलने वाले अपशिष्ट जल को भी पीने योग्य बना देती है, यह जानना दिलचस्प है कि सिंगापुर में अपने नागरिकों की जलापूर्ति ज़रूरतों का 30 प्रतिशत उपचारित जल के द्वारा पूरा करता है| प्रशांत-एशिया क्षेत्र में मौज़ूद प्रत्येक देश को सिंगापुर के अपशिष्ट प्रबन्धन व्यवस्था से प्रेरणा लेनी चाहिये|
दरअसल, समूची दुनिया जल संकट के प्रति गंभीर है लेकिन अपशिष्ट जल प्रबन्धन के मोर्चे पर वैश्विक सामाजिक और राजनीतिक चेतना का अभाव है| संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में व्यक्त चिंताओं का संज्ञान लेते हुए इस दिशा में वैश्विक पहल की जानी चाहिये|
अपशिष्ट जल के अधिक प्रभावी और कुशल प्रबंधन के लिये नगर पालिकाओं और स्थानीय सरकारों को अधिक से अधिक सहायता प्रदान की जानी चाहिये| विदित हो कि नगरपालिका और स्थानीय सरकारें फण्ड की कमी से जूझ रही हैं| इन निकायों को आवश्यक फण्ड के अभाव में प्रायः स्थापित पर्यावरण संबंधी प्रावधानों की अवहेलना करनी पड़ती है|
निष्कर्ष
गौरतलब है कि हमने सतत विकास के लिये ‘एजेंडा-2030’ का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन इस महत्त्वपूर्ण लक्ष्य की प्राप्ति की ओर बढ़ रहे हमारे क़दमों को इस सच्चाई से रूबरू होना पड़ेगा कि पूरी दुनिया में 663 मिलियन लोग ऐसे हैं जिन्हें पीने को स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है| वस्तुतः पानी और स्वच्छता सतत विकास के हमारे लक्ष्यों में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है और इस दिशा में विभिन्न प्रयास भी किये जा रहे हैं, लेकिन अब तक की हमारी प्रगति में केवल “जल के अभाव” को ध्यान में रखते हुए नीतियों का निर्माण किया गया है, अतः अपशिष्ट जल का प्रबन्धन एक अछूता विषय रह गया| अब जब ‘वैश्विक जल विकास रिपोर्ट’ 2017 में इस बात का संज्ञान लिया गया है तो हमें इसके लिये वैश्विक स्तर पर पहल करनी होगी|