कृषि को व्यावहारिक और लाभकारी बनाने हेतु 12 पहलें | 20 Jun 2017

चर्चा में क्यों?
यद्यपि कृषि अधिकतर भारतीयों की मुख्य आजीविका है, परंतु किसानों को यह व्यवसाय आकर्षक नहीं लगता क्योंकि इसमें आय तथा उत्पादकता कम है। सरकार द्वारा तीव्र, समावेशी और सतत् विकासात्मक रणनीतियों के माध्यम से इस समस्या का समाधान करने के प्रयास करने होंगे। इस संदर्भ में सरकार द्वारा आरंभ की गई प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ई-नाम और मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसी सरकारी पहलों के माध्यम से किसानों की उत्पादकता में सुधार करने और बेहतर लाभ प्राप्त करने की दिशा में मदद मिल रही है।

उपलब्धियाँ 

  • ऐसा नहीं है कृषि के संदर्भ में भारत की स्थिति बहुत अधिक दीन है, इसके संदर्भ में बहुत से सकारात्मक तथ्य भी हैं। किसानों की उपलब्धियों पर गौरव करने के लिये हमारे पास बहुत से तर्कसंगत कारण मौजूद हैं। हमने खाद्यान्न की कमी के संदर्भ में विशेष उपलब्धि हासिल कर ली है। 
  • हम खाद्यान्न आयात करने की स्थिति से बढ़कर इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गए हैं और अब खाद्यान्न का निर्यात भी कर रहे हैं।
  • जैसा कि आप सभी जानते हैं पहले भारत में बहुत साधारण तरीके से किसानी  की जाती थी, लेकिन वर्तमान समय में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित खेती की जा रही है। 
  • इस समय कई फसलों के उत्पादन में भारत विश्व में शीर्ष स्थान पर काबीज़ है। विश्व में भारत सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन करने वाला देश है। 
  • इतना ही नहीं वह हरित, श्वेत, नील और पीत क्रांतियों में बड़े बदलावों का भी सामना कर रहा है।

कृषिगत क्षेत्र में आय-वृद्धि हेतु क्या किये जाने की आवश्यकता है?

  • इस संदर्भ में सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के निवेशों में बढ़ोतरी करने की आवश्यकता है। इस बात की ज़रूरत है कि दीर्घकालीन और मध्यकालीन कार्य योजना बनाई जाए, जिनके तहत निजी और सार्वजनिक निवेशों को लामबंद किया जा सके। 
  • इसके अतिरिक्त सरकार को रणनीतिक परिवर्तनों के संदर्भ में भी व्यापक रूप से विचार करने की आवश्यकता है, ताकि इस क्षेत्र को दोबारा ऊर्जावान बनाया जा सके।

महत्त्वपूर्ण 12 पहलें
किसानों की उत्पादकता और उनके लाभार्जन के लिये महत्त्वपूर्ण 12 पहलों को इस लेख में रेखांकित किया गया है-

  • बेहतर बीजों का इस्तेमाल किया जाना चाहिये, ताकि उत्पादकता में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि सुनिश्चित की जा सके।
  • कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल किया जाना चाहिये।
  • सीमान्त और छोटे किसानों द्वारा नवाचार अपनाने की दिशा में सामयिक संस्थागत ऋण मुख्य भूमिका निभाते हैं, अत: इस संदर्भ में विशेष रूप से विचार किये जाने की आवश्यकता है।
  • दुग्ध पालन, मछली पालन और मुर्गी पालन जैसी संबंधित गतिविधियों के साथ खेती को जोड़ते हुए इनका विस्तार किया जाना चाहिये। 
  • भारत में खेती के यंत्रीकरण को बढ़ावा दिये जाने पर बल दिया जाना चाहिये।
  • कृषि गतिविधियों को तेज़ करने और कृषि को बागवानी से जोड़ने तथा पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि के यंत्रीकरण से किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है।
  • कृषि आधारित उद्योगों के प्रोत्साहन के मद्देनज़र इको-प्रणाली को मज़बूत करना होगा।
  • पानी के इस्तेमाल के प्रति बेहतर समझ बनानी होगी।
  • किसानों को उपभोक्ता मूल्य के बड़े हिस्से को समझना होगा। 
  • भू-नीति में मूलभूत सुधारों पर विशेष ध्यान देना होगा।
  • जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र कृषि गतिविधियों को विकसित करने की ज़रूरत पर कार्य किया जाना चाहिये।
  • ज्ञान को साझा करने की प्रक्रियाओं को दुरुस्त करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में संगोष्ठियों, कार्यक्रमों एवं अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

किसानों की आय में तेज़ी से वृद्धि के मानक और प्रमाणित उपाय- 

  • कृषिगत गतिविधियों का विविधिकरण: प्रायः यह देखा गया है और कई अध्ययनों द्वारा प्रमाणित है कि उच्च मूल्य वाली फसलों और कृषि उद्यमों की ओर ध्यान देने वाले किसानों की आय में तेज़ी से वृद्धि होती है। अतः कृषिगत गतिविधियों के विविधिकरण को गति देनी      होगी। 
  • बेहतर सिंचाई के साधन: देश में अभी भी निम्न उत्पादकता का एक बड़ा कारण सिचाई के साधनों की अपर्याप्त उपलब्धता है। अतः इस संबंध में भी ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार मूल्य: बेहतर उत्पादन के बावजूद यदि किसान बेहतर मूल्य प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसका एक मुख्य कारण प्रतिस्पर्द्धी कीमत का न मिल पाना है और इसके कई कारण हैं। 
  • एकीकृत मूल्य श्रृंखला, भण्डारण की समुचित व्यवस्था आदि सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

स्वामीनाथन द्वारा प्रस्तुत सिफारिशें

  • स्वामीनाथन द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के अंतर्गत इस बात पर विशेष बल दिया गया था कि एक छोटे किसान को प्राप्त होने वाले लाभ तथा उसकी उत्पादन क्षमता के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना की जानी चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिये उन्हें अनुबंध कृषि की ओर प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • इसका लाभ यह होगा कि किसानों को उनकी फसल के एक निश्चित मूल्य का भुगतान किये जाने के साथ-साथ कृषि-आदानों की गुणवत्ता को बढ़ावा देने पर भी बल दिया जा सकेगा। 
  • भारत सरकार द्वारा किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु कुछ आवश्यक पहलों को भी शुरू किया गया है। उदाहरण के लिये, ई-नैम (electronic National Market- eNAM) के माध्यम से किसानों को सीधे मंडी से जोड़ने का प्रयास किया गया है ताकि किसानों को बिना किसी बिचौलिये के अपनी फसल बेचने में आसानी हो सके। हालाँकि अभी इस पहल के सटीक अनुपालन में कुछ समस्याएँ आ रही हैं।