अर्बन फ्लड और भारत में बाढ़ प्रबंधन | 31 Aug 2017
बाढ़ पानी का वह अतिप्रवाह है जिसमें आमतौर पर सूखी रहने वाली भूमि भी डूब जाती है। बाढ़ आने पर परिस्थितियाँ अचानक से गंभीर नहीं हो जातीं, बल्कि जैसे-जैसे जलस्तर बढ़ता जाता है, समस्याएँ भी गंभीर होती जाती हैं। लेकिन फ्लैश फ्लड (अचानक आई बाढ़) पलक झपकते ही सब कुछ बहा ले जाती है। इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से अर्बन फ्लड (शहरी बाढ़) की समस्या भी गंभीर होती जा रही है। इस आलेख में हम इन सभी पहलुओं पर गौर करेंगे।
बाढ़ के कारण
- सामान्यतः भारी बारिश के बाद जब प्राकृतिक जल संग्रहण स्रोतों/मार्गों (natural water bodies/routes) की जल को धारण करने की क्षमता का सम्पूर्ण दोहन हो जाता है, तो पानी उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डूबा देता है।
- लेकिन बाढ़ हमेशा भारी बारिश के कारण नहीं आती है, बल्कि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम है, जिन्हें हम कुछ इस प्रकार से वर्णित कर सकते हैं।
- मौसम संबंधी तत्त्व: दरअसल, तीन से चार माह की अवधि में ही देश में भारी बारिश के परिणामस्वरूप नदियों में जल का प्रवाह बढ़ जाता है जो विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है। एक दिन में लगभग 15 सेंटीमीटर या उससे अधिक की वर्षा होती है, तो नदियों का जलस्तर खतरनाक ढंग से बढ़ना शुरू हो जाता है।
- बादल फटना: भारी वर्षा और पहाड़ियों या नदियों के आस-पास बादलों के फटने से भी नदियाँ जल से भर जाती हैं। कुछ सालों पहले उतराखंड में आई भयंकर बाढ़ का कारण बादल फटना ही था।
- गाद का संचय: हिमालय से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ बड़ी मात्रा में गाद और रेत ले आती हैं। वर्षों से इनकी सफाई न होने कारण नदियों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिससे आस-पास के क्षेत्रों में पानी फ़ैल जाता है।
- मानव निर्मित अवरोध: तटबंधों, नहरों और रेलवे से संबंधित निर्माण के कारण नदियों के जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है, फलस्वरूप बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
- वनों की कटाई: पेड़ पहाड़ों पर मिट्टी के कटाव को रोकने और बारिश के पानी के लिये प्राकृतिक अवरोध पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिये पहाड़ी ढलानों पर वनों की कटाई के कारण नदियों के जलस्तर में वृद्धि होती है।
अर्बन फ्लड के कारण
- खराब नगर नियोजन: खराब नगर नियोजन (poor town-planning) के कारण पिछले कुछ सालों से देश के महानगरों को लगातार अर्बन फ्लड से दो-चार होना पड़ रहा है। चेन्नई, बंगलुरु के बाद इस वर्ष मुम्बई में जलभराव की वज़ह से जीवन अस्त-व्यस्त है।
- अतिक्रमण: जैसे-जैसे लोग शहरों में पलायन कर रहे हैं, ठीक वैसे-वैसे ज़मीन की उपलब्धता कम होती जा रही है। यहाँ तक कि शहरी क्षेत्रों में जमीन के एक छोटे से टुकड़े की कीमत भी आसमान छू रही है। ऐसे में शहरों में स्थित जल निकायों (water bodies) के पारिस्थितिकीय महत्त्व को नज़रंदाज़ किया जाता रहा है।
→ दरअसल, शहरों में स्थित झीलों और तालाबों में बारिश का पानी इकट्टा होता रहता था, जिससे भारी बारिश होने पर भी शहर में जलभराव नहीं होता था।
→ लेकिन अब कहीं इन झीलों के अस्तिव को ही खत्म कर दिया गया है तो कहीं गहराई कम होने से उनकी जल को धारण करने की क्षमता लगातार कम होती जा रही है।
- प्रदूषण: शहरी आबादी में विस्फोटक वृद्धि हुई है। इस बढ़ी हुई जनसंख्या के लिये पर्याप्त बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रदूषण में वृद्धि हुई है। दरअसल, हम भारत के लोग धार्मिक लोग हैं और सांस्कृतिक या धार्मिक उत्सवों के लिये इन जलीय निकायों को प्रदूषित करते आ रहे हैं। यह भी अर्बन फ्लड का एक प्रमुख कारण है।
- अवैध खनन: शहरीकरण की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये शहरों के आस-पास बालू और मिट्टी के लिये अवैध खनन लगातार जारी है। इससे जल निकाय व्यापक तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। कहीं जल संग्रहण के पैटर्न में बदलाव देखने को मिल रहा है तो कहीं झीलों की गहराई इतनी कम हो गई है कि वे सपाट मैदान की तरह नज़र आने लगी हैं।
- प्रशासनिक उदासीनता: महानगरों का ड्रेनेज सिस्टम इतना प्रभावी नहीं है कि तेज़ी से पानी को शहर से बाहर निकाल सके। इसका कारण है नालों एवं मेनहोल की साफ-सफाई का न होना। प्रशासनिक उदासीनता का आलम यह है कि सरकार के पास इस संबंध में कोई डेटा ही नहीं है कि किन शहरों में कितने जल निकाय अवस्थित हैं।
चिंताजनक आँकड़े
- भारत में बाढ़ सबसे आम और अक्सर आने वाली आपदा है। नेशनल फ्लड कमीशन (National Flood Commission) द्वारा संकलित आँकड़ों से पता चलता है कि देश में 40 मिलियन हेक्टेयर भूमि क्षेत्र बाढ़-उन्मुख क्षेत्र है। लगभग 60% से अधिक की क्षति नदियों के बाढ़ से होती है, जबकि 40% क्षति का परिणाम भारी बारिश और चक्रवात के बाद आने वाला बाढ़ है।
- राज्यवार अध्ययन से पता चलता है कि देश में बाढ़ से होने वाले कुल नुकसान का 27% बिहार में, 33% उत्तर प्रदेश एवं उतराखंड में और 15% पंजाब में होता है।
- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, आपदाओं के कारण भारत की औसत वार्षिक आर्थिक हानि 9.8 अरब डॉलर होने का अनुमान है, जिसमें से 7 अरब डॉलर से अधिक के नुकसान का कारण अकेले बाढ़ है।
- शहरी क्षेत्रों में बाढ़ एक विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण समस्या है। बाढ़ इस समय मुंबई में कहर ढा रही है, जबकि पिछले कुछ दशकों में कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली, गुरुग्राम और बेंगलुरु जैसे कुछ प्रमुख शहरों में बाढ़ के कारण व्यापक जान-माल की क्षति हुई है।
आगे की राह
- सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि बाढ़ से निपटने के लिये क्या किया जाए। तकनीकी उन्नयन के द्वारा मौसम विज्ञान के विशेषज्ञों को मानसून की सटीक भविष्यवाणी करनी होगी।
- बाढ़ प्रभावित इलाकों में चेतावनी केंद्र स्थापित करने की बात कई सालों से की जा रही है, लेकिन सीएजी (comptroller and auditor general of India) की रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक 15 राज्यों में इस संबंध में कोई प्रगति नहीं हुई है। जिन क्षेत्रों में चेतावनी केंद्र बने, वहाँ या तो मशीने ख़राब हो गई हैं या फिर चोरी हो गई हैं। इस संबंध में हमें एक फूलप्रूफ योजना बनानी होगी।
- चेतावनी केन्द्रों से सही समय पर लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने और बाढ़ से निपटने के लिये तैयारियों का मौका अवश्य मिल जाएगा, लेकिन यह काफी नहीं होगा।
- दरअसल, किसी भी तकनीक के लिये एक ऐसा डिज़ाइन बनाना असंभव है, जो कि वर्ष के पैटर्न में मनमाफिक बदलाव ला सके। अतः बेहतर बाढ़ के प्रबंधन के लिये बारिश के बदलते पैटर्न के अनुरूप एक बहु-आयामी रणनीति की आवश्यकता है।
- बाढ़ प्रबंधन को एक पृथक विषय के रूप में लेने के बजाय इसे विभिन्न विषयों जैसे पर्यावरणीय क्षरण, ग्लोबल वार्मिंग और सुस्त प्रशासन जैसे विषयों के साथ जोड़कर देखना होगा और इन सभी स्तरों पर एकीकृत प्रयास करना होगा।
- बाढ़ नियंत्रण का कोई विधायी उल्लेख नहीं मिलता है। एक विषय के रूप में यह न तो संघ सूची में शामिल है और न राज्य और न ही समवर्ती सूची में। हालाँकि जल निकासी और तटबंध से जुड़ी समस्या का उल्लेख राज्य सूची किया गया है। अतः यह आवश्यक है कि राज्य इस संबंध में अपनी ज़िम्मेदारी का पालन करें।
- लेकिन तथ्य यह भी है कि तमाम प्रमुख प्रदूषण नियंत्रण निकायों की कमान केंद्र सरकार के हाथ में है, जबकि सभी मोर्चों पर एकीकृत प्रयास की ज़रूरत है।
- अतः केंद्र और राज्यों को मिलकर एक ऐसे तंत्र का निर्माण करना होगा जो समन्वित होने के साथ-साथ प्रभावी भी हो। केवल आपदा के समय जागने के बजाय इस तंत्र को लगातार काम करते रहना होगा।
अर्बन फ्लड पर नियंत्रण कैसे ?
- शहरी बाढ़ यानी अर्बन फ्लड की रोकथाम के लिये अनेक ढाँचागत सुधारों की आवश्यकता है। सर्वप्रथम मौजूद जलनिकासी मार्ग ठीक प्रकार से चिह्नित होने चाहिये। शहर के प्राकृतिक जलनिकासी तंत्र में कोई अतिक्रमण नहीं होना चाहिये।
- आज भी पुलों, उपरि मार्गों एवं मेट्रो परियोजनाओं का निर्माण मौजूदा जलनिकासी मार्गों में किया जा रहा है। यह स्थिति सही इंजीनियरिंग डिज़ाइनों जैसे केंटिलीवर निर्माण (cantilever construction) आदि से दूर की जा सकती है।
- छतों पर, ज़मीन पर या भूगर्भ में टैंकों में वर्षाजल भंडारण से जल के अतिरिक्त प्रवाह एवं शहरी बाढ़ का परिमाण कम किया जा सकता है।
- भारी वर्षा के दौरान बुद्धिमानी पूर्वक चुनी गई जगहों पर अपवाह के भंडारण हेतु कुण्ड भी मुहैया कराए जाने चाहिये, ताकि इससे नीचे की ओर बाढ़ न आने पाए। एक बार बारिश के थमने पर पानी को धीमे-धीमे छोड़ा जा सकता है।
- विश्व के अनेक शहरों ने छिद्रदार फुटपाथ बनाए हैं। इससे पानी सतह के नीचे की मिट्टी तक पहुँच जाता है और वांछित स्थिति बनी रहती है। बाढ़ के बढ़ते स्तर को संभालने के लिये हमारे मौजूदा जलनिकासी तंत्र की पुनर्रचना होनी चाहिये। ऐसा या तो नालों के आकार को बदलकर या फिर जलनिकासी अवसंरचना को प्रबंधन के सर्वश्रेष्ठ तरीक़ों से समेकित कर किया जा सकता है।
निष्कर्ष
हमारे शहरों में जनसंख्या का घनत्व अधिक है और शहरी क्षेत्र में आई बाढ़ एक छोटे से क्षेत्र में बड़ी संख्या में रहने वाले लोगों को प्रभावित करती है। इसके अतिरिक्त अर्बन फ्लड से महत्त्वपूर्ण अवसंरचना में जलभराव एवं नुकसान होता है एवं सड़कें और दूसरी सेवाएँ भी प्रभावित होती हैं, यानी जीवन का हर क्षेत्र प्रभावित होता है, जैसा की आज हम मुंबई में देख रहे हैं। अतः इस संबंध में गंभीर प्रयास होने चाहिये।
दरअसल, बाढ़ प्राकृतिक आपदा तो है लेकिन दोषपूर्ण विकासात्मक नीतियों के कारण इसका स्वरूप विकराल हो गया है। हालाँकि इस पर नियंत्रण का कार्य कठिन होते हुए भी, दुर्जेय नहीं है। सुव्यवस्थित आयोजन एवं कार्यनीतियों द्वारा बाढ़ जैसी आपदा से निपटा जा सकता है।