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जैव विविधता और पर्यावरण

कैसे कचरा मुक्त होंगे हमारे महासागर?

  • 18 Oct 2018
  • 6 min read

संदर्भ

महासागरों में बढ़ता प्रदूषण सभी के लिये चिंता का विषय बनता जा रहा है। हर साल अरबों टन प्लास्टिक कचरे के रूप में महासागरों में समा जाता है। यदि भारत के बारे में बात की जाए तो मार्च 2018 में ही मछुआरों ने केरल के दक्षिण तट के कई स्थानों से लगभग 400 किग्रा. मछली पकड़ने के जाल समुद्र से बाहर निकाले। यह केवल एक घटना नहीं है बल्कि तमिलनाडु से महाराष्ट्र तक समुद्र तल से इस प्रकार के जाल निकलने की रिपोर्ट अक्सर सामने आती रहती हैं। घोस्ट गियर (मछली पकड़ने के ऐसे उपकरण जो मछली पकड़ते समय समुद्र में कही खो जाते हैं और लोगों द्वारा उन उपकरणों का त्याग कर दिया जाता है) एक ऐसी समस्या है जिसके बारे में लोगों ने पहले भले ही न सुना हो लेकिन अब इस समस्या को अनदेखा करना मुश्किल है।

समुद्र में बढ़ते कचरे का दुष्परिणाम

  • समुद्र में बढ़ते मलबे ने बहुत सी समस्याओं को जन्म दिया है। 2011 और 2018 के बीच अकेले, ओलिव रिडले प्रोजेक्ट (यूनाइटेड किंगडम द्वारा पंजीकृत एक संगठन जो समुद्र में पड़े जालों को हटाता है और समुद्री कछुओं की रक्षा करता है) ने मालदीव के पास 601 समुद्री कछुओं को घोस्ट गियर में फँसा हुआ पाया, जिनमें से 528 कछुए ओलिव रिडले प्रजाति के थे। ये वही प्रजातियाँ हैं जो हज़ारों की संख्या में ओडिशा के तट पर रहने के लिये आते हैं। 
  • समुद्र में बढ़ते मलबे के कारण मरने वाले समुद्री जीवों में व्हेल, डॉल्फ़िन, शार्क और यहाँ तक कि महासागरीय पक्षी (pelagic birds) भी शामिल हैं।
  • 2016 में जब समुद्री जीवविज्ञानियों की एक टीम ने दुनिया भर से घोस्ट गियर से संबंधित 76 प्रकाशनों और साहित्य के अन्य स्रोतों की समीक्षा की, तो उन्होंने पाया कि 40 विभिन्न प्रजातियों के 5,400 समुद्री जानवरों को घोस्ट गियर में उलझा हुआ या इसके साथ जुड़ा हुआ पाया गया। 
  • इसके विश्लेषण में विभिन्न समुद्री क्षेत्रों के आँकड़ों में बड़ा अंतर भी पाया गया जिसने सभी को इस पर विचार करने के लिये प्रेरित किया। 
  • लेकिन 2 साल बाद भी भारत के पास समुद्री तटों पर पाए गए घोस्ट गियर के बारे में कोई आँकड़ा उपलब्ध नहीं है। 
  • यहाँ आँकड़े इसलिये भी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इन जालों के हानिकारक प्रभाव अन्य देशों और महासागरों में भी देखे गए हैं। 
  • महासागरीय धाराएँ इन जालों को अपने साथ बहाकर हज़ारों किलोमीटर दूर ले जाती हैं, ये जाल समुद्री जीवों को घायल करने के साथ ही प्रवाल भित्तियों को भी नुकसान पहुँचाते हैं। 
  • उदाहरण के लिये, भारतीय और थाई मछली पकड़ने के जाल इन देशों के तटों को छोड़कर समुद्री लहरों के साथ मालदीव के तटों पर पहुँच जाते हैं एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, 2013 और 2014 के बीच मालदीव के तटों पर 74 घोस्ट नेट का संग्रह पाया गया।

राष्ट्रीय घोस्ट नेट प्रबंधन नीति

  • सरकार वर्तमान में एक राष्ट्रीय घोस्ट नेट प्रबंधन नीति तैयार करने की योजना भी बना रही है। घोस्ट गियर की समस्या से निपटने के लिये सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम सराहनीय है।  
  • लेकिन सवाल यह है कि क्या यह नीति मछली पकड़ने के लिये प्रयुक्त होने वाले बड़े जहाज़ों पर भी लागू होगी?

प्रयुक्त जाल का रूपांतरण

  • घोस्ट गियर की समस्या को हल करने का प्रयास किया जाना चाहिये। यदि हम दुनिया भर में इससे संबंधित परियोजनाओं का अध्ययन करें तो इससे निपटने के लिये हमें कई अभिनव समाधान मिल सकते हैं। 
  • कनाडा और थाईलैंड जैसे देशों में मछुआरों द्वारा इस्तेमाल किये गए जाल के प्रयोग से कालीन आदि बनने का कार्य किया जाता है। 
  • इंडोनेशिया जैसे विकासशील देश में पहली बार गियर-मार्किंग प्रोग्राम का परीक्षण किया जा रहा है ताकि गियर के प्रक्षेपवक्र का बेहतर अध्ययन किया जा सके। 
  • मछली पकड़ने वाले समुदायों के बीच आउटरीच और शिक्षा नीति-स्तर के परिवर्तनों के साथ महत्त्वपूर्ण होगी।
  • भारत में एक उदाहरण के तौर पर केरल में कुछ स्थानों पर घोस्ट नेट का इस्तेमाल सड़कों के निर्माण में किया गया है। 

निष्कर्ष

सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण होने के कारण महासागर अत्यंत उपयोगी हैं। पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले पारितंत्रों में महासागर की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम महासागरीय पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा। 

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