डोनाल्ड ट्रम्प ने उठाया अपने राष्ट्रपति शासनकाल का सबसे बड़ा जोखिम | 08 Apr 2017

संदर्भ
गौरतलब है कि अभी हाल ही में सीरिया में हुए रासायनिक हमले से आहत अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक भावनात्मक कदम उठाते हुए अपने युवा राष्ट्रपति शासन का सबसे बड़ा खतरा मोल ले लिया है। उल्लेखनीय है कि सीरियाई रासायनिक हमले के मद्देनज़र जवाबी कार्यवाही करते हुए अमेरिका ने सीरिया में टॉमहॉक मिसाइल से हमला किया है। हालाँकि यह ओर बात है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के रणनीतिक सलाहकारों ने इस हमले को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों एवं रणनीतिक आवश्यकता का रूप देते हुए सही करार दिया है। परंतु वास्तविकता यह है कि यह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया एक भावनात्मक कार्य है, जिसे अचानक पता चला है कि दुनिया की समस्त समस्याएँ अब उसकी समस्याएँ हैं और जिन उपायों को इन समस्याओं को दूर करने के लिये प्रयोग किया जा रहा है वे इन समस्याओं का बेहतर विकल्प साबित नहीं होती है।

परिणाम

  • वस्तुतः सीरिया पर संयुक्त राज्य अमेरिका की इस एकतरफा कार्रवाई ने जहाँ एक ओर इस्लामिक स्टेट और अल-क़ायदा के खिलाफ एकीकृत सैन्य कार्रवाई की संभावना को और अधिक बल प्रदान किया है वहीं दूसरी ओर सीरिया में एक नई वैध राजनीतिक व्यवस्था बनाने की संभावनाओं पर भी प्रश्नचिंह लगा दिया है।
  • अमेरिकी हमले के उपरांत जहाँ एक ओर सीरिया के राजनीतिक विपक्षी दलों को सरकार के खिलाफ जंग जारी रखने के लिये बल मिलेगा वहीं दूसरी ओर सीरियाई युद्ध भी और अधिक लंबा खींच जाएगा। स्पष्ट रूप से इन सब से जो सबसे अधिक प्रभावित होगा वह है सीरिया की मासूम जनता।

इस घटना की पृष्ठभूमि

  • जैसा की हम सभी जानते हैं कि अमेरिका में 9/11 के आतंकी हमले के बाद से पश्चिमी विदेश नीति को गहन वैचारिक विचारों ने बहुत प्रेरित किया है, विशेषकर उनके द्वारा जिनके जीवन का मूल उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मूलभूत मानवाधिकारों की रक्षा करना रहा है।
  • यही कारण है कि वर्ष 2011 में सीरियाई राष्ट्रपति के विरुद्ध आरंभ किये गए प्रयासों जिन्हें अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है, के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की सरकार का सम्पूर्ण ध्यान कुछ विशेष पक्षों की ओर ही रहा।
  • वस्तुतः इनका प्रयास लीबिया और सीरिया को शासन परिवर्तन से सुरक्षित करने के संबंध में ही रहा न कि पूर्व राष्ट्रपति जे. डब्लू. बुश की भाँति ईराक पर हमले की तरह। हालाँकि अमेरिकी सत्ता द्वारा अपने रुख में परिवर्तन करने का मुख्य उद्देश्य इन सत्तावादी तानाशाहों को फंसाकर इन्हें जिहादी निरंकुश सरदारों  के स्थान पर बैठना मात्र था, ताकि ओसामा बिन लादेन की भाँति समय आने पर अमेरिका इनका उपयोग कर सकें।
  • सीरिया में जहाँ एक ओर बशर अल-असद की सरकार अपने मनमाने ढंग से सत्ता का संचालन एवं शक्ति चाह रही थी वहीं दूसरी ओर कुछ कुर्दिश समूहों द्वारा एक साथ मिलकर अकेले ही सीरिया में एक कार्यात्मक एवं असद सरकार की तुलना में कहीं अधिक धर्मनिरपेक्ष राज्य संरचना के मूल सिद्धांतों को स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा था।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2013 में, जब सीरियाई सरकार ने अपने शासनकाल का पहला रासायनिक हमला किया, उस समय तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीरिया पर हमला करने की धमकी दी थी न कि वास्तविक हमला किया था। वस्तुतः इसका कारण यह था कि युद्ध से किसी को भी कुछ हासिल नहीं होता है और इराक युद्ध से प्राप्त अनुभव के बाद अमेरिका पुन: यह गलती नहीं दोहराना चाहेगा। 

मुद्दा सीरिया का नहीं अमेरिका का है

  • यह स्पष्ट है कि अमेरिका द्वारा किये गए मिसाइल हमले से युद्ध की वर्तमान स्थिति में विशेष बदलाव नहीं आएगा वरन् इससे सीरियाई युद्ध की निरंतरता में अवश्य ही वृद्धि होगी। इस सम्पूर्ण अमेरिकी रणनीति की रूपरेखा को निम्नलिखित विरोधाभासी तत्वों को एक साथ जोड़ने के बाद स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
  • जैसा ही ज्ञात है कि वर्तमान अमेरिकी नेतृत्व की राजनीतिक इच्छाशक्ति बहुत अधिक सशक्त नहीं है या यूँ कहे कि वर्तमान सरकार एक पूर्ण युद्ध में शामिल होने या सीरिया में शासन परिवर्तन जैसे बड़े कार्यों को अकेले करने में सक्षम नहीं है।
  • ऐसी स्थिति में सबसे बेहतर विकल्प होगा कि सरकार एक "कम लागत" वाले विकल्प को चुने। ‘कम लागत’ वाला विकल्प यानि सीरिया में हवाई हमले और बम विस्फोटों का उपयोग। 
  • और, यदि अमेरिका सीरिया में सत्ता यदि परिवर्तन जैसी किसी गतिविधि को प्रोत्साहन प्रदान करता है तो सच्चाई यह है कि इस समय सीरिया में सत्ता का कोई प्रभावकारी विकल्प मौजूद नहीं है। और यदि अमेरिका सत्ता परिवर्तन नहीं चाहता है तो इसे असद सरकार को समर्थन देना होगा, अन्यथा ईराक की भाँति सीरिया भी गृहयुद्ध की चपेट में आ जाएगा (जो कि लगभग आ चुका है) और यह समस्या सुलझने की बजाय और अधिक विकराल रूप धारण कर लेगी।
  • इराक और लीबिया में अमेरिकी हस्तक्षेप  और उसके निरंतर होते विनाशकारी परिणामों ने समस्त विश्व को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि सीरिया में अमेरिका हस्तक्षेप का परिणाम कितना अधिक भयावह साबित होगा।

रूस एवं चीन का पक्ष

  • इसके अतिरिक्त कुछ अन्य बड़ी शक्तियों, विशेष रूप से रूस एवं किसी हद तक शायद चीन ने भी ने एक सरल उद्देश्य के आधार पर कार्य करना आरंभ कर दिया है। पिछले कुछ समय से ये दोनों देश अमेरिका को इस बात के संकेत दे रहे है कि अमेरिका अकेला अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये आवश्यक नियमों का निर्धारण नहीं कर सकता है।
  • वस्तुतः यह अभी तक समस्त विश्व पर एकछत्र राज कर रहे अमेरिकी साम्राज्य को चुनौती देने जैसा है|

इस हमले से क्या कोई विशेष परिवर्तन आएगा?

  • उक्त चर्चा के उपरांत प्रश्न यह बनता है कि सीरिया पर किये गए इस हमले से सीरिया में कोई विशेष परिवर्तन आएगा या नहीं ? परिवर्तन होगा या नहीं ये तो हम नहीं जानते है परंतु, इससे वैश्विक परिदृश्य में बदलाव आने के संकेत अभी से मिलने आरंभ हो गए हैं| 
  • अमेरिकी हमले के तुरंत बाद रूसी सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिका के इस कदम की जमकर आलोचना की गई | अब प्रश्न यह बनता है कि अमेरिका के प्रति रूसी सरकार के रुख में बदलाव की परिणति क्या होगी?
  • वर्तमान की स्थिति यह है कि सम्पूर्ण विश्व एक अजीब सी असमंजस्य की स्थिति में है| पिछले कुछ समय से वैश्विक परिदृश्य में यथा; उत्तर कोरिया से लेकर यमन एवं सीरिया तक बहुत तेज़ी से परिवर्तन आ रहा है|
  • वैश्विक महाशक्तियों की छवि स्पष्ट नहीं हो पा रही है| विश्व की बहुत सी छोटी-छोटी शक्तियाँ तेज़ी से उभर रही है, जिनके कारण विश्व में शक्ति का विकेंद्रण हो रहा है| वस्तुतः यह समस्त परिदृश्य एक और विश्व युद्ध के रूप में परिणत होता जान पड़ता है| इसका सबसे प्रमाण यह है कि सीरिया एवं उत्तर कोरिया दोनों देश एक ऐसी अवस्थिति में विद्यमान है जहाँ यदि इन दोनों देशों पर महाशक्तियों का कब्जा हो जाए तो वे सम्पूर्ण विश्व को नियंत्रित कर सकती है|
  • परंतु, अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ समस्या यह है कि वे अभी तक इस मुद्दे पर स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं बना पाए है कि उन्हें इन दोनों बिन्दुओं में से किसे चुनना है, उनकी इस संदिग्ध मन:स्थिति ने सम्पूर्ण विश्व को असमंजस्य में डाल दिया है|