रेटिना संबंधी बीमारी का इलाज : नए अनुसन्धान | 16 Jan 2017

पृष्ठभूमि

कोलकाता के भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Science Education and Research- IISER), कोलकाता; एल. वी. प्रसाद नेत्र संस्थान, हैदराबाद तथा भाभा आण्विक शोध केंद्र, विशाखापत्तनम जैसे शोध संस्थानों द्वारा संपन्न हाल के शोधों के चलते अब नेत्र संबंधी कुछ निश्चित बीमारियों का इलाज संभव हो चुका है| शोधार्थियों द्वारा नेत्र विज्ञान में सु-स्थापित चित्रण पद्धति (Optical Coherence Tomography- OCT)  द्वारा संग्रहित रेटिना संबंधी आँकड़ों का उपयोग किया गया तथा मधुमेह-ग्रस्त  मैकुलर-इडिमा (macular edema) शुरुआती जाँच-पड़ताल के लिये जैव-गणक सांख्यिकीय उपकरण आधारित गणनाओं को प्रयुक्त  किया गया|  

रेटिना 

मनुष्य की आँख के पिछले पर्दे को रेटिना कहते हैं| इसमें कुछ कोशिकाएँ होती हैं जिन तक प्रकाश पहुँचता है और उसी प्रकाश का विश्लेषण करके ये नज़र आने वाली चीज़ की शिनाख़्त करती हैं, यानी आँख का यही हिस्सा देखने में सक्षम होता है| मनुष्यों में आँख की ज़्यादातर बीमारियाँ रेटिना में खराबी की वजह से ही होती हैं| रेटिना में खराबी से उसमें प्रकाश का विश्लेषण करने की क्षमता नष्ट या कम हो जाती है| रेटिना के केन्द्रीय भाग में उपस्थित मैकुला में तरल बनने को मैकुलर इडिमा कहते हैं|  इस तरल निर्माण के कारण मैकुला में सूजन व मोटापन आ जाता है जोकि दृष्टि में विकृति उत्पन्न करता है|

ओसीटी चित्र 

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) एक स्थापित चिकित्सकीय चित्रण तकनीक है जिसमें प्रकाश के उपयोग द्वारा सूक्ष्ममापी विभेदन तथा प्रकाशकीय प्रकीर्णन माध्यमों के अंतर्गत त्रिविमीय चित्र प्राप्त किया जाता है| ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) निम्न ससंजन इंटरफेरोमेट्री पर आधारित होता है जोकि अवरक्त प्रकाश के जैसा होता है| अपेक्षाकृत लंबी तरंग दैर्घ्य के प्रकाश के उपयोग से यह प्रकीर्णित माध्यम को भेद सकता है |  

क्रियाविधि

बीमारियों की शुरुआत में ही उनका इलाज करना तथा बीमारी की प्रगति का निर्धारण करना हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है| उदाहरण के लिये, मानव रेटिना में 10 परतें होती हैं और इन परतों में सूक्ष्म आकारिकी बदलावों से इनकी मोटाई में ऐसा परिवर्तन नहीं होता है जिसे ओसीटी चित्रण के माध्यम से मापा जा सके| ओसीटी चित्रों में सूक्ष्म अपवर्तक सूचकांकों के रूपान्तरों के आँकड़े होते हैं तथा शोधार्थियों ने इन सूचनाओं का उपयोग नेत्र संबंधी बीमारियों के इलाज के लिये और बीमारी की शुरुआती प्रगति का पता लगाने के लिये पहले भी किया है |

जैव ऊतकों का एक जटिल ज्यामितीय स्वरूप होता है जिसे मल्टीफ्रैक्टल्स कहा जाता है | चूँकि ओसीटी द्वारा प्राप्त चित्र प्रकाश के घनत्व पर आधारित होते हैं अतः मल्टीफ्रैक्टल सूचनाएँ छिप जाती हैं| रेटिना की 10 परतों में से प्रत्येक के घनत्व में अंतर होता है, यह अंतर विभिन्न अपवर्तक सूचकांकों द्वारा प्रकट होता है| जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती जाती है वैसे-वैसे माध्यम के अपवर्तक सूचकांक में बदलाव होता जाता है, और यह बदलाव ओसीटी चित्र में दर्ज होता जाता है| ओसीटी चित्रों में छिपे हुए बदलावों के आँकड़ों से निष्कर्ष निकाला जाता है |

द्विविमीय ओसीटी चित्रों में गहराई संबंधी तथा पार्श्व गहराई संबंधी सूचनाएँ होती हैं|  चूँकि शोधार्थियों को गहराई संबंधी सूचनाओं में रुचि थी, अतः पहले द्विविमीय चित्रों को मोड़कर एकविमीय चित्र बनाया गया और उसका विश्लेषण किया गया| रेटिना के मामले में, उसकी विभिन्न परतें भिन्न-भिन्न बीमारियों से ग्रस्त होती हैं| उदाहरण के तौर पर, मधुमेह-ग्रस्त मैकुलर इडिमा के मामले में इसकी प्रकाश-रोधी  (photoreceptor layers) परत प्रभावित होती है, जबकि ग्लूकोमा के मामले में इसकी ऊपरी परत प्रभावित होती है| अतः यह जानना बेहद ज़रूरी होता है कि बीमारी के द्वारा विभिन्न परतें किस प्रकार प्रभावित हो रही हैं| 

मधुमेह-ग्रस्त मैकुलर इडिमा के सुव्यवस्थित वर्गीकरण से उसमें होने वाले बदलावों के बारे में पता चलता है, फलस्वरूप इस बीमारी के अध्ययन की उपयोग तकनीक  का विकास किया जाता है| इससे प्राप्त जानकारियों का उपयोग अन्य नेत्र संबंधी बीमारियों जैसे-  मैकुलर- क्षय (आयु-संबंधी बीमारी) में किया जाता है|