क्या ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग सतत् विकास के क्रम में कारगर साबित होगी? | 21 Jun 2018
संदर्भ
कुछ समय पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने घोषणा की कि जल्द ही आंध्र प्रदेश को पूरी तरह से ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (Zero Budget Natural Farming - ZBNF) वाले राज्य के रूप में परिवर्तित करने का प्रयास किया जाएगा। वर्ष 2024 तक इस लक्ष्य के तहत राज्य के सभी किसानों को शामिल करने की योजना है। आंध्र प्रदेश के 60 लाख किसानों को रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर आधारित मौजूदा खेती के तरीके से हटाकर ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग करने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि 2024 तक प्रदेश की 80 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर खेती करने वाले 60 लाख किसानों को पूरी तरह से ज़ीरो बजट नेचुरल फॉर्मिंग (जेडबीएनएफ) के अंतर्गत शामिल किया जाए। इस संकल्प के बाद आंध्र प्रदेश ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
- हालाँकि पिछले कई वर्षों से इस नई विधि के संदर्भ में कार्य किया जा रहा है, तथापि इस दिशा में उतनी सफलता हासिल नहीं हुई है जितनी कि उपेक्षित है। इसके बावजूद यह किसानों का कल्याण करने, खेती इनपुट की लागत को कम करने, भोजन में विषाक्त पदार्थों को कम करने और मिट्टी में सुधार करने के तरीके के संदर्भ में विशेष रूप से कारगर साबित हो रही है।
- उपरोक्त वर्णन के पश्चात् प्रश्न यह उठता है कि ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग क्या है? इसके मुख्य घटक कौन-कौन से हैं? किस प्रकार से रासायनिक एवं जैविक खेती के विकल्प के रूप में इसका प्रयोग किया जा सकता है? इत्यादि ऐसे बहुत-से पक्ष हैं जिनके विषय में गंभीरता से विचार-विमर्श किये जाने की आवश्यकता है?
ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग
- 1970 के दशक में एक जापानी किसान मसानोबू फुकुओका के मुताबिक नेचुरल फार्मिंग को अपनाने पर बल देते हुए इसे एक प्रकार की "डू नथिंग फार्मिंग” की संज्ञा दी गई है।
- ज़ीरो बजट का अर्थ है चाहे किसी भी सामान्य फसल अथवा बागवानी की फसल का उत्पादन किया जाए उसकी लागत का मूल्य ज़ीरो होना चाहिये।
- फसलों के उत्पादन आदि के लिये जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है वे सभी घर में ही उपलब्ध करना।
- सामान्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर आधारित है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एक देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र से एक किसान तीस एकड़ ज़मीन पर ज़ीरो बजट खेती कर सकता है।
- देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। यह जानना और भी रुचिकर होगा कि खेत में इनका उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का भी विस्तार होता है।
- गाय के एक ग्राम गोबर में असंख्य सूक्ष्म जीव होते हैं जो किसी भी फसल के लिये आवश्यक 16 तत्त्वों की पूर्ति करते हैं। इस विधि के अंतर्गत 90 फीसद पानी और खाद की बचत होती है।
प्रयोग
- जहाँ जीवामृत का महीने में एक या दो बार खेत में छिड़काव किया जाता है, वहीं बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है।
- वस्तुतः इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाज़ार से किसी प्रकार की कोई खाद और कीटनाशक खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
- इसके अतिरिक्त इस विधि से खेती करने पर फसलों की सिंचाई के लिये आवश्यक पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-विधि की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है।
सफल उदाहरण
- राजस्थान में सीकर ज़िले के एक प्रयोगधर्मी किसान कानसिंह कटराथल ने अपने खेत में नेचुरल फार्मिंग विधि अपनाकर उत्साहवर्धक सफलता हासिल की है।
- श्री सिंह के मुताबिक, इससे पहले वह रासायनिक एवं जैविक खेती किया करते थे, लेकिन देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र आधारित ज़ीरो बजट वाली नेचुरल फार्मिंग उन दोनों की अपेक्षा कहीं अधिक फायदेमंद साबित हुई है।
- यहाँ एक अन्य सुखद बात यह है कि सूखा प्रवण रायलसीमा क्षेत्र (आंध्र प्रदेश) में ZBNF के अनुपालन से काफी आशाजनक बदलाव देखने को मिले हैं, जिसने इस संभावना को और भी प्रबल बना दिया है।
- इससे भी अधिक उत्साहजनक बात यह है कि इस कार्यक्रम के बलबूते मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार, जैव विविधता, आजीविका, जल, रसायनों में कमी, जलवायु लचीलापन, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण और पोषण में सुधार के माध्यम से कई टिकाऊ विकास लक्ष्यों की प्राप्ति पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
जैविक खेती बेहतर है या नेचुरल फार्मिंग?
- यदि इस प्रश्न के संदर्भ में नेचुरल फार्मिंग के सूत्रधार महाराष्ट्र के सुभाष पालेकर की बात मानें तो ज्ञात होता है कि जैविक खेती रासायनिक खेती से भी अधिक हानिकारक, विषैली और खर्चीली साबित होती है।
- श्री पालेकर के अनुसार, वैश्विक तापमान वृद्धि में रासायनिक खेती एवं जैविक खेती एक महत्त्वपूर्ण यौगिक के रूप में प्रस्तुत होती है।
- जैविक व रासायनिक खेती प्राकृतिक संसाधनों के लिये निरंतर खतरा बनती जा रही है। इससे मिट्टी का पीएच मानक लगातार बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक लागत पर ज़हरीला अनाज पैदा हो रहा है जो कैंसर जैसी बीमारियों के पैदा होने का कारण बन रहा है।
- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसल की बुवाई से पहले खेत में वर्मी कम्पोस्ट और गोबर खाद को डाला जाता है। इस खाद में निहित 46 प्रतिशत उड़नशील कार्बन (नायट्रस, आक्साइडस, मिथेन आदि) 36 से 48 डिग्री सेल्सियस तापमान के दौरान वायुमंडल में मुक्त हो जाता है जो कि ग्रीन हाउस गैसों के निर्माण में सहायक होता है।
- श्री पालेकर के अनुसार, वर्मी कम्पोस्ट खाद के निर्माण में इस्तेमाल किये जाने वाले आयातित केंचुएँ भूमि के उपजाऊपन के लिये हानिकारक होते हैं। इसका कारण यह है कि ये जीव देशी केंचुआ न होकर आयसेनिया फिटिडा नामक एक जंतु होता है, जो भूमि में उपस्थित काष्ट पदार्थ और गोबर को भोजन के रूप में ग्रहण करता है।
- इन जीवों और देसी केंचुओं में मुख्य अंतर यह होता है कि देसी केंचुआ मिट्टी एवं इसके साथ ज़मीन में मौजूद कीटाणु एवं जीवाणुओं का सेवन कर उन्हें खाद के रूप में रूपान्तरित कर देता है।
- साथ ही इसमें निरंतर ज़मीन में ऊपर नीचे होने की प्रवृत्ति होती है, जिससे भूमि में असंख्य छिद्र हो जाते हैं। इसका लाभ यह होता है कि इन असंख्य छिद्रों के माध्यम से भूमि में वायु का संचार एवं बरसात के जल का पुर्नभरण हो जाता है। इस प्रकार से देसी केंचुआ जल प्रबंधन के संदर्भ में सबसे बेहतर वाहक के रूप में प्रयुक्त होता है। साथ ही खेत की जुताई के संबंध में प्राकृतिक ‘हल’ का भी काम करता है।
- स्पष्ट रूप से न केवल मनुष्य बल्कि पर्यावरण को सुरक्षित एवं स्वस्थ बनाए रखने के लिये ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को अपनाने पर अधिक बल दिया जा रहा है।
आंध्र प्रदेश के संदर्भ में विचार करें तो
- वर्ष 2015 में शुरू किये गए कुछ पायलट कार्यकर्मों की सफलता से प्राप्त अनुभवों को आंध्र प्रदेश राज्य में व्यवहार में लाया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि यह ZBNF नीति को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
- ZBNF को लागू करने वाली एजेंसी रिथु स्वाधिकार द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इस कार्यक्रम को विभिन्न चरणों में क्रियान्वित किया जाएगा। इस वर्ष इसके अंतर्गत करीब 5 लाख किसानों को शामिल करने की योजना है।
- प्रत्येक मंडल में से कम-से-कम एक पंचायत को इस नई विधि में स्थानांतरित करने की दिशा में काम किया जाएगा। 2021-22 तक इस कार्यक्रम का प्रसार राज्य की प्रत्येक पंचायत में करने की योजना है, ताकि 2024 तक पूर्ण कवरेज के साथ इसे लागू किया जा सके।
- वर्तमान में आंध्र प्रदेश में लगभग डेढ़ लाख किसान ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग कर रहे हैं। इसमें रासायनिक खाद और कीटनाशकों की जगह स्थानीय स्तर पर मौजूद गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़ और चने के आटे का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन सभी पदार्थों को एक साथ मिलाकर इनका किण्वन किया जाता है, इसे जीवामृत कहते हैं।
- जब इस मिश्रण को खेती योग्य भूमि में मिलाया जाता है तो यह मिट्टी में ऐसी सूक्ष्मजैविक क्रियाओं को प्रोत्साहित करता है जो न केवल उच्च उत्पादकता को बल देती है बल्कि फसल को विभिन्न प्रकार की बीमारियों एवं कीटों के हमले से भी बचाती है।
वित्तीय आवंटन
- इस कार्यक्रम के संचालन में लगभग 16,500 करोड़ रुपए की लागत आने की संभावना है। इसके लिये किसानों और मज़दूरों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस कार्य में किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organisations) की भूमिका बेहद अहम हो जाती है।
- इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय खेती विकास योजना और परंपरागत खेती विकास योजना के माध्यम से वित्तपोषण प्रदान किया जाता है।
उपज का तुलनात्मक अध्ययन
- रासायनिक खेती की तुलना में ZBNF में विभिन्न नगद और खाद्य फसलों की उच्च पैदावार की दर देखी गई है। उदाहरण के लिये, (खरीफ) 2017 के पायलट चरण में ZBNF भूखंडों से प्राप्त कपास की उपज गैर- ZBNF भूखंडों की तुलना में औसतन 11% अधिक थी। इसी प्रकार गुली रागी (ZBNF) गैर- ZBNF उपज की तुलना में 40% अधिक थी।
- इन सबके साथ-साथ एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि मॉडल ZBNF खेतों में सूखे और बाढ़ का सामना करने की क्षमता सामान्य खेतों की अपेक्षा काफी अधिक होती है, जो जलवायु परिवर्तन की समस्या के संबंध में एक बड़ी राहत प्रदान करती है।
- इसके अलावा एक ही क्षेत्र में कई प्रकार की फसलों और सीमा फसलों के रोपण से न केवल आय में वृद्धि होती है बल्कि पोषक तत्त्वों को भी बल मिलता है।
सिक्किम के संदर्भ में बात करें तो
- जैसा हम सभी जानते हैं कि 2016 की शुरुआत में सिक्किम को भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य घोषित किया गया था।
- जैविक खेती में अक्सर बड़ी मात्रा में वर्मी कंपोस्ट और अन्य सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनकी खरीद-फरोख्त में काफी निवेश की ज़रूरत होती है। ऐसे में जैविक खेती छोटे किसानों के लिये फायदेमंद प्रतीत नहीं होती है।
अन्य राज्यों के लिये मॉडल के रूप में : आंध्र प्रदेश
- आंध्र प्रदेश में होने वाले ये बदलाव रासायनिक खेती के विरोध में खेती-पारिस्थितिकीय सिद्धांतों के आधार पर खेती पद्धतियों में किये गए परिवर्तनों एवं स्केलिंग का परिणाम है। हालाँकि राज्य भर में नेचुरल फार्मिंग को प्रोत्साहित करने के लिये बहुत बड़े पैमाने पर भिन्न-भिन्न तत्त्वों को एक साथ लाने की आवश्यकता है।
- पिछले कुछ वर्षों में इस संदर्भ में आंध्र प्रदेश को वाटरशेड सपोर्ट सर्विसेज़ एंड एक्टिविटीज़ नेटवर्क (Watershed Support Services and Activities Network), सस्टेनेबल एग्रीकल्चर सेंटर (Centre for Sustainable Agriculture) और दक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी (Deccan Development Society) जैसे कई प्रभावी नागरिक समाज संगठनों से समर्थन प्राप्त हुआ है।
- इसके अतिरिक्त, कदम-दर-कदम एक के बाद एक क्षेत्र को इस योजना के तहत शामिल करना एक अन्य उल्लेखनीय पहलू है।
- यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि स्केलिंग का कार्य तभी सफलतापूर्वक संपन्न किया जा सकता है जब किसानों और स्थानीय समूहों को सबसे निचले स्तर से ऊपर तक इस कार्यक्रम के अहम हिस्से के रूप में शामिल किया जाए। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि किसान आत्महत्या के मामले में आंध्र प्रदेश देश के शीर्ष पाँच राज्यों में से एक है। ऐसे में किसी भी योजना के क्रियान्वयन अथवा योजना-निर्माण में उसकी भागीदारी अनिवार्य हो जाती है।
- डेल्टा क्षेत्रों, शुष्क और पहाड़ी जनजातीय क्षेत्रों के संयोजन के रूप में आंध्र प्रदेश देश के अन्य ज़िलों के लिये एक रोल मॉडल बन सकता है। एक ऐसा रोल मॉडल जिसका अनुसरण देश के किसी भी हिस्से में किया जा सकता है।
- यदि ZBNF को भारत के विभिन्न खेती-पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में लागू किया जाता है, तो इसके लिये सबसे ज़ररूरी घटक यह है कि पहले देश के सभी किसानों को इन्नोवेटर अथवा अन्वेक्षक के रूप में तैयार किया जाना चाहिये।
- ग्लोबल वार्मिंग, भारत के बड़े हिस्सों में भूजल में कमी और मॉनसून की विविधता जैसे कारकों के परिणामस्वरूप एक लचीली खाद्य प्रणाली को अपनाना इस समय की एक बहुत बड़ी आवश्यकता बन गई है। यदि समय रहते इस बारे में कार्य नहीं किया जाता है तो देश खाद्यान्न के संदर्भ में आत्मनिर्भर बनने की बजाय अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी सक्षम नहीं हो पाएगा। ऐसे में ZBNF का क्रियान्वयन बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
निष्कर्ष
“धरती में इतनी क्षमता है कि वह सब की जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन किसी के लालच को पूरा करने में वह सक्षम नहीं है.............“ यदि महात्मा गांधी के इस वाक्य को ध्यान में रखकर ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग की जाए, तो न किसान को औने-पौने दाम में अपने उत्पाद बेचने पड़ेंगे और न ही कम पैदावार की समस्या उत्पन्न होगी। पिछले कुछ समय से किसानों के रासायनिक खेती के प्रति रुझान में कमी आई है। देश में रासायनिक खेती के स्थान पर अब जैविक खेती सहित पर्यावरण हितैषी खेती, एग्रो इकोलॉजिकल फार्मिंग, बायोडायनामिक फार्मिंग, वैकल्पिक खेती, शाश्वत खेती, सावयव खेती, सजीव खेती, सांद्रिय खेती, पंचगव्य, दशगव्य खेती तथा नडेप खेती जैसी अनेक प्रकार की विधियों को अपनाने पर बल दिया जा रहा है। ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग जैविक खेती से भिन्न है तथा ग्लोबल वार्मिंग और वायुमंडल में आने वाले बदलाव का मुकाबला एवं उसे रोकने में सक्षम है। इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाला किसान कर्ज़ के झंझट से भी मुक्त रहता है। अत: हमें इस संदर्भ में और अधिक गंभीरता के साथ विचार करने की आवश्यकता है ताकि पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए अन्नदाताओं की आय में वृद्धि के मार्ग को प्रशस्त किया जा सके। साथ ही उपज में वृद्धि का विकल्प भी संभव हो सके।
प्रश्न:ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इससे होने वाले लाभों को उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिये। साथ ही नेचुरल फार्मिंग एवं जैविक खेती के मध्य तुलना करते हुए इनके प्रमुख घटकों एवं पर्यावरण पर प्रभाव को भी रेखांकित कीजिये।