अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत के लिये सही दृष्टिकोण
- 28 Mar 2022
- 13 min read
यह एडिटोरियल 26/03/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Time for India to Redefine its Relationship with Russia” लेख पर आधारित है। इसमें रूस-यूक्रेन संघर्ष के निहितार्थों और इस संबंध में भारत के लिये उपयुक्त दृष्टिकोण के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
यूक्रेन पर रूस की कार्रवाई ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को एक निर्णायक आकार दिया है और इसका भारतीय विदेश नीति पर भी गहरा असर पड़ना तय है। भारतीय कूटनीति के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि भविष्य में भारत के वृहत शक्ति संबंधों को कैसे आगे बढ़ाया जाए। रूस-यूक्रेन युद्ध में अब तक युद्धविराम की स्थिति तो नहीं बन सकी नहीं है, लेकिन रूस पर कई प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं जिसका प्रभाव न केवल रूस पर बल्कि पश्चिमी देशों पर भी दिखाई देगा। एक ऐसे विश्व में जहाँ चीन पहले से ही संयुक्त राज्य अमेरिका को चुनौती देने और अपने प्रभाव का विस्तार करने की राह पर है, यदि चीन-रूस संबंधों में और मज़बूती आती है तो भारत रूस के साथ अपने संबंधों के पुनरीक्षण और ‘क्वाड’ की ओर अधिक आगे बढ़ने के लिये मजबूर हो सकता है।
यूक्रेन-रूस संघर्ष के वैश्विक व्यवस्था पर प्रभाव:
- यूक्रेन पर रूस के हमले ने भारत को एक विदेश नीति संबंधी पहेली में डाल दिया है जिसके जल्द सुलझने की उम्मीद नहीं है क्योंकि रूस की कार्रवाई ने वैश्विक व्यवस्था को बदल दिया है।
- पश्चिमी विश्व ने रूस के विरुद्ध अभूतपूर्व प्रतिबंध लागू किये हैं और ऊर्जा आयात पर रोक लगा दी है जिससे रूसी और पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिये संपार्श्विक क्षति होगी और इससे उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न होगी।
- संघर्ष और परिणामी प्रतिबंधों ने वैश्विक वित्त, ऊर्जा आपूर्ति और परिवहन पर इसके प्रभाव के संबंध में आशंकाओं व चिंताओं को जन्म दिया है।
- कई यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये काफी हद तक रूस पर निर्भर हैं। यदि संघर्ष और प्रतिबंध जारी रहते हैं तो यूरोप में सर्दियों के समय रूस द्वारा ऊर्जा आपूर्ति अवरुद्ध की जा सकती है जैसा कि वर्ष 2006-07 और वर्ष 2009 में हुआ भी था।
- इस बात को लेकर भी आशंका व्यक्त की गई है कि ये प्रतिबंध भारत की रूसी तेल आयात करने की क्षमता को बाधित कर सकते हैं, जैसा अभी तक नहीं हुआ है।
- रूस ने 36 देशों के लिये अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया है। इसके अलावा, कई शिपिंग विमानों को अब एक अलग हवाई मार्ग लेने की आवश्यकता होगी जिससे ईंधन की लागत बढ़ जाएगी।
- रूस और यूक्रेन दोनों गेहूँ और मक्का जैसे खाद्यान्नों के अलावा निकल, पैलेडियम एवं एल्यूमीनियम जैसे खनिजों के बड़े निर्यातक हैं जो मोबाइल और ऑटोमोबाइल सहित विनिर्माण उद्योगों के लिये आवश्यक हैं।
- रूस और यूक्रेन से इन वस्तुओं की आपूर्ति में गिरावट से कीमतों पर और दबाव पड़ेगा।
- रूस और यूक्रेन दोनों गेहूँ और मक्का जैसे खाद्यान्नों के अलावा निकल, पैलेडियम एवं एल्यूमीनियम जैसे खनिजों के बड़े निर्यातक हैं जो मोबाइल और ऑटोमोबाइल सहित विनिर्माण उद्योगों के लिये आवश्यक हैं।
रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत का रुख:
- आरंभ में भारत अमेरिका द्वारा प्रायोजित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के उस प्रस्ताव पर मतदान से अनुपस्थित रहा था, जिसमें यूक्रेन के विरुद्ध रूस की आक्रामकता की कड़ी निंदा की गई थी।
- अब एक बार फिर भारत ने यूक्रेन में मानवीय स्थिति पर रूस द्वारा तैयार किये गए प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लिया है। इस प्रस्ताव में रूस द्वारा नागरिकों की सुरक्षित, तीव्र, स्वैच्छिक और निर्बाध निकासी को सक्षम करने के लिये वार्ता से सहमत युद्धविराम का आह्वान करने की मांग की गई थी।
- यूक्रेन से संबंधित प्रस्तावों पर अभी तक अनुपस्थित रहने के विपरीत यह पहली बार हुआ है कि भारत ने रूस के प्रस्ताव पर अनुपस्थिति के साथ इस संघर्ष में एक प्रकार से पश्चिम का साथ दिया है।
- भारत जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भी मतदान से अलग रहा था। परिषद ने यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों की जाँच के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रस्ताव पेश किया था।
- हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई की निंदा के लिये प्रस्तुत प्रस्ताव से भारत और चीन सहित 33 अन्य देश मतदान से अलग रहे थे।
- उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं श्रीलंका के अलावा मध्य एशियाई देश और कुछ अफ्रीकी देश भी इस मतदान से अलग रहे थे।
- भारत ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के उस प्रस्ताव से भी अनुपस्थिति बनाए रखी जो रूस द्वारा नियंत्रण में लिये गए चार परमाणु ऊर्जा स्टेशनों और चेर्नोबिल सहित कई परमाणु अपशिष्ट स्थलों की सुरक्षा से संबंधित था।
भारत के लिये रणनीतिक चुनौती:
- रूस पर लगाए गए विभिन्न प्रतिबंधों, पश्चिम से उसके अलगाव, रूबल का पतन और रूसी अर्थव्यवस्था की गंभीर स्थिति के बीच भारत के लिये चिंता का विषय यह है कि रूस अब अपनी नीतियों की रक्षा के लिये चीनी समर्थन पर अधिकाधिक निर्भर होता जाएगा।
- रूस ने प्रतिबंधों और रद्द हुए तेल खरीद समझौतों से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिये चीनी मदद की मांग की है।
- अमेरिका के अनुसार, रूस ने चीन से सैन्य साजो-सामान की भी मांग की है।
- भारत की वास्तविक रणनीतिक चुनौती चीन के उदय के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रकट हो रही है, क्योंकि बीजिंग ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के माध्यम से अपने सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र के विस्तार का लगातार प्रयास कर रहा है।
- यद्यपि भारत के हित में यह है कि अमेरिका चीन पर अपना ध्यान अधिक केंद्रित रखे, लेकिन वाशिंगटन के लिये नाटो की परिधि में रूस की आक्रामकता की अनदेखी करना संभव नहीं है।
भारत को एक संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखने की आवश्यकता:
भारत के लिये गुटनिरपेक्ष बने रहना न्यूनतम भू-राजनीतिक जोखिम की स्थिति बनाता है-
- पश्चिम के साथ जाने पर भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण सैन्य भागीदार रूस से दूर होने का खतरा उत्पन्न होगा जो वर्ष 2010 से भारत के हथियारों के आयात में 62% की हिस्सेदारी रखता है।
- दूसरी ओर, रूस पर चुप बने रहने से भारत के अमेरिका और क्वाड के साथ संबंधों को खतरा पहुँचेगा जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था की इच्छा रखते हैं।
रूस के साथ गठबंधन
- शीत युद्ध की अवधि में भारत ने सोवियत संघ को पश्चिमी आधिपत्य के विरुद्ध एक भरोसेमंद भागीदार के रूप में देखा था।
- USSR के विघटन के बाद भारत अमेरिका की एकध्रुवीयता के विरुद्ध रूस और चीन (और ब्राज़ील एवं दक्षिण अफ्रीका) के साथ एक समूह में आगे बढ़ा।
- भारत ने रूस के साथ भागीदारी बनाए रखी जो एक महत्त्वपूर्ण हथियार आपूर्तिकर्ता है।
- हाल के समय में मज़बूत भारत-रूस संबंधों ने ही यह सुनिश्चित किया कि अफगानिस्तान और मध्य एशिया पर वार्ता में नई दिल्ली की पूर्ण अनदेखी नहीं की जा सकी, जबकि इसका अमेरिका के साथ संबंध में भी कुछ लाभ मिला।
पश्चिम के साथ गठबंधन
- अमेरिका, यूरोपीय संघ और यूके सभी भारत के महत्त्वपूर्ण भागीदार हैं और उनमें से प्रत्येक के साथ सामान्य रूप से पश्चिमी विश्व के साथ भारत के संबंध अपेक्षा से अधिक गहरे रहे हैं।
- सरकार के और उससे संबंधित सभी लोगों को रूस के साथ भारत के संबंधों के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिये क्योंकि वह चीन के अत्यंत निकट चला गया है।
- वैश्विक कूटनीति में राष्ट्रों के अपने हित होते हैं जो मित्रता से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं।
- रूस पर चीन के दखल के साथ अमेरिका ही वह देश हो सकता है जो एक महान शक्ति के रूप में भारत के भविष्य को मज़बूत करेगा।
- भारत को दबाव बना रहे देशों के समक्ष यह स्पष्ट कर देना चाहिये कि उनका ‘हमारे साथ या हमारे विरुद्ध’ का फॉर्मूला रचनात्मक नहीं माना जा सकता।
भारत की सामयिक आवश्यकता:
- हथियारों में आत्मनिर्भरता: चीनी विस्तारवाद और सीमाओं पर उसके दुस्साहस, अफगानिस्तान से अमेरिकी सैन्य बल की वापसी से अचानक रिक्त हुए दक्षिण एशियाई भू-भाग की स्थिति में भारत को अमेरिका और रूस दोनों की आवश्यकता है ताकि एशिया में चीनी रणनीतिक और भू-आर्थिक खतरे का सामना किया जा सके।
- यद्यपि यह समझ लेना महत्त्वपूर्ण है कि जब दो प्रमुख शक्तियों के बीच संघर्ष होता है तो उन्हें अपनी लड़ाई अकेले ही लड़नी होती है। इसलिये आत्मनिर्भरता ही कुंजी है।
- जब भारत हथियारों के मामले में वास्तविक आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त कर लेगा, तभी वह दुनिया की आँखों में आँखें डाल कर देख पाएगा।
- संतुलित दृष्टिकोण: यदि एशिया में स्थल क्षेत्र में भारत-रूस साझेदारी महत्त्वपूर्ण है तो हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी समुद्री विस्तारवाद का मुक़ाबला करने के लिये ‘क्वाड’ अनिवार्य है।
- चीन का मुक़ाबला करने की अनिवार्यता भारतीय विदेश नीति की आधारशिला बनी हुई है, शेष सब बातें यूक्रेन में रूसी कार्रवाई पर दिल्ली के रुख सहित, इसी आवश्यकता से प्रेरित हैं।
- भारत में पश्चिम की रुचि को समझना: भारत के विदेश नीति प्रतिष्ठान में इस बात पर बहस चल रही है कि भारत अपनी तटस्थता से या पश्चिम का पक्ष लेने से किस लाभ-हानि की स्थिति का सामना कर सकता है।
- यह सोच भी मौजूद है कि पश्चिम इस समय भारत से अलग होने का जोखिम नहीं उठा सकता क्योंकि उसे भारत के बाज़ारों और एक लोकतंत्र के रूप में भारत के कद की ज़रूरत है, क्योंकि वह चीन को नियंत्रित करने के लिये भागीदारों की तलाश कर रहा है।
अभ्यास प्रश्न: चर्चा करें कि रूस-यूक्रेन संघर्ष ने वैश्विक भू-राजनीति को कैसे प्रभावित किया है और भारत को अपने हितों की रक्षा के लिये क्या करना चाहिये।