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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

निजता के अधिकार से उत्पन्न समस्याएँ

  • 16 Aug 2017
  • 8 min read

भूमिका
पिछले काफी समय से देश में निजता के अधिकार के संबंध में बहुत सी खबरें प्रकाशित हुईं, बहुत से सम्मेलन आयोजित किये गए और मुद्दा भी सभी में एकसमान था कि आखिर "निजता का अधिकार" क्या है? क्या भारत के संविधान में इसका उल्लेख किया गया है अथवा नहीं ? यदि हाँ तो संविधान के किस अनुच्छेद के तहत इसकी मांग की जा सकती है? क्या आधार में निहित सूचनाएँ इस अधिकार के तहत सुरक्षित हैं अथवा नहीं? ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो निजता के अधिकार के संबंध में चिंता का सबब बनी हुई हैं। इसी क्रम में सर्वोच्च न्यायालय ने आधार और गोपनीयता के संबंध चल रही एक सुनवाई के दौरान एक अमेरिकी विचार "अकेले रहने देने के अधिकार" का हवाला देते हुए इससे उत्पन्न चुनौतियों एवं स्थिति के संबंध में चिंता व्यक्त की है, जिसने इस मुद्दे को एक बार फिर से चर्चा का विषय बना दिया है। 

  • हालाँकि, इस संबंध में यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि देश कि समस्त जनसंख्या की  निजी सूचनाओं से संबद्ध आधार कार्ड की गोपनीयता जैसे गंभीर मुद्दे के संबंध में सरकार द्वारा अभी तक कोई विशेष कदम नहीं उठाये गए हैं।
  • स्पष्ट रूप से सरकार की यह खामोशी ऐसे बहुत से प्रश्नों को जन्म देती है, जिनके विषय में गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है। ऐसे ही कुछ मुद्दों को हमने इस संक्षिप्त लेख के अंतर्गत समाहित करने एक प्रयास किया है।  

प्रश्नों के दायरे में निजता का अधिकार

  • सर्वप्रथम जैसा कि इसके आरंभिक रूप में समझ में आता है, संविधान के तहत मान्यता प्राप्त मौलिक अधिकार अपने में पूर्ण अधिकार नहीं हैं।
  • संभवतः यही कारण है कि इन्हें सामान्य कल्याण के हित में उचित रूप से प्रतिबंधित किया जा सकता है। विदित हो कि ऐसा कोई भी अधिकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने के अधिकार के अधीन आता है।
  • यदि निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में प्राथमिकता प्रदान की जाती है तो यह बार-बार कानूनी अधिकारों को चुनौती देने का विकल्प प्रदान करेगा।
  • दूसरा, यह कि भारत सरकार की योजना रोज़मर्रा के अधिकतर लेन-देन संबंधी कार्यों में आधार को अनिवार्य बनाने की है परंतु स्पष्ट रूप से कल्याणकारी योजनाओं के दायरे से पृथक सरकार की यह योजना गोपनीयता के अधिकार पर एक उचित प्रतिबंध के रूप में उतनी सार्थक साबित नहीं होती है जितना की सरकार दावा कर रही है।
  • वस्तुतः जब तक कि न्यायालय द्वारा इस संबंध में कोई विशेष अपवाद प्रस्तुत नहीं किया जाता है तब तक देश के सभी नागरिकों को सरकार द्वारा चिन्हित सभी योजनाओं के तहत अपनी आधार संख्या को दर्ज़ करना अनिवार्य (जैसा भी योजना का प्रावधान हो उसके अनुरूप) होगा।
  • तीसरा, यदि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में उपबंधित हो जाता है तो यह सूचना के अधिकार में निहित बहुत से प्रावधानों का इसके सही रूप में उपयोग करने का अवसर प्रदान करेगा।

सूचना का अधिकार एवं निजता का अधिकार

  • ध्यातव्य है कि अभी तक सूचना का अधिकार मौलिक अधिकारों की सूची में नहीं आता है, इसे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत एक वैधानिक अधिकार के रूप में लागू किया गया है। 
  • स्पष्ट रूप से ऐसी कोई भी पहल बहुत सी ऐसी सूचनाओं को उजागर करने के संबंध में एक अहम् भूमिका निभाएगी, जिन्हें अभी तक पारदर्शिता के नाम पर कम महत्त्व दिया जाता रहा है ।
  • इस संबंध में एक और बात है जो चिंता का विषय है, वह यह कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है अथवा नहीं, यह तय करने से पहले हमें यह स्पष्ट करने की आवश्यकता है कि भारतीय संदर्भ में निजी गोपनीयता का क्या अर्थ है? 
  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि निजता की अवधारणा को वास्तविक रूप प्रदान करने के क्रम में आधार अधिनियम ने एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई है, तथापि वृहद् अर्थों में यह उतना अधिक प्रभावी नहीं है जितना कि प्रतीत होता है।
  • सच तो यह है कि हमारे देश में निजता की परिभाषा को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति है। संभवतः ऐसा इसलिये होता है, क्योंकि उन्हें निजता की अवधारणा की स्पष्ट समझ ही नहीं है।
  • कितनी बार ऐसा होता है कि बैंक में कर्मचारी स्वयं ग्राहक को बैंक फॉर्म भरवाने के लिये किसी अन्य ग्राहक द्वारा भरे हुए फॉर्म का प्रारूप दे देते है।
  • न जाने कितनी बार डॉक्टरों द्वारा मरीज को किसी बीमारी के विषय में जानकारी प्रदान करते समय किसी अन्य मरीज की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए देखा जाता है, बिना इस बात का ख्याल किये कि ऐसा करना उस मरीज की निजता का उल्लंघन करना है।     
  • एक ओर आम नागरिक को "सूचना का अधिकार" प्राप्त है और वहीं दूसरी ओर व्यक्ति के "निजता के अधिकार" का प्रश्न है। अत: स्पष्ट है कि यह मुद्दा उतना आसान नहीं है जितना कि प्रतीत होता है।

 निष्कर्ष
हालाँकि इस समस्त परिदृश्य में सबसे अच्छी बात यह है कि सरकार द्वारा इस संबंध में विशेषज्ञों की एक टीम गठित की गई। उल्लेखनीय है कि इस संबंध में निजता पर जस्टिस शाह पैनल द्वारा प्रस्तुत सिफारिशें एक प्रमुख भूमिका का निर्वाह करेंगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत अभी भी डाटा संरक्षण के संदर्भ में काफी पिछड़ा हुआ है। हमारे देश में डाटाबेस की सुरक्षा के संबंध में कोई विशेष व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। वो भी ऐसे समय में जब दुनिया प्रौद्योगिकी के मामले में इतनी अधिक आगे निकल गई है। हालाँकि, मात्र एक आधार की सुरक्षा के संदर्भ में भारत की क्षमता पर ऊँगली नहीं उठाई जा सकती है, तथापि हमें इस संबंध में विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है । 

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