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वैश्विक महामारी: मानव व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता

  • 16 May 2020
  • 13 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में मानव व्यवहार परिवर्तन व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

कोरोना वायरस के प्रकोप से विश्व व्यवस्था व्यापक परिवर्तन के दौर से गुज़र रही है। इन परिवर्तनों की व्यापकता सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों के साथ ही मानव के व्यवहार में भी देखने को मिल रही है। मानव के व्यवहार में परिवर्तन का यह स्वरूप स्वैच्छिक भी होगा और विधिक भी। यहाँ मानव व्यवहार में परिवर्तन के विधिक स्वरुप से तात्पर्य कानून बनाकर उसे अपने व्यवहार में कुछ सकारात्मक परिवर्तन लाने होंगे। इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है कि सार्वजनिक स्थानों पर थूकना एक दंडनीय अपराध बना दिया गया है, ताकि लोग कानून का पालन करें और अपने व्यवहार में परिवर्तन लाएँ। ऐसा नहीं है कि व्यवहार परिवर्तन की यह अवधारणा भारत में नई है, इससे पूर्व देश की स्वतंत्रता के बाद सरकारी योजनाओं में जनता की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिये उनके व्यवहार में परिवर्तन का प्रयास किया गया था।

व्यवहार परिवर्तन का यह प्रयास अनवरत रूप से जारी रहा और वर्तमान में इस अवधारणा के सकारात्मक परिणाम हमें स्वच्छ भारत अभियान, बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ अभियान तथा गिव इट अप अभियान में देखा जा रहा है। वर्ष 2019 में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण में व्यावहारिक अर्थशास्त्र का उल्लेख किया गया था। विदित है कि व्यावहारिक अर्थशास्त्र पर वर्ष 2017 में अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर को नोबेल पुरस्कार मिला था, इसके बाद से व्यावहारिक अर्थशास्त्र की अवधारणा पर अधिक चर्चा होने लगी है। भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में इस अवधारणा का उपयोग सामाजिक बदलाव व मानवीय व्यवहार परिवर्तन के लिये करने पर बल दिया गया है। 

इस आलेख में व्यवहार परिवर्तन की अवधारणा ‘व्यावहारिक अर्थशास्त्र’, उसके परिणाम, उसके अनुप्रयोग के क्षेत्र के साथ व्यवहार परिवर्तन की वैकल्पिक रणनीतियों भी पर विश्लेषण किया जाएगा।

व्यावहारिक अर्थशास्त्र से तात्पर्य 

  • ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति अपने निर्णय स्वयं के सर्वोत्तम लाभ को ध्यान में रखकर लेता है। अर्थशास्त्र के ‘तार्किक विकल्प सिद्धांत’ का भी यही मानना है कि एक तार्किक व्यक्ति लाभ, उपयोगिता तथा लागत को ध्यान में रखकर अपने निर्णय लेता है। व्यावहारिक अर्थशास्त्र की अवधारणा उपर्युक्त विचारों से भिन्न है, इस अवधारणा का मानना है कि लोगों के निर्णय अन्य बातों पर भी निर्भर करते हैं।
  • व्यावहारिक अर्थशास्त्र के अनुसार, मानव का व्यवहार प्रमुख रूप से समाज एवं उसके बनाए नियमों से प्रमुख रूप से प्रभावित होता है। भारत में सामाजिक एवं धार्मिक नियम लोगों के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं तथा लोगों के व्यवहार को परिवर्तित करते हैं, इस तथ्य को ध्यान में रखकर ज़रूरी बदलाव लाने में व्यावहारिक अर्थशास्त्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता

  • जैसा की हम जानते हैं कि इस वैश्विक महामारी से बचाव का एक बेहतर विकल्प फिज़िकल डिस्टेंसिंग अर्थात शारीरिक दूरी है। भारत की घनी आबादी को देखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि वायरस के प्रकोप से बचने के लिये अपने व्यवहार में परिवर्तन करते हुए स्वास्थ्य मानकों का अनुपालन करना ज़रूरी है।
  • इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिये अब हमें अभिवादन की पारंपरिक प्रक्रिया ‘नमस्ते’ का अनुपालन किसी भी शारीरिक स्पर्श के बिना करना होगा।
  • प्रत्येक व्यक्ति को फेस मास्क का प्रयोग अनिवार्य रूप से करना होगा क्योंकि ड्रॉपलेट्स के माध्यम से वायरस का प्रसार एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में तेज़ी से हो सकता है।
  • सभी लोगों को समय-समय पर हाथों को सैनेटाईज़ करने या साबुन से धुलने के नियम को अपने व्यवहार में शामिल करना होगा क्योंकि हाथ वायरस के शरीर में प्रवेश का प्रमुख कैरियर बन सकते हैं।

व्यवहार परिवर्तन हेतु वैकल्पिक रणनीतियाँ

  • नज़ सिद्धांत: 
    • यह व्यवहारात्मक विज्ञान की संकल्पना है जिसमें बिना दबाव के तथा सकारात्मक दिशा-निर्देशों और परोक्ष सुझावों द्वारा लोगों को वांछनीय और लाभकारी व्यवहार अपनाने हेतु प्रेरित किया जाता है।
    • इस सिद्धांत के द्वारा ही लोगों के भीतर खुले में शौच के प्रति नकारात्मक भाव पैदा कर सामुदायिक शौचालयों का उपयोग करने के प्रति प्रेरित किया गया। इस कार्य में दरवाज़ा बंद जैसे अभियान कारगर सिद्ध हुए।
    • इस सिद्धांत का प्रयोग करते हुए ही समाज बेटियों की महत्ता को समझते हुए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) से बेटी आपकी धन लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी (BADLAV) की दिशा में अग्रसर हुआ। लोगों के इस व्यवहार परिवर्तन में सेल्फी विद डॉटर जैसे सामाजिक पहलों का बड़ा योगदान रहा।
  • ICE मॉडल: 
    • सूचना, शिक्षा और संचार (Information, Education and Communication-ICE) ऐसा उपाय है जो एक निर्धारित समयावधि में किसी विशिष्ट समस्या के बारे में लक्षित समूह के व्यवहार को बदलने या सुदृढ़ करने का प्रयास करता है।  
    • अमेरिका में पिछले 30 वर्षों में LGBTQ+ समुदाय के प्रति दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन हुआ है। यह नाटकीय बदलाव किसी कानून के कारण नहीं हुआ, बल्कि बहस और विचार-विमर्श के कारण समाज में विकसित हुई परानुभूति (Empathy) का परिणाम है। 
  • सामाजिक विपणन
    • सामाजिक विपणन से तात्पर्य बाज़ार में अपनी ज़रुरत की वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं को अनावश्यक रूप से स्पर्श न करने से है। उदाहरण- कई बार लोग अनावश्यक रूप से वस्तुओं को स्पर्श करते हैं या कपड़ों को पहन कर देखते हैं जबकि उन्हें उस वस्तु की खरीदारी नहीं करनी होती है।       
    • अर्थव्यवस्था के सुदृढीकरण हेतु वाणिज्यिक गतिविधियों को प्रारंभ करना आवश्यक हो गया है। ऐसे में समय के साथ ही लोगों का अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बाज़ार का रुख करना होगा। 
    • लोगों को बाज़ार में अपनी ज़रुरत की वस्तुओं कि खरीदारी करते समय सामाजिक विपणन के नियम का अनुपालन अपने व्यवहार में शामिल करना चाहिये। 
  • गैर-सरकारी संगठन
    • इस महामारी से उपज़ी परिस्थितियों से निकलने के लिये स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका निर्णायक हो सकती है, क्योंकि समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सरकार की पहुँच इन संगठनों के माध्यम से सुनिश्चित की जा सकती है।
    • इन गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से सरकार समाज के प्रत्येक वर्ग में स्वास्थ्य मानकों के प्रति जागरूकता पैदा कर सकती है।
  • हेल्थ बिलीफ मॉडल 
    • सामाजिक मनोचिकित्सक इरविन रोसेनस्टॉक (Irwin Rosenstock) ने हेल्थ बिलीफ मॉडल (Health Belief Model) के माध्यम से बताया कि व्यक्ति अपने व्यवहार में परिवर्तन कर कई बीमारियों से स्वयं को बचा सकता है।  
    • इस मॉडल में व्यक्ति की भावनाओं को प्रभावी क्रिया के रूप में प्रयोग करने पर बल दिया जाता है। जैसे- किसी बुरी आदत को छोड़ने के लिये माँ के द्वारा किया गया भावनात्मक निवेदन बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन लाता है। 
    • प्रधानमंत्री द्वारा जब ‘जनता कर्फ्यू’ की अपील की गई तब लोगों के व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिला क्योंकि यह एक भावनात्मक निवेदन था, जिसने प्रभावी रूप से कार्य किया। 

व्यवहार में परिवर्तन लाने के सफल प्रयास 

  • सार्वजनिक व्यवहार को प्रभावित करने के मामले में कानूनों के सफल होने की अधिक संभावना है। जैसे धूम्रपान को नियंत्रित करने के लिये स्वास्थ्य चेतावनी सहित कई उपायों का उपयोग किया जाता हैं।
  • लेकिन एक कारक जिसने धूम्रपान में निरंतर गिरावट लाने में योगदान किया है, वह है सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध।
  • मनुष्य किसी व्यवहार की अपेक्षित लागत के आधार पर भी एक निषिद्ध गतिविधि में संलग्न होने के बारे में निर्णय लेते हैं।
  • यदि सज़ा की गंभीरता और संभावना किसी गतिविधि से प्राप्त होने वाले लाभ या आनंद से अधिक है, तो व्यक्ति उस व्यवहार से बचना चाहेगा।
  • उदाहरणस्वरुप, संशोधित मोटर वाहन अधिनियम, 2019 ने जुर्माने को अप्रत्याशित रूप से बढ़ा कर लोगों को यातायात नियमों का पालन करने के लिये बाध्य किया है। 

निष्कर्ष 

  • चूँकि इस वैश्विक महामारी के प्रसार का कारण मानव गतिविधि और व्यवहार है। अतः मानव गतिविधि और व्यवहार से संचालित समस्या के समाधान के लिये सरकार और न्यायालयों से परे दृष्टिकोण की आवश्यकता है। अच्छे और प्रभावी नियमों की भी अपनी भूमिका होती है, लेकिन सांस्कृतिक और व्यावहारिक बदलाव सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इस प्रकार के प्रयासों के माध्यम से देश की ज़रूरतों के अनुसार लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं भी अपने व्यवहार में परिवर्तन लाते हुए स्वास्थ्य मानकों का बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिये। इस संदर्भ में महात्मा गांधी की यह उक्ति ध्यान में रखी जानी चाहिये कि ‘जो परिवर्तन आप दूसरों में देखना चाहते हैं, वह परिवर्तन आप स्वयं में लाइये।’ 

प्रश्न- व्यावहारिक अर्थशास्त्र क्या है? मानव व्यवहार परिवर्तन की वैकल्पिक रणनीतियों का उल्लेख करते हुए तर्कों सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये।

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