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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नया अंतरिक्ष युग

  • 05 Dec 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 21/11/2022 को ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ में प्रकाशित “Space for start-ups” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र और भारत के पहले निजी तौर पर निर्मित रॉकेट विक्रम-एस के सफल प्रक्षेपण के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की ओर से तेज़ी से बढ़ते निवेश और तकनीकी नवाचार की त्वरित गति के साथ अंतरिक्ष क्षेत्र का अभूतपूर्व विस्तार हो रहा है जो एक नए अंतरिक्ष युग (The New Space Age) का सूत्रपात कर रहा है।

  • भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्ष 2025 तक लगभग 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर की हो जाएगी जहाँ निजी भागीदारी में वृद्धि के कारण उपग्रह प्रक्षेपण सेवा खंड में सबसे तेज़ वृद्धि देखने को मिलेगी।
  • स्काईरूट (Skyroot) स्टार्ट-अप द्वारा भारत के पहले निजी तौर पर निर्मित रॉकेट विक्रम-एस (Vikram-S) के सफल प्रक्षेपण ने निजी उद्यम के लिये अंतरिक्ष क्षेत्र का द्वार खोलने की दिशा में आशाजनक ध्यान आकर्षित किया है।
  • जबकि यह कई अवसर प्रदान करता है, यह कई विशिष्ट चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है जिन्हें ‘न्यू स्पेस’ के समग्र दृष्टिकोण को विकसित करने और अंतरिक्ष क्षेत्र में शांतिपूर्ण एवं सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिये संबोधित करना आवश्यक है।

विक्रम-एस क्या है?

  • रॉकेट को भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा विकसित किया गया है। इसका नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है।
  • यह एक एकल-चरण उप-कक्षीय प्रक्षेपण यान है जो तीन ग्राहक पेलोड लेकर अंतरिक्ष में गया।
    • इसे कार्बन कम्पोजिट स्ट्रक्चर और 3D-प्रिंटेड घटकों सहित अन्य उन्नत तकनीकों का उपयोग करके बनाया गया।

अंतरिक्ष क्षेत्र में विकास क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • अन्य क्षेत्रों पर सकारात्मक प्रभाव: अंतरिक्ष अभियान एयरोस्पेस, आईटी हार्डवेयर और दूरसंचार क्षेत्रों का एकीकरण है। इसलिये तर्क दिया जाता है कि इस क्षेत्र में निवेश से अन्य क्षेत्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • ‘कनेक्टेड द अनकनेक्टेड’: कनेक्टिविटी के दृष्टिकोण से, उपग्रह संचार दूरस्थ क्षेत्रों तक अधिक सरल पहुँच बना सकता है जहाँ पारंपरिक नेटवर्क के लिये भारी पूरक अवसंरचना की आवश्यकता होती है।
    • विश्व आर्थिक मंच ने सितंबर 2020 में कहा था कि उपग्रह संचार दुनिया की 49% असंबद्ध या ‘अनकनेक्टेड’ आबादी को जोड़ने में मदद कर सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटना: उपग्रह मौसम पूर्वानुमान के बारे में अधिक सटीक जानकारी प्रदान करते हैं और किसी क्षेत्र की जलवायु एवं वास क्षमता (Habitability) के दीर्घकालिक रुझानों का आकलन करने (और उन्हें दर्ज करने) में सक्षम होते हैं।
    • उदाहरण के लिये, प्रादेशिक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पैमानों पर जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभाव की निगरानी करके सरकारें किसानों और आश्रित उद्योगों के लिये अधिक व्यावहारिक तथा रोधी योजनाएँ तैयार करने में सक्षम होंगी।
    • इसके अतिरिक्त, वे भूकंप, सूनामी, बाढ़, वनाग्नि, खनन दुर्घटना जैसी प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध वास्तविक-समय निगरानी (Real-Time Monitoring) और पूर्व-चेतावनी समाधानों के रूप में भी योगदान कर सकते हैं।
      • वास्तविक-समय निगरानी रक्षा क्षेत्रों में भी कई उद्देश्यों की पूर्ति कर सकती है।

बाह्य अंतरिक्ष से संबंधित चुनौतियाँ

  • निजी प्रवेश के लिये छोटी खिड़की: इसरो (ISRO) के वार्षिक बजट के लिये लगभग 15,000 करोड़ रुपए रखे जाते हैं, जिनमें से अधिकांश रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण पर खर्च किये जाते हैं। इसके साथ ही, निजी क्षेत्र के पास अवसर की अपेक्षाकृत छोटी खिड़की ही उपलब्ध है।
    • इसके कारण, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था लघु बनी रही है और इसकी क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया जा सका है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में चीन का प्रभाव: चीन ने अपने स्वयं के नेविगेशन सिस्टम ‘BeiDou’ के सफल प्रक्षेपण के साथ अंतरिक्ष में एक मज़बूत उपस्थिति स्थापित की है।
    • यदि बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) के सदस्य देश भी चीन के अंतरिक्ष क्षेत्र में योगदान करते हैं या इसमें शामिल होते हैं तो चीन की स्थिति और सुदृढ़ होगी। भारत जैसी उभरती हुई अंतरिक्ष शक्तियों के लिये इससे एक गंभीर चुनौती का उभार हो रहा है।
  • अंतरिक्ष मलबे की वृद्धि: बढ़ते अंतरिक्ष अभियान के साथ बाह्य सौर मंडल में अंतरिक्ष मलबे (Space Debris) की भी वृद्धि हो रही है जो उच्च कक्षीय गति के कारण वर्तमान में कार्यान्वित और भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों को हानि पहुँचा सकता है।
    • अंतरिक्ष मलबा ओजोन क्षरण का भी कारण बन सकता है।
  • वैश्विक भरोसे की कमी (Global Trust Deficit) में वृद्धि: बाह्य अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण के लिये हथियारों की होड़ दुनिया भर में संदेह, प्रतिस्पर्द्धा और आक्रामकता का माहौल पैदा कर रही है, जो संभावित रूप से संघर्ष की ओर ले जा रही है।
    • इससे उपग्रहों की पूरी शृंखला के साथ-साथ वैज्ञानिक अन्वेषणों और संचार सेवाओं से संलग्न लोगों के लिये जोखिम उत्पन्न होगा।
  • अनियमित वाणिज्यीकरण: इंटरनेट सेवाएँ (स्टारलिंक-स्पेसएक्स द्वारा) प्रदान करने के लिये और अंतरिक्ष पर्यटन (जेफ बेज़ोस द्वारा) के लिये उपग्रह अभियानों के विकास के कारण बाह्य अंतरिक्ष का वाणिज्यीकरण तेज़ हो रहा है।
    • किसी नियामक ढाँचे की अनुपस्थिति में बढ़ते वाणिज्यीकरण से अंतरिक्ष पर एकाधिकार जैसी स्थिति का निर्माण हो सकता है।

आगे की राह

  • निजी निकायों को विधायी समर्थन: आर्थिक सर्वेक्षण 2020-2021 के अनुसार, भारत में अंतरिक्ष खंड में 40 से अधिक वित्तपोषित स्टार्ट-अप कार्य कर रहे हैं और आने वाले वर्षों में इनकी संख्या और बढ़ने की संभावना है।
    • वर्तमान परिदृश्य और उभरता हुआ परिदृश्य भारत में निजी अंतरिक्ष गतिविधियों पर एक राष्ट्रीय विधान के माध्यम से विधायी निश्चितता में निजी संस्थाओं के अधिकारों और दायित्वों को निर्धारित करने की आवश्यकता को उचित ठहराता है।
    • यह बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों पर संयुक्त राष्ट्र संधियों के तहत अपने दायित्वों का प्रभावी ढंग से निर्वहन कर सकने में भारत का समर्थन भी करेगा।
  • अंतरिक्ष आत्मरक्षा क्षमताओं में वृद्धि: चूँकि अंतरिक्ष एक चौथा युद्धक्षेत्र बन गया है, भारत को अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है। किलो एम्पेयर लीनियर इंजेक्टर (Kilo Ampere Linear Injector- KALI) को देश की शांति को बाधित करने के उद्देश्य से आने वाले किसी भी मिसाइल के सक्षम प्रतिरोध के रूप में विकसित किया जा रहा है।
  • अंतरिक्ष संपत्ति की रक्षा: मलबे और अंतरिक्ष यान सहित अपनी अंतरिक्ष संपत्ति का प्रभावी ढंग से बचाव करने के लिये भारत को विश्वसनीय एवं सटीक ट्रैकिंग क्षमताओं की आवश्यकता है।
    • प्रोजेक्ट नेत्र (Project NETRA)—जो भारतीय उपग्रहों के लिये मलबे और अन्य खतरों का पता लगाने के लिये एक पूर्व चेतावनी प्रणाली है, इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • भारत के लिये Space4Women जैसी परियोजना: अंतरिक्ष क्षेत्र में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिये भारत को बाह्य अंतरिक्ष मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office for Outer Space Affairs- UNOOSA) की Space4Women जैसी परियोजना को अपनाने की ज़रूरत है।
    • भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में अंतरिक्ष जागरूकता कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त, विशेष रूप से छात्राओं के लिये ‘कॉलेज-इसरो इंटर्नशिप कॉरिडोर’ का निर्माण किया जा सकता है ताकि वे धरती से पार अंतरिक्ष में भी अपने पंख पसार सकने की संभावनाओं से परिचित हो सकें।
  • अंतरिक्ष में स्थायी उपस्थिति: भारत को अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग करने की पहल करनी चाहिये और दीर्घावधि में एक ग्रह रक्षा कार्यक्रम तथा संयुक्त अंतरिक्ष मिशन की योजना बनानी चाहिये।
    • इसके अलावा, भारत के लिये अपनी अंतरिक्ष उपस्थिति पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है और इस क्रम में इसरो ने मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित किया है जिसकी शुरुआत आगामी गगनयान मिशन के साथ हुई है।

अभ्यास प्रश्न: उभरते हुए अंतरिक्ष क्षेत्र ने भारत की क्षमताओं को कई गुना बढ़ा दिया है, लेकिन इसके साथ ही इसकी कमज़ोरियों में भी योगदान किया है। टिप्पणी कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

Q.1 अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संदर्भ में, हाल ही में खबरों में रहा "भुवन" क्या है?  (वर्ष 2010)

 (A) भारत में दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इसरो द्वारा लॉन्च किया गया एक छोटा उपग्रह
 (B) चंद्रयान-द्वितीय के लिए अगले चंद्रमा प्रभाव जाँच को दिया गया नाम
 (C) भारत की 3डी इमेजिंग क्षमताओं के साथ इसरो का एक जियोपोर्टल
 (D) भारत द्वारा विकसित अंतरिक्ष दूरदर्शी

 उत्तर: (C)


मुख्य परीक्षा

Q.1 भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और यह हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को कैसे लाभान्वित करेगा? (वर्ष 2019)

Q.2 अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा करें।  इस प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार मदद की?  (वर्ष 2016)

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