सैनिटेशन और स्टंटिंग में अंतर्संबंध | 05 Feb 2018
संदर्भ
- विकासशील देशों में स्टंटिंग से ग्रस्त बच्चों (उम्र की तुलना में छोटे कद और कम वज़न वाले बच्चे) की प्रायः बड़ी तादाद देखने को मिलती है और भारत की भी यही कहानी है।
- वैज्ञानिकों का यह अनुमान है कि खुले में शौच (Open defecation) और अशुद्ध पानी के कारण बच्चे स्टंटिंग के शिकार हो रहे हैं।
- गौरतलब है कि ‘लैंसेंट ग्लोबल हेल्थ रिसर्च’ (Lancet Global Health research) की हालिया रिपोर्ट में सैनिटेशन (स्वच्छता) और स्टंटिंग के अंतर्संबंध को दर्शाया गया है।
क्या है स्टंटिंग?
- स्टंटिंग कुपोषण का एक भीषणतम रूप है, जिसकी चपेट में आने वाले बच्चों का उनकी उम्र के हिसाब से न तो वज़न बढ़ता है और न ही उनकी लंबाई बढ़ती है।
- लगातार डायरिया जैसे रोंगों से संक्रमित रहने के कारण बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता है, जिसके कारण वे स्टंटिंग के शिकार हो जाते हैं।
- गौरतलब है कि भारत में स्टंटिंग से ग्रसित बच्चों की संख्या सर्वाधिक है।
स्टंटिंग के नकारात्मक प्रभावों को इंगित करती विभिन्न रिपोर्टें
- वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट, 2018
► शिक्षा पर केंद्रित है विश्व बैंक की ‘वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2018: लर्निंग टू रियलाइज एजुकेशन प्रॉमिस’ से संबंधित सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर गरीबी और कुपोषण के दूरगामी प्रभावों की चर्चा की गई है।
►रिपोर्ट में बताया गया है कि कम-आय वाले देशों में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग की दर समृद्ध देशों की तुलना में तीन प्रतिशत अधिक है। बचपन में स्टंटिंग के शिकार यानी अल्प-वृद्धि का प्रभाव वयस्कता में भी बना रहता है।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स, 2017:
► ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में ‘भूख’ अभी भी एक गंभीर समस्या है। विदित हो कि पिछले वर्ष ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 97वें स्थान पर रहने वाला भारत, वर्तमान रिपोर्ट के अनुसार तीन पायदान नीचे खिसक कर 100वें स्थान पर पहुँच गया है।
► भुखमरी के मापन के लिये यह इंडेक्स जारी करने वाला अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान चार आधारों (आबादी में कुपोषणग्रस्त लोगों की संख्या, बाल मृत्यु दर, अल्प विकसित बच्चों की संख्या और स्टंटिंग के शिकार बच्चों की तादाद) को चुनता है और उनके आनुपातिक मूल्यों का समेकन कर इंडेक्स जारी करता है।
- यूनिसेफ रिपोर्ट, 2016:
► यूनिसेफ द्वारा जारी ‘स्टाप स्टंटिंग इन साउथ एशिया’ रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों के अंदर स्टंटिंग की समस्या वैसे तो वैश्विक स्तर पर देखी जा रही है, लेकिन दक्षिण एशिया इसका प्रमुख केंद्र है, जहाँ स्टंटिग के शिकार 40 फीसदी बच्चे निवास करते हैं।
► भारत में विश्व के कुल स्टंटिंग से प्रभावित बच्चों के 33 फीसदी बच्चे हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में लगभग 64 मिलियन बच्चों में इस समस्या के पीछे मुख्य वज़ह खानपान में कमी अर्थात् पोषक तत्वों का अभाव है।
- 'लैंसेंट ग्लोबल हेल्थ रिसर्च’ रिपोर्ट:
► इस नई रिपोर्ट में स्टंटिंग के पीछे पोषण की कमी की अवधारणा के उलट, सैनिटेशन को मुख्य कारण बताया गया है।
►इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वाटर प्यूरिफिकेशन (water purification), सैनिटरी लैट्रीन (sanitary latrines) और हैंड वाशिंग (hand-washing) यानी वाश (WASH) इंटरवेंशन, स्टंटिंग का एक बड़ा कारण है।
क्यों महत्त्वपूर्ण है 'लैंसेंट ग्लोबल हेल्थ रिसर्च’ रिपोर्ट?
- इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पानी, शौचालय एवं स्वच्छता का स्टंटिंग में और पोषण की कमी में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- रोचक तथ्य यह है कि बड़ी संख्या में कुपोषण के मामले खाने की कमी या फिर भोजन में पोषाहार की मात्रा की कमी की वज़ह से नहीं होते बल्कि खराब साफ-सफाई की व्यवस्था और उचित स्वास्थ्य व्यवहारों की कमी की वज़ह से देखने को मिलते हैं।
- साबुन से सही तरीके से हाथ न धोने, साफ पीने के पानी के अभाव आदि के कारण से संक्रमण होता है और डायरिया जैसी बीमारियाँ होती हैं।
आगे की राह
- वाश (WASH) इंटरनवेंसन को व्यापक बनाए जाने की आवश्यकता:
► वाटर प्यूरिफिकेशन (water purification), सैनिटरी लैट्रीन (sanitary latrines) और हैंड वाशिंग (hand-washing) यानी वाश इंटरनवेंसन के संबंध में प्रयास किये जाने चाहियें।
- स्वास्थ्य व्यवहारों में सुधार की ज़रूरत:
► पोषण के विषय में लोगों को जागरूक बनाना होगा साथ-ही-साथ उचित नीतियों के निर्माण आदि के ज़रिये लोगों के अंदर स्वास्थ्य के संबंध में व्यावहारिक बदलाव ला सकते हैं।
- बुनियादी ढाँचा से संबंधित मुद्दों पर ध्यान देने की ज़रूरत:
► भारत ने हाल के वर्षों में स्वच्छता को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया है। स्वच्छ भारत मिशन इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
► हालाँकि, स्वच्छता की ज़िम्मेदारी लोगों के स्वास्थ्य व्यवहारों के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती और इस संबंध में आवश्यक बुनियादी ढाँचों पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
निष्कर्ष
- दरअसल, नवजात शिशुओं या बच्चों में स्टंटिंग का प्रभाव जीवन पर्यंत देखा जाता है साथ ही बच्चों की शारीरिक एवं तंत्रिका प्रणाली को ऐसा नुकसान पहुँचता है जो अपरिवर्तनीय होता है।
- बच्चों में स्टंटिंग का प्रभाव न केवल उनके शरीर बल्कि दिमाग पर भी देखने को मिलता है। ऐसे में न तो उनकी सामाजिक स्थिति मज़बूत हो पाती है और न ही आर्थिक स्थिति। ऐसे में भारत को स्टंटिंग के विरुद्ध एक अभियान छेड़ना होगा।