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भारतीय अर्थव्यवस्था

स्टार्टअप्स की ग्रोथ स्टोरी

  • 12 Apr 2022
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 11/04/2022 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “How India’s Early-Stage Startup Ecosystem Became an Investment Hotspot” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में स्टार्टअप्स की सफलता के उत्तरदायी कारकों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

पिछले डेढ़ दशक में भारत के उद्यमिता परिदृश्य में नए स्टार्टअप्स की स्थापना से लेकर वैश्विक निवेशकों की बढ़ती रुचि और अवसंरचना एवं नीतियों में प्रगति तक, महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया है।

भारतीय स्टार्टअप पारितंत्र ने वर्ष 2021 में असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन किया; भारतीय स्टार्टअप्स में निवेशकों का बढ़ता भरोसा बेहद आशाजनक है और ‘सीड-स्टेज फंडिंग’ (seed-stage funding) सहित स्टार्टअप की विकास यात्रा के विभिन्न चरणों में प्रगति हो रही है।

भारत में स्टार्टअप विकास परिदृश्य 

  • भारत स्टार्टअप्स के लिये एक ‘हॉटस्पॉट’ है। अकेले वर्ष 2021 में ही भारतीय स्टार्टअप्स ने 23 बिलियन डॉलर से अधिक की राशि जुटाई, 1,000 से अधिक सौदों में शामिल हुए और 33 स्टार्टअप कंपनियों का तो प्रतिष्ठित ‘यूनिकॉर्न क्लब’ में भी प्रवेश हुआ। वर्ष 2022 में अब तक 13 अन्य स्टार्टअप यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो चुके हैं।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप पारितंत्र के रूप में उभरा है। 
      • वर्तमान में भारत में स्टार्टअप्स की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। ‘बैन एंड कंपनी’ द्वारा प्रकाशित ‘इंडिया वेंचर कैपिटल रिपोर्ट 2021’ के अनुसार संचयी स्टार्ट-अप की संख्या वर्ष 2012 के बाद से 17% चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर (CAGR) से बढ़ी है और 1,12,000 की संख्या को पार कर गई है।

भारत के स्टार्टअप पारितंत्र के तेज़ विकास के कारण 

  • स्टार्टअप्स के महत्त्व को पहचानना: भारत ने अपने वृहत छात्र समुदाय के लिये नवाचार और इनक्यूबेशन केंद्र विकसित करने की आवश्यकता को समझा है ताकि अकादमिक संस्थानों के माध्यम से उनमें नवाचार और उद्यमशीलता की मानसिकता को बढ़ावा दिया जा सके।
    • इनक्यूबेटरों की बढ़ती संख्या और अपने स्वयं के उद्यम शुरू करने की दिशा में युवा कार्यकारियों का एक नियमित झुकाव भी भारत में उद्यमिता और आरंभिक चरण के स्टार्टअप पारितंत्र को बढ़ावा दे रहा है।
  • क्षमता की उपलब्धता: वर्ष 2021 के टेक स्टार्टअप पर एक अध्ययन से पता चला है कि ‘एडटेक’ (edtech) संस्थापकों की एक बड़ी संख्या IITs और प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेजों के युवा स्नातकों या वैश्विक कंसल्टिंग फर्मों के लिये काम कर चुके युवाओं की हैं।
    • उत्साह, विशेषज्ञता और उद्यमशील मानसिकता रखने वाले इन युवा प्रतिभाओं की उपलब्धता भारत के आरंभिक चरण के स्टार्टअप पारितंत्र को तेज़ी से विकास कर रहे बाज़ार अवसरों को भुनाने के मामले एक लाभप्रद स्थिति प्रदान कर रही है।
  • स्टार्टअप के लिये विशिष्ट पहल: भारत सरकार प्रगतिशील नीतियों के कार्यान्वयन और प्रासंगिक अवसंरचना के निर्माण के माध्यम से आरंभिक चरण के स्टार्टअप के विकास को सुविधाजनक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
    • वर्ष 2016 में लॉन्च किये गए ‘स्टार्टअप इंडिया’ पहल के तहत सरकार ने आरंभिक चरण के संभावित स्टार्टअप की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये जटिल कानूनी, वित्तीय और ज्ञान आवश्यकताओं को सरल बनाने का प्रयास किया है।
      • निजी भागीदारी के लिये ‘स्पेस-टेक’ (space-tech) जैसे क्षेत्रों को खोलना, कुछ पात्रता मानदंडों को पूरा करने वाले स्टार्टअप के लिये ‘टैक्स हॉलिडे’ (कर अवकाश) और राज्य द्वारा संचालित इनक्यूबेटरों के निर्माण जैसे सुधार सफल स्टार्टअप स्थापित करने और उनके विकास में मदद कर रहे हैं।
  • स्टार्टअप-कॉर्पोरेट सहयोग: पहले से स्थापित कॉरपोरेट्स, जिनके पास नवाचार क्षमता और दक्षता की कमी है, और आरंभिक चरण के स्टार्टअप, जिनके पास विकास के लिये धन और बाज़ार पहुँच के लिये नेटवर्क की कमी है, ऐसे सहयोग और गुणित धन सृजन के लिये एक अद्वितीय और आरोह्य मंच प्रदान करते हैं।
    • विभिन्न कॉर्पोरेट-स्टार्टअप साझेदारी कार्यक्रम नवाचार को आगे बढ़ा रहे हैं और भारत में आरंभिक स्टार्टअप के विकास में गति ला रहे हैं। उल्लेखनीय है कि माइक्रोसॉफ्ट इंडिया ने 4,000 से अधिक स्टार्टअप कंपनियों को गति प्रदान की है, जबकि टाटा मोटर्स आधा दर्जन स्टार्टअप के साथ संबद्ध है और 20 अन्य के साथ साझेदारी की तलाश कर रहा है।
  • जोखिम लेने की क्षमताएँ: इंजीनियरिंग और उत्पाद स्टार्ट-अप की ओर एक अत्यंत उत्साहजनक बदलाव आया है। भारतीय स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र की शक्ति युवा भारतीयों की जोखिम लेने की बढ़ती क्षमताओं और महत्वाकांक्षाओं में सबसे अधिक परिलक्षित होती है।
    • युवा पीढ़ी की जोखिम उठाने और बिना किसी भय के तेज़ी से आगे बढ़ने की यह क्षमता आज भारत की सबसे बड़ी संपत्ति बन गई है।
      • यह तथ्य कि भारतीय स्टार्टअप आज विश्व बाज़ारों के लिये उत्पाद और समाधान पेश करते वैश्विक निकायों में परिणत हो रहे हैं, इस दृष्टिकोण की पुष्टि करता है। 

विद्यमान समस्याएँ

  • घरेलू वित्तपोषण की कमी: वित्तपोषित स्टार्ट-अप कुल स्टार्ट-अप के लगभग 8% ही हैं और वैश्विक स्तर पर यूनिकॉर्न की संख्या में भारत की हिस्सेदारी महज 4% है, जबकि अमेरिका की हिस्सेदारी 65% और चीन की हिस्सेदारी 14% तक है।
    • अमेरिका उद्यम पूंजी और स्टार्ट-अप में सालाना 135 बिलियन डॉलर से अधिक और चीन 65 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश करते हैं, जिसमें 60% से अधिक स्थानीय पूंजी होती है। इसके विपरीत, भारत सालाना महज 10 बिलियन डॉलर का निवेश करता है जिसमें 90% विदेशी पूंजी होती है।
  • ‘फंडिंग बबल’ का भय: भारत में ‘फंडिंग बबल’ (Funding Bubble) या उच्च मूल्यांकन का भय है जो उद्यम पूंजी निवेशक कुछ मौकों पर भुगतान करते प्रतीत होते हैं।
    • यह भय उन निवेश रणनीतियों और जोखिम प्रबंधन ढाँचे की अपर्याप्त समझ से उत्पन्न होता है जो सफल उद्यम पूंजी फर्मों द्वारा उपयोग किये जाते हैं।
  • विदेशी अधिवास: वर्तमान में भारत के लगभग 30 यूनिकॉर्न देश के बाहर अधिवासित हैं, जो पुराने पड़ चुके विदेशी मुद्रा नियमों, प्रासंगिक संघीय नियमों के गैर-कार्यान्वयन, कर-आतंकवाद (tax terrorism) और स्थानीय पूंजी प्रोत्साहन की कमी के कारण बाहर चले गए।
    • डीपटेक और हेल्थकेयर स्टार्ट-अप को अभी भी देश में विकसित होने के लिये पर्याप्त आरंभिक पूंजी प्राप्त नहीं होती और वे विदेशी अधिवास के के लिये बाध्य हैं।
  • शिक्षा और अपस्किलिंग: वर्तमान क्षमताओं से आगे बढ़ने के लिये और जनसांख्यिकीय लाभांश प्राप्त करने के लिये भारत के कार्यबल की शिक्षा, रिस्किलिंग और अपस्किलिंग महत्त्वपूर्ण है।
    • यह समझने की आवश्यकता है कि घरेलू नीतिगत वातावरण के अलावा वैश्विक वातावरण एवं प्रौद्योगिकीय विकास में भी परिवर्तन आ रहा है और यह आवश्यक है कि भारत इस क्रांति/संक्रमण के लिये तैयार हो।

आगे की राह 

  • निवेशकों की भूमिका: स्टार्ट-अप पारि तंत्र की तेज़ प्रगति उल्लेखनीय मात्रा में वित्तपोषण की आवश्यकता रखती है और इसलिये उद्यम पूंजी निवेशकों और एंजेल निवेशकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
    • निवेशकों को यह भी समझने की ज़रूरत है कि स्टार्ट-अप की सफलता दर तुलनात्मक रूप से कम होती है और उन्हें इस आधार पर अपनी निवेश रणनीतियों का निर्माण करना चाहिये।
      • उद्यम पूंजी निवेशकों के पास पोर्टफोलियो स्तर पर पर्याप्त जोखिम प्रबंधन ढाँचा होना चाहिये क्योंकि यह सभी सफल उद्यम पूंजी संचालन का एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है।
  • कॉर्पोरेट क्षेत्र की भूमिका: उद्यमिता को बढ़ावा देने वाले नीति-स्तरीय निर्णयों के अलावा, उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और प्रभावशाली प्रौद्योगिकी समाधानों के निर्माण और संवहनीय एवं संसाधन-कुशल विकास हेतु तालमेल के सृजन का उत्तरदायित्व भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र पर भी है।
    • भारत अभूतपूर्व आर्थिक विकास के शिखर पर खड़ा है और उसके पास वैश्विक ‘गेम-चेंजर’ बनने का अवसर मौजूद है। इस अभियान में देश की युवा आबादी के साथ ही गति, समावेशन और संवहनीयता की प्रमुख भूमिका होगी।
  • भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी: स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल अवसंरचना को सशक्त करने और विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार को बढ़ावा देने पर देश के ध्यान के साथ भारत अपनी स्वतंत्रता की सौवीं वर्षगाँठ (India@100) पर वैश्विक अर्थव्यवस्था के ‘पावरहाउस’ में परिणत हो सकता है।
    • भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी में सुधार के लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के भविष्य के सामूहिक प्रयासों से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी भारत की अप्रयुक्त क्षमता को ‘अनलॉक’ करने में मदद मिलेगी जिससे वास्तविक रूप से चतुर्थ औद्योगिक क्रांति (Industry 4.0) और उससे आगे के भविष्य को आकार दिया जा सकेगा।
      • भारतीय स्टार्टअप पारितंत्र को ऐसे समाधान विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो प्रमुख क्षेत्रों के व्यवसायों को राष्ट्रीय महत्त्व के लक्ष्यों को पूरा करने का अवसर दे।
  • विश्व व्यवस्था में परिवर्तन के बीच अवसर: चीन में पूंजी अविश्वास पैदा करने वाली हालिया घटनाओं के साथ भारत में आकर्षक तकनीकी अवसरों और सृजित किये जा सकने वाले मूल्य की ओर विश्व आकर्षित हो रहा है। इसके लिये भारत को ‘डिजिटल इंडिया’ पहल के अलावा निर्णायक नीतिगत उपायों की ज़रूरत है।
    • भारत को स्टार्ट-अप क्षेत्र में वैश्विक और घरेलू निवेश दोनों के लिये मज़बूत विनियमनों की आवश्यकता है।
      • वैश्विक निवेशकों को यह भरोसा दिलाया जाना चाहिये कि वे भारत में स्वतंत्र रूप से निवेश कर सकते हैं और उन्हें अपने निवेश पर लाभ की प्राप्ति होगी।
        हमें इन्वेस्टर-केवाईसी (investor-KYC) का एक रिपॉजिटरी सृजित करने की आवश्यकता है  जहाँ ‘पता लगा सकने की क्षमता’ (traceability) और ‘निर्बाध शासन’ की सुनिश्चितता हो।

अभ्यास प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में स्टार्टअप्स के महत्त्व को समझते हुए इस दशक को स्टार्ट-अप के लिये सर्वश्रेष्ठ बनाने हेतु उद्यमियों, निवेशकों और सरकार के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये।

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