भारतीय अर्थव्यवस्था
बजट: चुनौती और संभावना
- 22 Jan 2020
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में केंद्रीय बजट, उसके उद्देश्यों तथा आगामी बजट संबंधी विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
केंद्र सरकार 1 फरवरी, 2020 को आगामी वित्त वर्ष (2020-21) के लिये केंद्रीय बजट प्रस्तुत करेगी। मंदी के दौर से गुज़र रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये यह बजट काफी महत्त्वपूर्ण होगा। निरंतर गिरती आर्थिक वृद्धि दर और मुद्रास्फीति संबंधी हालिया आँकड़ों ने बजट निर्माण की प्रक्रिया को काफी जटिल बना दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था को मौजूदा मंदी से उबारना और वर्ष 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य प्राप्त करना बजट निर्माताओं के समक्ष बड़ी चुनौती होगी।
क्या होता है बजट?
- भारतीय संविधान में शासन प्रणाली की त्रि-स्तरीय व्यवस्था अपनाई गई है। सर्वप्रथम केंद्रीय सरकार फिर राज्य सरकारें और अंत में स्थानीय सरकारें (जैसे- नगर निगम, नगरपालिका और ज़िला परिषद)।
- तद्नुसार उक्त सरकारें अपना-अपना बजट तैयार करती हैं जिसमें अपेक्षित राजस्व और प्रस्तावित व्यय का अनुमान होता है, इन्हें केंद्रीय बजट, राज्य बजट और नगरपालिका बजट कहते हैं।
- वर्ष 2017 से पूर्व सरकार द्वारा अपने अपेक्षित राजस्व और अनुमानित व्यय का विवरण यानी केंद्रीय बजट को फरवरी माह के अंतिम कार्य दिवस पर प्रस्तुत किया जाता था, किंतु वर्ष 2017 में इस प्रथा को बदलते हुए सरकार ने पहली बार 1 फरवरी को बजट प्रस्तुत किया था और तब से प्रत्येक वर्ष 1 फरवरी को ही बजट प्रस्तुत किया जाता है।
- भारतीय संविधान में ‘बजट’ शब्द का कहीं भी प्रयोग नहीं किया गया है। इस संदर्भ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 में ‘वार्षिक वित्तीय विवरण’ का प्रयोग किया गया है।
- इस प्रकार कहा जा सकता है कि बजट एक वार्षिक वित्तीय विवरण होता है, जो वित्तीय वर्ष के दौरान अपेक्षित राजस्व और अनुमानित व्यय को दर्शाता है।
- सरकार अपने उद्देश्यों के आलोक में व्यय की योजना बनाती है और फिर प्रस्तावित व्यय को पूरा करने के लिये संसाधन जुटाने की कोशिश करती है। आमतौर पर कर, शुल्क और जुर्माना, राज्यों द्वारा लिये गए ऋण का ब्याज और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के लाभांश केंद्र सरकार के लिये राजस्व प्राप्ति के प्रमुख स्रोत होते हैं।
- बजट मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित होता है:
- राजस्व बजट
राजस्व बजट में राजस्व प्राप्तियाँ और इस प्राप्ति से किये जाने वाले व्यय शामिल होते हैं। राजस्व प्राप्तियों में कर राजस्व (जैसे- आयकर, उत्पाद शुल्क आदि) और गैर-कर राजस्व (जैसे- ब्याज रसीदें, लाभ आदि) दोनों शामिल होते हैं। - पूंजीगत बजट
पूंजीगत बजट में पूंजी प्राप्तियाँ (जैसे- उधार, विनिवेश) और लंबी अवधि के पूंजीगत व्यय (जैसे- संपत्ति, निवेश का सृजन) शामिल होती हैं। पूंजी प्राप्तियाँ सरकार की वे प्राप्तियाँ होती हैं जो या तो देनदारियों (Liabilities) का सृजन करती हैं या वित्तीय परिसंपत्तियों को कम करती हैं, जैसे- बाज़ार उधार, ऋण की वसूली आदि। वहीं पूंजीगत व्यय सरकार का वह व्यय होता है जो या तो संपत्ति का निर्माण करता है या देयता को कम करता है।
- राजस्व बजट
केंद्रीय बजट के उद्देश्य
- आर्थिक वृद्धि
केंद्रीय बजट का प्राथमिक उद्देश्य अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को बढ़ावा देना होता है, ताकि आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया जा सके। ज्ञात हो कि आर्थिक वृद्धि देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में निरंतर वृद्धि को सूचित करती है। - गरीबी और बेरोज़गारी दर में कमी
रोज़गार के अवसर पैदा करना और गरीबों को अधिक-से-अधिक सामाजिक लाभ प्रदान करके सामूहिक गरीबी और बेरोज़गारी का उन्मूलन करना भी केंद्रीय बजट का एक अन्य उद्देश्य होता है। - आर्थिक असमानता को कम करना
सरकार केंद्रीय बजट के माध्यम से आर्थिक असमानता को कम करने का प्रयास करती है। इसके लिये कर लगाने और सब्सिडी देने जैसे उपाय अपनाए जा सकते हैं। सरकार निम्न आय वाले लोगों को सब्सिडी और सुविधाएँ प्रदान करती है, जो कि आर्थिक असमानता को कम करने में मदद करता है। - आर्थिक स्थिरता
सरकार सब्सिडी और व्यय के माध्यम से सामान्य मूल्य स्तर में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित कर आर्थिक स्थिरता लाने का प्रयास करती है। उदाहरण के लिये मुद्रास्फीति (कीमतों में निरंतर वृद्धि) की स्थिति में सरकार अपने खर्च को कम कर देती है और करों की दर में वृद्धि कर देती है, वहीं संकुचन या मंदी की स्थिति में करों में कटौती की जाती है और आम लोगों को खर्च हेतु प्रोत्साहित करने के लिये सब्सिडी प्रदान की जाती है।
आगामी बजट से क्या उम्मीदें हैं?
- आयकर स्लैब में परिवर्तन
1 फरवरी को प्रस्तुत होने वाले केंद्रीय बजट से आयकर छूट की सीमा में बढ़ोतरी की उम्मीद है। वर्तमान व्यवस्था के अनुसार, 2.5 लाख रुपए तक की आय वाले लोगों को आयकर में छूट दी गई है। वहीं 2.5 लाख रुपए से 5 लाख रुपए तक की आय पर 5 प्रतिशत, 5 लाख रुपए से 10 लाख रुपए तक की आय पर 20 प्रतिशत और 10 लाख रुपए या उससे अधिक आय पर 30 प्रतिशत कर देना होता है। संभव है कि आगामी बजट में 2.5 लाख रुपए की सीमा को 5 लाख रुपए कर दिया जाए। यदि ऐसा होता है तो करदाताओं को लाभ मिलेगा और वे अधिक-से-अधिक मांग कर कर सकेंगे, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। - 80C की सीमा में वृद्धि
बजट में आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80C के तहत मिलने वाली कटौती की सीमा बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है। पिछली बार धारा 80C के तहत कटौती की सीमा को वर्ष 2014 में 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपए किया गया था। विदित हो कि धारा 80C किसी भी व्यक्ति को कुछ निश्चित स्थानों जैसे- जीवन बीमा, लोक भविष्य निधि (PPF) और राष्ट्रीय बचत पत्र आदि में निवेश करने पर कर में एक निश्चित राशि (वर्तमान में 1.5 लाख रुपए) की कटौती की अनुमति देती है। विश्लेषकों के अनुसार इस सीमा को 2.5 लाख रुपए तक बढ़ाया जाना चाहिये। - उपभोक्ता वस्तुओं और FMCG उत्पादों पर कम GST
मौजूदा समय में देश का FMCG सेक्टर मांग की कमी में समस्या से जूझ रहा है। FMCG सेक्टर को उबारने के लिये सरकार उपभोक्ता वस्तुओं और FMCG उत्पादों पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दर को कम कर सकती है। यह कदम मांग बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में मदद करेगा। - ग्रामीणों की आय में वृद्धि
केंद्र सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MNREGS) के माध्यम से ग्रामीणों की आय में वृद्धि करने पर भी विचार कर सकती है। ज्ञात हो कि भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति के लिये काफी हद तक ग्रामीण मांग में कमी को ज़िम्मेदार माना जा रहा है। अतः यह स्पष्ट है कि ग्रामीण मांग में वृद्धि किये बिना भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति में सुधार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा बाज़ार में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री बढ़ाने के लिये लिथियम आयन (Lithium-ion) बैटरी पर कस्टम ड्यूटी घटाई जा सकती है। - LTCG दरों में कटौती
दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (LTCG) पर लगने वाले कर की दर में कटौती हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो इससे शेयर बाज़ार में दीर्घावधि के निवेशकों को प्रोत्साहन मिलेगा।
चुनौतियाँ
- पूंजी और उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन के मामले में भारत का औद्योगिक प्रदर्शन वित्त वर्ष 1991-92 के संकट के बाद शायद सबसे खराब स्थिति में है। हाल के महीनों में औद्योगिक क्षेत्र ने मांग में गिरावट के कारण मौजूदा व्यवसायों के भीतर नई क्षमताओं के निर्माण में निवेश करना लगभग बंद कर दिया है। निगम कर में कटौती से भले ही अल्पकाल में मांग में वृद्धि करने में मदद मिली हो, किंतु दीर्घकालिक स्थिति अभी भी पहले जैसी है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर मौजूदा समय में सबसे महत्त्वपूर्ण चिंता कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन को लेकर है। खराब प्रदर्शन वाले कृषि-क्षेत्र ने ग्रामीण उपभोक्ता मांग को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। बजटीय उपकरणों का प्रयोग करते हुए कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन को सुधारना सरकार के लिये बड़ी चुनौती होगी।
- सरकार ने वर्ष 2024 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारत को 8 प्रतिशत की दर से निरंतर विकास करना होगा, किंतु अर्थव्यवस्था संबंधी आधिकारिक आँकड़े बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति अच्छी नहीं है। हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने चालू वित्त वर्ष (2019-20) के लिये देश की अर्थव्यवस्था संबंधी आँकड़ों का पहला अग्रिम अनुमान (FAE) जारी किया था, जिनके मुताबिक चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) घटकर 5 प्रतिशत पर पहुँच सकता है।
- विभिन्न रिपोर्ट्स और आँकड़ों से स्पष्ट है कि शिक्षित युवाओं के मध्य ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोज़गारी का उच्च स्तर नीति निर्माताओं के लिये बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है। हाल ही में सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) ने बेरोज़गारी दर के संबंध में आँकड़े जारी किये हैं, जिसके मुताबिक सितंबर-दिसंबर 2019 के दौरान भारत की बेरोज़गारी दर बढ़कर 7.5 प्रतिशत हो गई थी।
- केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) ने हाल ही में दिसंबर 2019 के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित मुद्रास्फीति या महँगाई दर के आँकड़े जारी किये थे। आँकड़ों के मुताबिक, इस अवधि में CPI आधारित देश की मुद्रास्फीति दर 7.35 प्रतिशत रही, जो कि दिसंबर (2018) में 2.11 प्रतिशत और नवंबर (2019) में 5.54 प्रतिशत थी। बजट के माध्यम से आम नागरिकों की जेब पर कीमतों के बोझ को कम करना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
आगे की राह
- सर्वप्रथम सरकार को कर रियायतों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देकर आर्थिक मंदी से निकलने के विकल्प के मध्य समन्वय स्थापित करना होगा।
- पीएम-किसान (PM-KISAN) योजना के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार पर विचार किया जा सकता है, किंतु पहले योजना के तहत सभी किसानों को कवर करने के प्रयास किये जाने चाहिये।
- आँकड़ों के मुताबिक, लगभग 92 प्रतिशत भूमि रिकॉर्ड डिजिटल रूप में हैं, किंतु फिर भी पीएम-किसान योजना कुल पात्र लाभार्थियों में से केवल 50 प्रतिशत को कवर करती है।
- आर्थिक स्थिति को सुधारने के साथ-साथ बजट निर्माताओं को वित्तीय प्रणाली में विश्वास की कमी की समस्या से निपटने के प्रयास भी करने चाहिये।
प्रश्न: बजट को परिभाषा और उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए आगामी बजट के समक्ष मौजूद चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।