देश की शिक्षा व्यवस्था का वास्तविक रूप | 13 Jan 2017

पृष्ठभूमि

7 वर्ष पहले जब तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री श्री कपिल सिब्बल द्वारा कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षाओं को वैकल्पिक (Optional) बनाने का सुझाव प्रस्तुत किया गया था, उस समय उनकी बहुत आलोचना की गई थी| हालाँकि, उस आलोचना के बहुत से कारण भी थे- 

  • पहला, यदि कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षाओं को वैकल्पिक कर दिया जाता है तो भी बच्चों को उन सभी समस्याओं से निजात मिलना संभव नहीं है जिनका सामना वे कक्षा 12 की बोर्ड की परीक्षाओं के संबंध में करते हैं|
  • अधिकतर निजी स्कूलों में, बच्चों पर बोर्ड परीक्षा का दबाव प्री-बोर्ड परीक्षा के रूप में ही आरंभ हो जाता है| 
  • इसके अलावा, प्रतिस्पर्द्धी परीक्षाओं के चलते होने वाली घबराहट तथा समस्याओं को उक्त फैसले के अंतर्गत शामिल नहीं किया गया है| वस्तुतः इन सभी परेशानियों का पहला चरण केजी (KG) के समय से ही बच्चों को ट्यूशन एवं कोचिंग संस्थाओं के फेर में डालने के रूप में दृष्टिगत होने लगता है| 
  • हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह पाया गया कि वर्ष 2009 में हाई स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में से तकरीबन दो-तिहाई बच्चों ने अपनी कक्षा 12 तक की पढ़ाई को जारी नहीं रखा| इनमें से कुछ बच्चों ने या तो कक्षा 10 के बाद ही पढ़ाई बीच में छोड़ दी या फिर अपनी आगे की पढ़ाई को दूसरे माध्यमों (सीधा उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रवेश लेते हुए) से जारी रखने का फैसला लिया|  
  • वस्तुतः कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा का प्रमाणपत्र ही बच्चों के उज्ज्वल भविष्य हेतु नये मार्गों एवं विकल्पों को तलाशने का द्वार होता है| 
  • अध्ययन के अनुसार, इस समस्त प्रक्रिया के अंतर्गत प्रभावित होने वाले बच्चों में सर्वाधिक संख्या उत्पीड़ित समुदाय (oppressed classes) एवं उत्पीड़ित जातियों (oppressed castes) के बच्चों, विशेषकर बालिकाओं की है| इस सन्दर्भ में विचार करें तो सरकार के इस फैसले का सबसे अधिक प्रभाव अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के बच्चों पर परिलक्षित होता जान पड़ता है (सच्चर समिति के रिपोर्ट के अनुसार)|
  • आलोचना का तीसरा कारण यह था कि यह निर्णय संविधान में प्रदत्त शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता प्रतीत होता है| ध्यातव्य है संविधान के अंतर्गत देश के सभी बच्चों को उनकी जाति, वर्ग, धर्म. लिंग, भाषा, अवस्थिति एवं विकलांगता की परवाह किये बिना समान एवं प्रभावी ( गुणवत्तायुक्त शिक्षा) प्रदान करने की व्यवस्था की गई है| 
  • हालाँकि, सबसे दुखद बात यह है कि इतनी आलोचना एवं तर्कों के बाद भी सरकार का यह प्रस्ताव देश के मध्यम एवं उच्च वर्ग के द्वारा सम्मान के साथ स्वीकार कर लिया गया| वस्तुतः ये दोनों वर्ग अपने बच्चों को कोचिंग अथवा अन्य तरीकों से उच्च शिक्षा में प्रवेश कराने को लेकर आश्वस्त थे| 

सीबीएससी द्वारा लिये गए फैसले का आकलन

अब हम अध्ययन करते हैं वर्ष 2009 में सीबीएसई द्वारा लिये गए फैसले के हाल ही में किये गए उत्क्रमण (reversal) के प्रभावों का, जिसके पश्चात कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षाओं को अनिवार्य (mandatory) घोषित कर दिया गया है|  

  • ध्यातव्य है कि सीबीएसई के तहत संबद्ध माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों (secondary and higher secondary schools) की संख्या 0.07% से अधिक नहीं है, तथापि सीबीएसई द्वारा लिये गए किसी भी फैसले को नकारा नहीं जा सकता है क्योंकि आम जनता की अपेक्षा इसमें नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों तथा मीडिया की मानसिकता अधिक बोलबाला (sway) है|  
  • हालाँकि, वर्ष 2009 के निर्णय के उत्क्रमण का एक प्रभाव यह होगा कि इससे उत्पीड़ित समुदाय एवं जातियों के बच्चों को पुन: हाई स्कूल का प्रमाणपत्र प्राप्त करने एवं एक उज्ज्वल भविष्य के निर्माण हेतु नए अवसरों को तलाशने तथा अपने माता-पिता के पैतृक व्यवसाय के दायरे से बाहर आने का एक बेहतर अवसर प्राप्त हो सकेगा| 
  • यह और बात है कि वर्तमान में “रोज़गारविहीन आर्थिक संवृद्धि” के नवउदारवादी विकास प्रारूप को मद्देनज़र रखते हुए, युवाओं के लिये बेहतर भविष्य के अवसर तलाशना आसान काम नहीं होगा|

नई शिक्षा नीति में निहित खामियाँ

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Policy on Education), 2016 की वास्तविक स्थिति का जायज़ा लेने पर ज्ञात होता है कि देश में शिक्षा की स्थिति बहुत अधिक भयावह है|
  • ध्यातव्य है कि नई शिक्षा नीति का उद्देश्य शिक्षा की अपेक्षा कौशल को बढ़ावा प्रदान करना है| कौशल से उत्पन्न ज्ञान एवं मूल्यों को आपस में संबद्ध किये बिना शिक्षा प्राप्त करना असंभव है| यह और बात है कि शिक्षा को कौशल से पृथक करते हुए पूर्णतया परिवर्तित नहीं किया जा सकता, जैसा कि नई शिक्षा नीति में वर्णित किया गया है|
  • गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति, शिक्षा के अधिकार अधिनियम में वर्णित “नो डिटेंशन पॉलिसी” (No Detention Policy) का गलत तरीके से लाभ उठती हुई प्रतीत हो रही है|
  • इस नवउदारवादी अधिनियम की एकमात्र उन्नत अवधारणा यही है कि इसके अंतर्गत कक्षा 8 तक किसी भी बच्चे को व्यापक एवं सतत् मूल्यांकन (Comprehensive and Continuous Evaluation-CCE) के संयुक्त प्रावधान के आधार पर न तो स्कूल से निष्काषित किया जा सकता है और न ही उसे दंडित किया जा सकता है| 
  • हालाँकि, इस अधिनियम काबहुत विरोध किया गया है, क्योंकि इसके अंतर्गत सार्वजनिक–निजी भागीदारी (पीपीपी) के नाम पर सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित उपक्रमों की बजाय निजी वित्तपोषित उपक्रमों के प्रसार एवं व्यावसायीकरण पर अधिक ध्यान दिया गया है| इस सन्दर्भ में सबे दुखद बात यह है कि अपने इस उद्देश्य की पूर्ति में यह अधिनियम बहुत हद्द तक सफल होता प्रतीत होता है|  
  • सम्भवतः इसका एक अन्य कारण यह भी है कि इस नई नीति के अंतर्गत कक्षा 8 तक के बच्चों को फेल न करने के निर्णय के परिणामस्वरूप सीसीई का संयुक्त प्रावधान पूर्णतया विफल हो गया है, जिसका सीधा असर नई शिक्षा नीति के अनुपालन पर परिलक्षित होता है|
  • कक्षा 10 के स्तर पर, बोर्ड परीक्षा को दो भागों में विभक्त कर दिया गया है| पहले भाग में, उच्च वर्ग एवं जातियों (Upper classes and castes) के बच्चों को उच्च शिक्षा हेतु बढ़ावा दिया जाएगा, जबकि दूसरे भाग में, बहुजन समुदाय (Bahujans) के बच्चों को शिक्षा के क्रम से बाहर कर उन्हें कौशल केन्द्रों से संबद्ध करने का कार्य किया जाएगा|
  • अतः स्पष्ट है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले की तुलना में निम्न वर्ग वालों (जिन्हें बहुत कम आयु में ही कौशल केन्द्रों से संबद्ध कर दिया जाता है) की आय का अनुपात सदैव विषम ही रहेगा| वस्तुतः यह हमारी शिक्षा नीति का वास्तविक एवं परिष्कृत रूप है, जिसे द्विधारी तलवार के रूप में वर्णित किया जाता है| ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि उक्त शिक्षा व्यवस्था से संघर्ष करने एवं जीतने का एकमात्र तरीका इस समस्त व्यवस्था में व्याप्त असमानता एवं भेदभाव को दूर करना ही है|