अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कोरोना वायरस: अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का निर्धारक
- 20 Mar 2020
- 14 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के भविष्य के निर्धारण में कोरोना वायरस की भूमिका पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
यदि हम आज कोरोना वायरस का नाम सुनते हैं तो, जो वस्तुस्थिति सर्वप्रथम उभरकर सामने आती है वह ‘क्वारंटाइन (अपनी गतिविधियों को स्वयं तक सीमित करना) या आइसोलेशन (एकाकीकरण) ’ है। यह आइसोलेशन न केवल व्यक्ति या समाज के स्तर पर हुआ है बल्कि विभिन्न देशों की सीमाओं की स्तर पर भी हो गया है। इस वैश्विक आपदा की स्थिति में जहाँ एक ओर युद्ध स्तर पर बचाव के प्रयास किये जा रहे हैं तो वहीँ दूसरी ओर ‘फर्स्ट वर्ल्ड कंट्रीज़ (विकसित देश)’ के बीच इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी प्रारंभ हो गया है। हाल ही में चीन सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आधिकारिक रूप से यह दावा कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन में नहीं बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई है।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी पलटवार करते हुए कोरोना वायरस को ‘वुहान वायरस या चाइनीज़ फ्लू’ के रूप में संबोधित करना प्रारंभ कर दिया है। ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है कि क्या इस वायरस का प्रभाव भू-रणनीतिक व्यवस्था को परिवर्तित कर देगा? क्या एक बार फिर विश्व शीत युद्ध के दौर में प्रवेश कर जाएगा? क्या 21वीं सदी के आरंभ में विकसित बहुध्रुवीय वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था एकध्रुवीय राजनीतिक व्यवस्था की ओर मुड़ जाएगी?
इन परिस्थितियों को अच्छी तरह से समझने के लिये इस आलेख में कोरोना वायरस तथा उसके स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों के इतर तेज़ी से बदलती वैश्विक भू-राजनीतिक व्यवस्था पर चर्चा की जाएगी।
परिवर्तनशील वैश्विक घटनाक्रम
- वर्तमान में चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर को कोरोना वायरस के केंद्र के रूप में देखा जा रहा था, परंतु चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका में कोरोना वायरस की उत्पत्ति संबंधी दावे ने विश्व राजनीतिक व्यवस्था में नई बहस को जन्म दे दिया है।
- अमेरिका ने भी आधिकारिक रूप से अपनी प्रेस विज्ञप्तियों में इसे वुहान वायरस के नाम से संबोधित किया है।
- शोधकर्त्ताओं का ऐसा मानना है कि चीन का ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt And Road Initiative-BRI) प्रोजेक्ट’ जिसका विस्तार चीन से यूरोप और एशिया महाद्वीप के विभिन्न देशों तक है, इस वायरस के प्रसार का प्रमुख वाहक है।
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, अपेक्षाकृत रूप से चीन के करीबी देश ईरान ने भी इस वैश्विक आपदा की स्थिति में चीन से सहायता न मांगकर अमेरिकी प्रभुत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहायता की अपील कर वैश्विक राजनीति के बदलने के संकेत दिये हैं।
- चीन के बाद कोरोना वायरस के सबसे बड़े केंद्र इटली ने भी BRI प्रोजेक्ट समेत चीन के साथ अपनी सभी आर्थिक गतिविधियों को रोक दिया है।
- यूरोप के कई देशों ने चीन के साथ आर्थिक गतिविधियों में प्रतिबंध लगाकर विनिर्माण क्षेत्र में चीन के एकाधिकार को चुनौती दी है।
- कोरोना वायरस की उत्पत्ति में अमेरिका की भूमिका के संदर्भ में चीन के दावे को रूस का साथ मिला है और दोनों देशों ने सामूहिक रूप से इस आपदा से निपटने के लिये अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- रूस के इस कदम से वैश्विक राजनीति में अमेरिका-चीन टकराव बढ़ने के आसार व्यक्त किये जा रहे हैं।
अमेरिका-चीन टकराव
- अमेरिका का आरोप है कि वायरस के बारे में जानकारी होने के बावजूद चीन ने इस बात को छिपाकर रखा। अमेरिका के इस आरोप का समर्थन कमोबेश दुनिया के सभी हिस्सों से विशेषज्ञों द्वारा किया गया है चीन की लापरवाही का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वायरस के संक्रमण की जानकारी होने के बाद भी चीन ने वुहान में आयोजित होने वाले ‘पॉट लक डिनर’ समारोह को निरस्त नहीं किया। इस समारोह में शामिल लगभग 40,000 लोगों में दो-तिहाई लोग इस वायरस से संक्रमित पाए गए।
- हालाँकि चीन का दावा है कि पेशेंट ज़ीरो (ऐसा व्यक्ति जो किसी भी संक्रामक बीमारी का पहला वाहक है) अमेरिकी सेना का एक सैनिक था, जो चीन में आयोजित सैन्य खेलों में हिस्सा लेने वुहान आए अमेरिकी दल का हिस्सा था।
- चीन के प्रवक्ता के अनुसार, नवंबर 2019 में अमेरिकी सेना के कुछ सैनिकों को निमोनिया जैसी किसी बीमारी के कारण हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया, जहाँ कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गई। चीन का आरोप है कि अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग ने इस घटना की सही तरीके से जाँच नहीं की और इस बीमारी का विस्तार अन्य अमेरिकी सैनिकों तक हो गया।
- ध्यातव्य है कि चीन ने देश के भीतर कुछ प्रमुख अमेरिकी अखबारों के पत्रकारों पर रिपोर्टिंग करने पर रोक लगा दी है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उक्त अखबारों पर कोरोना से संबंधित ख़बरों में चीन के प्रति आरोपात्मक बातें लिखने का संदेह व्यक्त किया गया था। इसके जवाब में अमेरिका में कार्यरत चीनी समाचार एजेंसियों को अमेरिकी प्रशासन द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया।
- जबकि चीन की एक महिला पत्रकार ने बताया है कि अमेरिकी प्रशासन जानबूझकर कोरोना वायरस को ‘कुंग फ्लू’ (कुंग फू चाइनीज़ मार्शल आर्ट की एक विधा है) के रूप में प्रचारित कर नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा दे रहा है।
- अमेरिका ने इस घटनाक्रम के एक महत्त्वपूर्ण दुष्परिणाम के रूप में चीन का वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर एकाधिकार होने की समस्या पर भी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। यह देखा गया था कि दुनिया में वायरस के प्रसार के आरंभिक चरणों में रोकथाम की संभावित सामग्री (यथा-सर्जिकल मास्क) की आपूर्ति चीन द्वारा बाधित की गई थी।
वैश्विक राजनीति पर प्रभाव
- कोरोना संकट के साए में अमेरिका और चीन जैसी दो वैश्विक महाशक्तियों के बीच टकराव से वैश्विक राजनीति पर गंभीर प्रभाव होने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
- इसका पहला प्रत्यक्ष प्रभाव अमेरिका और चीन के बीच हाल ही में संपन्न व्यापार समझौते पर होगा। साथ ही, चीन के इस घटनाक्रम में लापरवाही भरे रुख के कारण दुनिया भर में चीन को संदेह की नज़र से देखा जाने लगेगा।
- कोरोना वायरस को लेकर दोनों देशों की बीच उत्पन्न टकराव नवंबर 2020 में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं।
- इस आपदा ने एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे ईरान और अमेरिका को नज़दीक ला दिया है, जिससे तृतीय विश्वयुद्ध के रूप में मंडराने वाला संभावित खतरा टलता नज़र आ रहा है।
- इस वैश्विक आपदा से निपटने में नाकाम रहे इटली में कुछ समय के भीतर ही राजनीतिक प्रतिनिधित्व का संकट भी देखने को मिल सकता है। ऐसा अनुमान है कि इटली को अपनी खोई साख हासिल करने में कई दशक लग सकते हैं क्योंकि इटली एक ऐतिहासिक और पर्यटन गंतव्य रहा है।
- यूरोपियन यूनियन से अलग होने के बाद ब्रिटेन में गठित नई सरकार पर यह संकट आर्थिक व राजनीतिक रूप से अतिशय दबाव उत्पन्न करेगा।
- कोरोना वायरस के केंद्र के रूप में चीन के विख्यात होने से दुनियाभर में चीन के लोगों के साथ नस्लीय भेदभाव में इज़ाफा होने की आशंका है।
- चीन के विनिर्माण क्षेत्र को अपना प्रभुत्व पुनर्स्थापित करने में कई दशक तक लंबा संघर्ष करना पड़ सकता है, जिससे उसकी नव-साम्राज्यवादी नीतियों पर विराम लग सकता है।
- वैश्विक विनिर्माण के नए केंद्र स्थापित करने में अत्यधिक समय और धन की आवश्यकता होगी क्योंकि विश्व के अन्य देशों में चीन के जैसी अवसंरचना और सस्ते श्रम का अभाव है।
- जर्मनी की चांसलर समेत यूरोप महाद्वीप के अन्य प्रमुख नेताओं का मानना है कि कोरोना वायरस के प्रभाव से पूरे महाद्वीप में प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उत्पन्न हुए आर्थिक संकट जैसी परिस्थितियाँ निर्मित हो सकती हैं।
भारत की भूमिका
- कोरोना वायरस से भारत भी अछूता नहीं रहा है। भारत को अपना पूरा ध्यान वायरस के संक्रमण को रोकने में लगाना चाहिये।
- भारत को आपदा की इस स्थिति में बदलती वैश्विक राजनीति के किसी भी समूह में शामिल नहीं होना चाहिये क्योंकि इससे भारत को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं होता है।
- भारत को अपने पड़ोसी देशों तथा क्षेत्रीय संगठनों जैसे- सार्क और बिम्सटेक के साथ मिलकर एक विशेष कार्यदल का गठन करना चाहिये ताकि इस आपदा से निपटने की तैयारियों में समन्वय व संचार की कमी न रह जाए।
आगे की राह
- निसंदेह इस संकट से सही तरीके से निपटने वाली महाशक्ति बदलती वैश्विक राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाएगी।
- वर्तमान में पूरा विश्व एक गंभीर संकट के दौर से गुज़र रहा है। यह समय एक-दूसरे पर दोषारोपण करने का नहीं बल्कि एकजुटता प्रदर्शित करते हुए इस अदृश्य शत्रु से लड़ने का है।
- वैश्विक महाशक्तियों को अपने संसाधनों का इष्टतम प्रयोग करते हुए समस्त प्रयास इस महामारी की हर संभव रोकथाम की दिशा में करने चाहिये, इसके साथ ही भारत से सीख लेते हुए अपने पड़ोसी देशों व उन क्षेत्रीय संगठनों, जिनका वे हिस्सा हैं, की ओर सहायता का हाथ बढ़ाना चाहिये।
- कोरोना वायरस के रूप में दुनिया के समक्ष एक अभूतपूर्व संकट उत्पन्न हुआ है और इसका प्रसार जितनी तेज़ी से हो रहा है, वह इसे अधिक चिंताजनक बनाता है। इसलिये इससे निपटने के लिये विश्व का प्रत्येक प्रयास इस महामारी के पूर्णतः उन्मूलन का होना चाहिये।
- विश्व के सभी देशों को विनिर्माण क्षेत्र व आपूर्ति श्रृंखला के विभिन्न केंद्रों के निर्माण की दिशा में भी कार्य करना होगा।
प्रश्न- वैश्विक राजनीति के निर्धारण में कोरोना वायरस की भूमिका पर टिप्पणी कीजिये।