शासन व्यवस्था
निजता का मुद्दा और भारत के निगरानी कानून
- 29 Dec 2018
- 12 min read
संदर्भ
- कुछ समय पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया, जिसमें 10 सरकारी खुफिया एजेंसियों को किसी के भी कंप्यूटर डेटा पर निगरानी रखने यानी उसे खंगालने का अधिकार दिया गया है।
- केंद्र सरकार का कहना है कि यह कोई नया आदेश नहीं है, बल्कि IT (Procedure and Safeguards for Interception, Monitoring and Decryption of Information) Rules 2009 में इसका पहले से ही प्रावधान है।
- IT अधिनियम की धारा 69 की उपधारा (1) के तहत अगर एजेंसियों को ऐसा लागता है कि कोई व्यक्ति या संस्था देशविरोधी गतिविधियों में शामिल हैं तो वे उनके कंप्यूटरों में मौज़ूद डेटा को खंगाल सकती हैं और उन पर कार्रवाई कर सकती हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भारत में प्रचलित निगरानी कानून निजता के लिये खतरा हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था निजता पैमाना
पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में निजता को व्यक्ति का मौलिक अधिकार (Fundamental Right) माना था। तब डेटा की सुरक्षा और प्राइवेसी के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिये नौ जजों की संविधान पीठ ने सामूहिक सहमति से फैसला दिया था। न्यायालय ने कहा था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता यानी निजता का अधिकार है। जस्टिस के.एस. पुत्तुस्वामी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 के अपने निर्णय में निजता को मौलिक अधिकार तो माना, लेकिन यह भी कहा कि यह अधिकार निरंकुश और असीमित नहीं है।
- अब आतंकी गतिविधियों को रोकने के नाम पर कंप्यूटर और मोबाइल की निगरानी के सरकारी आदेश पर बवाल मचा है।
- अधिसूचित एजेंसियों द्वारा इंटरनेट और कंप्यूटर निगरानी के लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेशों को यह कहकर सही ठहराया जा रहा है कि वर्तमान सरकार ने पूर्ववर्ती सरकार द्वारा 2009 में बनाए गए नियमों को स्पष्टता दी है।
यहाँ फिर एक सवाल उठता है कि पुराने नियमों के तहत ऐसी निगरानी यदि हो रही थी, तो फिर इस नए आदेश की ज़रूरत क्या थी? इस मुद्दे पर सरकार का कहना है कि...
- हालिया अधिसूचना यह सुनिश्चित करेगी कि किसी कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी सूचना को खंगाले जाने, निगरानी करने अथवा जाँच करने का कार्य यथोचित कानूनी प्रक्रिया के साथ किया गया है।
- इन शक्तियों का प्रयोग करने के लिये अधिकृत एजेंसियों के बारे में और किसी एजेंसी, व्यक्ति अथवा मध्यवर्ती द्वारा इन शक्तियों का किसी रूप में अनधिकृत इस्तेमाल की रोकथाम के बारे में अधिसूचना जारी करना।
- हालिया अधिसूचना यह सुनिश्चित करेगी कि कम्प्यूटर संसाधन को कानूनी तरीके से खंगाला गया है अथवा निगरानी की गई है और इस दौरान कानून के प्रावधानों का पालन किया गया है।
Checks & Balances की ज़रूरत
- एक तरफ इस आदेश की आलोचना करने वालों का कहना कि इससे भारत ‘Police State’ बनने की ओर अग्रसर है तो वहीं इसके समर्थकों का कहना है कि विषम परिस्थितियों में राष्ट्रीय हित के मद्देनज़र निजता के अधिकार का उल्लंघन करने में गलत कुछ भी नहीं है।
- एजेंसियों का उत्तरदायित्त्व और ज़िम्मेदारी बढ़ाते हुए केंद्र सरकार को अपनी निगरानी शक्तियों का इस्तेमाल करने की ज़रूरत है।
- राज्यों को निगरानी की अनुमति देने से पहले मामले की तह तक जाना ज़रूरी है और पुख्ता सबूतों के आधार पर ही अनुमति दी जानी चाहिये।
- अमेरिका में भी कुछ ऐसा ही है, जहाँ बिना किसी आधार या सबूत के दी गई अनुमति कोर्ट द्वारा खारिज कर दी जाती है।
- एक अन्य अहम पहलू यह है कि किसी व्यक्ति को यह पता तक नहीं चल पाता है कि उसके कंप्यूटर या इलेक्ट्रॉनिक संचार की निगरानी की जा रही है।
- इसके अलावा, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश) नियमों, 2011 की परख होनी अभी बाकी है। इन नियमों का परीक्षण विभिन मानकों पर किया जाना है, तभी इनकी उपादेयता को लेकर कुछ कहा जा सकेगा।
ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, 1923
भारत में ब्रिटिश आधिपत्य के दौरान अंग्रेज़ों ने अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिये कई तरह के कानून भी बनाए। इसी कड़ी में उन्होंने 1923 में शासकीय गोपनीयता कानून (Official Secret Act) लागू किया। यह कानून मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित है- पहला जासूसी और दूसरा गुप्तचरी से संबंधित है। गौरतलब यह है कि भारत सरकार द्वारा गठित विभिन्न आयोगों व समितियों द्वारा समय-समय पर इस कानून को समाप्त करने की सिफारिशें की जा चुकी हैं, लेकिन इन पर आज तक अमल नहीं हो पाया।
सूचना प्रौद्योगिकी कानून (IT Act), 2000
सूचना प्रौद्योगिकी कानून (IT Act), 2000 को इलेक्ट्रोनिक लेन-देन को प्रोत्साहित करने, ई-कॉमर्स और ई-ट्रांजेक्शन के लिये कानूनी मान्यता प्रदान करने, ई-शासन को बढ़ावा देने, कम्प्यूटर आधारित अपराधों को रोकने तथा सुरक्षा संबंधी कार्य प्रणाली और प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करने के लिये अमल में लाया गया था। यह कानून 17 अक्तूबर, 2000 को लागू किया गया।
IT कानून में मध्यवर्ती संस्थाओं (Intermediaries) के लिये दिशा-निर्देश
IT कानून के अनुच्छेद 79 में कुछ मामलों में मध्यवर्ती संस्थाओं को देनदारी से छूट के बारे में विस्तार से बताया गया है। अनुच्छेद 79(2)(c) में जिक्र किया गया है कि मध्यवर्ती संस्थाओं को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए उचित तत्परता बरतनी चाहिये और साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित अन्य दिशा निर्देशों का भी पालन करना चाहिये। तदनुसार, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश) नियमों, 2011 को अप्रैल-2011 में अधिसूचित किया गया।
निजता की आज़ादी के लिये सरकार प्रतिबद्ध
भारत सरकार का कहना है कि संविधान में प्रदत्त अपने नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति तथा निजता की आजादी देने के लिये वह प्रतिबद्ध है। सरकार सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म में आने वाली सामग्री को नियंत्रित नहीं करती। इन सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्मों की ज़रूरत हालाँकि सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 के अनुच्छेद 79 में प्रदत्त ऐसी कार्रवाई, जिसमें प्रस्तावित बिक्री, खरीद, ठेके आदि के बारे में उपयुक्त और विश्वसनीय जानकारी एकत्र करने तथा पेशेवर सलाह देने के लिये आवश्यक है। इसमें अधिसूचित नियम सुनिश्चित करते हैं कि उनके मंच का इस्तेमाल आतंकवाद, उग्रवाद, हिंसा और अपराध के लिये नहीं किया जाता है। गौरतलब है कि देश में 100 करोड़ से ज़्यादा स्मार्टफोन और 40 करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट यूज़र्स हैं।
राज्यों का विषय है कानून-व्यवस्था
- केवल उन्हीं कंप्यूटरों पर निगरानी रखी जाती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा, अखंडता के लिये चुनौती होते हैं और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होते हैं। आम लोगों के कंप्यूटर या डेटा पर किसी प्रकार की कोई निगरानी नहीं की जाती।
- संविधान के अनुसार, पुलिस तथा कानून व्यवस्था राज्य के विषय हैं। भारतीय दंड संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2000 के प्रावधानों के तहत राज्य सरकारें अपनी कानूनी मशीनरी के ज़रिये साइबर अपराधों की रोकथाम, पहचान और जाँच के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- सुरक्षा एजेंसियाँ इंटरनेट और सोशल मीडिया पर लगातार निगरानी रखती है और इसमें डाली जाने वाली किसी भी गैर-कानूनी विषय-वस्तु पर रोक लगाने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 के अनुच्छेद 69 के तहत आवश्यक कार्रवाई करती हैं।
- इसके अलावा सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2009 के तहत गठित समिति सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 के तहत जारी निर्देशों के पालन की समय-समय निगरानी करती है।
- कानून के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये सरकार सहयोगी फ्रेमवर्क तैयार करने के लिये सभी पक्षों के साथ नियमित बैठक करती है।
करना होगा आम लोगों की शंकाओं का समाधान
सरकार के हालिया आदेश से आम लोगों के मन में संदेह उपजे हैं, जिसमें देश की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी के भी कंप्यूटर में मौजूद डेटा पर नज़र रखने, उसे सिंक्रोनाइज़ज करने और उसकी जाँच करने के अधिकार दिये हैं। सोशल मीडिया पर सरकार के इस आदेश का विरोध हो रहा है और लोगों का कहना है यह उनकी निजता के अधिकार में हस्तक्षेप है।