भारत-सऊदी अरब संबंध | 02 Nov 2019
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत-सऊदी अरब संबंध तथा इनके साझा हितों की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारतीय प्रधानमंत्री कुछ समय पूर्व सऊदी अरब की यात्रा पर थे। प्रधानमंत्री की यह यात्रा भारत-सऊदी संबंधों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण समझी जा रही है। संबंधों में आई गर्माहट के मध्य ही सऊदी शासन की स्वामित्त्व वाली सऊदी अरामको कंपनी भारत की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी के 25 प्रतिशत शेयर खरीदने जा रही है। यदि यह डील संपन्न हो जाती है तो सऊदी अरब का भारत में यह सबसे बड़ा निवेश होगा। यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले दो दशकों में भारत-सऊदी संबंध उतार-चढ़ाव के दौर से गुज़रे है, इसका प्रमुख कारण पाकिस्तान तथा सऊदी अरब का इस्लाम के प्रति अत्यधिक झुकाव माना जा सकता है। पश्चिम एशिया में सऊदी अरब महत्त्वपूर्ण देश है, जो तेल का प्रमुख उत्पादक भी है। इस दृष्टि से भारत के सऊदी अरब के साथ बेहतर होते संबंध महत्त्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सऊदी अरब के साथ भारत के राजनयिक संबंधों की शुरुआत भारतीय स्वतंत्रता के तुरंत बाद हुई। इन संबंधों को मज़बूत करने के लिये तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू एवं इंदिरा गांधी ने सऊदी अरब की यात्रा की लेकिन सऊदी शासन का झुकाव पाकिस्तान की ओर होने तथा कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के पक्ष का समर्थन करने आदि के कारण भारत-सऊदी संबंध सदैव एक क्रेता-विक्रेता से आगे नहीं बढ़ सके। तत्कालीन बाजपेयी सरकार तथा सऊदी अरब के किंग अब्दुल्ला ने दोनों देशों के मध्य उपजे मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया तथा किंग अब्दुल्ला की भारत यात्रा को द्विपक्षीय संबंधों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना गया। उपर्युक्त के बावजूद वर्तमान भारत-सऊदी संबंधों को हाल के वर्षों में सऊदी शासन की नीतियों में आए बदलाव के रूप में रेखांकित करना अधिक उचित होगा। मोहम्मद बिन सलमान के सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस बनने के बाद सऊदी अरब की नीतियाँ प्रगमेटिक हुई हैं। अब इन नीतियों में आर्थिक हित महत्त्वपूर्ण हुए हैं, जिसने परंपरागत मतभेदों को गौण कर दिया है।
पश्चिम एशिया की मौजूदा स्थिति
अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले तथा अरब स्प्रिंग ने पश्चिम एशिया को झकझोर कर रख दिया। अमेरिका ने आतंकवाद को समाप्त करने के मुद्दे को लेकर इस क्षेत्र में प्रवेश किया, इससे प्रमुख रूप से इराक तथा अफ़ग़ानिस्तान प्रभावित हुए, साथ ही अन्य देशों की सरकारों को भी समस्याओं का सामना करना पड़ा। अरब स्प्रिंग ने पश्चिम एशिया में स्थापित तानाशाही सरकारों को एक-एक कर उखाड़ फेंकना आरंभ किया। इसके शिकार कई तानाशाही सरकारें ट्यूनीशिया, लीबिया, मिस्र आदि हुए, साथ ही सीरिया संघर्ष का भी जन्म हुआ, जो वर्तमान में भी जारी है। इसी पृष्ठभूमि में यमन के तानाशाही शासन पर हाउथी विद्रोहियों ने हमला कर दिया। विदित है कि सऊदी अरब में भी एक तानाशाह सरकार है। सऊदी अरब सदैव अपने शासन की स्थिरता को लेकर अत्यधिक चिंतित रहा है, जिससे वह स्वयं को अरब स्प्रिंग से बचाए रखने में सफल रहा। यमन की 1600 किमी की सीमा रेखा सऊदी अरब से मिलती है, जो सऊदी शासन के लिये चिंता का विषय है। हाल ही में सऊदी अरामको पर हुए ड्रोन हमले की ज़िम्मेदारी ईरान समर्थित हाउथी विद्रोहियों ने ही ली है। सऊदी अरब का ईरान के साथ ऐतिहासिक तनाव भी किसी से छुपा नहीं है। ईरान पर ट्रंप प्रशासन के प्रतिबंधों ने भी सऊदी अरब के तेल व्यापार की संभावनाओं में वृद्धि की है।
भारत तथा पश्चिम एशिया
भारत सदैव ऊर्जा के लिये प्रमुख रूप से आयात पर निर्भर रहा है। भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का 70 प्रतिशत आयात करता है। साथ ही भविष्य में आर्थिक विकास के साथ-साथ भारत की ऊर्जा आवश्यकता भी लगातार बढ़ने वाली है। यह स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक कि नवीकरणीय ऊर्जा भारत की ऊर्जा आवश्यकता में प्रमुख भागीदारी नहीं निभाती। ध्यातव्य है कि पश्चिम एशिया पेट्रोलियम उत्पादों की दृष्टि से धनी हैं। साथ ही इसकी भौगोलिक निकटता भारत को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूर्ण करने का एक व्यावहारिक विकल्प प्रदान करता है। भारत पिछले कुछ वर्षों से ईरान तथा इराक से सर्वाधिक तेल खरीदता रहा है लेकिन अस्थिर इराक एवं कूटनीतिक एवं आर्थिक प्रतिबंधों को झेल रहा ईरान भारत के लिये समस्या पैदा कर रहे हैं। ऐसे में दक्षिण-पश्चिम एशिया में स्थित सऊदी अरब भारत के लिये एक बेहतर विकल्प उपलब्ध करता है। यह न सिर्फ तेल की दृष्टि से बल्कि भारतीय कामगारों की दृष्टि से भी पश्चिम एशिया में महत्त्व रखता है। संयुक्त अरब अमीरात के साथ-साथ सऊदी अरब में भी भारतीय डायस्पोरा बड़ी संख्या में विद्यमान है। सिर्फ सऊदी अरब में ही यह संख्या 2.6 मिलियन है। ध्यातव्य है कि भारत विश्व में सर्वाधिक रेमिटेंस प्राप्त करता है, इसमें प्रमुख भूमिका पश्चिम एशिया में रह रहे लोगों की है। इस दृष्टि से न सिर्फ भारत सऊदी अरब बल्कि संपूर्ण पश्चिम एशिया के देशों के साथ अपने संबंध बेहतर करना चाहता है बल्कि इस क्षेत्र की शांति की भी कामना करता है।
सऊदी अरब की भारत पर नज़र
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् तेल का अत्यधिक महत्त्व बढने तथा दक्षिण पश्चिम एशिया में तेल के अकूत भंडारों का पता चलने के बाद से ही अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने का लगातार प्रयास किया। सऊदी अरब पर अमेरिका का सर्वाधिक प्रभाव रहा है, इससे सऊदी अरब को बाहरी खतरों तथा आंतरिक अस्थिरता से बचाने में अमेरिका ने सहायता की तथा अमेरिका की ऊर्जा ज़रूरतों को सऊदी अरब पूर्ण करता रहा। कुछ समय पूर्व ही यह बात सामने आई है कि अमेरिका स्वयं इतनी मात्रा में तेल का उत्पादन कर रहा है कि वह अपनी ज़रूरतें पूरी कर सकता है, साथ ही थोड़ी बहुत जो कमी रह जाती है उसकी पूर्ति वह कनाडा तथा मेक्सिको की सहायता से कर लेता है। ऐसे में अमेरिका पश्चिम एशिया पर अपनी निर्भरता सीमित कर रहा है। साथ ही ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन के बाद भारत भविष्य में सर्वाधिक तेल आयातक देश बनकर उभरेगा। इस स्थिति में सऊदी अरब अमेरिका को किये जाने वाले तेल निर्यात को भारत में स्थानांतरित करना चाहता है। इसी परिप्रेक्ष्य में सऊदी अरब भारत के ऊर्जा क्षेत्र में भारी भरकम निवेश करने पर विचार कर रहा है। इसके अतिरिक्त भारत ईरान से बड़ी मात्रा में तेल आयात करता रहा है लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत ने ईरान से तेल आयात करना लगभग बंद कर दिया है। अतः सऊदी अरब भारत के तेल व्यापार में ईरान को प्रतिस्थापित करना चाहता है। इसके अतिरिक्त भारत तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है तथा जल्दी ही अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रही है, इस कारण भी सऊदी अरब भारत को लंबे समय तक विदेश संबंधों में दरकिनार नहीं कर सकता। भारत का श्रम बाज़ार सस्ता है तथा सऊदी अरब अपने श्रम गहन प्रतिष्ठानों को भारत में स्थानांतरित करने पर भी विचार कर रहा है, जिससे वह अपने देश में बढ़ रहे श्रमिकों के भार को कम करके अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त करने पर भी विचार कर रहा है।
मौजूदा आर्थिक संबंध
भारत-सऊदी अरब के मध्य द्विपक्षीय आर्थिक संबंध विभिन्न प्रयासों के बावजूद सीमित ही बने हैं। पिछले कुछ वर्षों में तेल के दामों में आई गिरावट ने इस व्यापार में और कमी की है। वर्ष 2019 के प्रथम 9 माह के लिये द्विपक्षीय व्यापार 22 बिलियन डॉलर रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 9 प्रतिशत कम है। यह व्यापार अत्यधिक असंतुलित है, एक ओर जहाँ कुल व्यापार में भारतीय निर्यात का हिस्सा केवल 20 प्रतिशत है, वहीं दूसरी ओर इस व्यापार में प्रमुख हिस्सा तेल से संबंधित है। भारत एवं सऊदी अरब दोनों इस बात के पक्षधर हैं कि व्यापार में न सिर्फ विविधता होनी चाहिये बल्कि यह संतुलित भी होना चाहिये, जिससे यह दीर्घकाल तक सतत् बना रहे। संबंधों में उतर-चढ़ाव के कारण भारत में सऊदी अरब का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश कुल विदेशी निवेश का 0.05 प्रतिशत है, इसे भी स्वाभाविक रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है। हालाँकि सऊदी अरब ने अपने विज़न 2030 के रणनीतिक दस्तावेज़ में आठ प्रमुख साझीदारों की सूची में भारत को भी शामिल किया है। साथ ही सऊदी अरामको महाराष्ट्र के पश्चिमी तट पर स्थित रायगढ़ में प्रस्तावित 44 बिलियन डॉलर की रिफाइनरी में प्रमुख साझीदार बनने जा रही है। इसके अतिरिक्त सऊदी अरब भारत के रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों में भी सहयोग प्रदान कर रहा है। सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इसी वर्ष फरवरी माह में भारत यात्रा के दौरान भारत में 100 बिलियन डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जाहिर की। यह निवेश केवल ऊर्जा क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि अन्य क्षेत्रों जैसे कृषि, फिनटेक, कौशल विकास आदि से भी संबंधित होगा।
रणनीतिक साझीदारी परिषद
(Strategic Partnership Council-SPC)
- भारतीय प्रधानमंत्री की हाल की सऊदी अरब यात्रा से एक महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आया है। भारत और सऊदी अरब एक रणनीतिक साझेदारी परिषद (SPC) के गठन पर सहमत हुए हैं। भारत इंग्लैंड, फ्राँस तथा चीन के बाद चौथा ऐसा देश होगा जिसके साथ सऊदी अरब इस प्रकार की परिषद का गठन करने जा रहा है।
- इस परिषद की अध्यक्षता भारतीय प्रधानमंत्री तथा सऊदी क्राउन प्रिंस द्वारा की जाएगी। इस परिषद में दोनों देशों के विदेश मंत्री तथा वित्त मंत्रियों को भी शामिल किया जाएगा।
- यह परिषद दोनों देशों के मध्य विभिन्न निर्णयों को अमलीज़ामा पहनाने में सहायक होगी क्योंकि इसकी अध्यक्षता दोनों देशों के कार्यकारी प्रमुखों द्वारा की जाएगी।
- भारतीय अवसंरचना के विकास, कृषि, स्टार्ट-अप, कौशल विकास, सूचना तकनीकी आदि में दोनों देशों के मध्य बेहतर तालमेल स्थापित करने में इस परिषद की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। साथ ही सऊदी अरब से विस्थापित श्रम गहन उद्योग भारत में मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करेंगे।
संबंधों को लेकर चुनौतियाँ तथा समाधान
- सऊदी अरब की पाकिस्तान नीति ने भारत के साथ सऊदी संबंधों को सदैव प्रभावित किया है। सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है, इसलिये स्वाभाविक रूप से यह पाकिस्तान को अपने अधिक करीब समझता है। साथ ही कश्मीर मुद्दे पर भी सऊदी अरब पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है। किंतु पिछले कुछ समय से सऊदी नीति में परिवर्तन आया है, केंद्र सरकार ने जब जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किया तब सऊदी अरब ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया। साथ ही पाकिस्तान के प्रखर विरोध के बावजूद इस्लामी सहयोग संगठन (Organisation of Islamic Cooperation) में भारत को आमंत्रित करने का समर्थन किया। इस प्रकार यह सऊदी अरब की भारत के प्रति बदलती नीति का द्योतक है।
- भारत का सऊदी अरब के साथ प्रतिकूल व्यापार संतुलन है। जिससे भारत को बड़ा व्यापारिक घाटा होता है। दोनों देश संयुक्त रूप से व्यापार और सहयोग के क्षेत्र में विविधता के लिये प्रयासरत हैं, इसी संबंध में SPC के गठन पर विचार किया जा रहा है।
- पश्चिम एशिया की राजनीति पिछले दशकों में जटिल होती गई है। भारत के इस क्षेत्र में व्यापक हित हैं। भारत इज़राइल का रणनीतिक साझीदार है तथा ईरान के साथ भी मित्रतापूर्ण संबंध रखता है। सऊदी अरब के इन देशों के साथ संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। ऐसे में भारत को इन देशों के मध्य संतुलन स्थापित करना होगा, जो कि चुनौतीपूर्ण कार्य है।
निष्कर्ष
विदित है कि भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं हेतु आयात पर निर्भर है तथा सऊदी अरब भी अपने तेल निर्यात के लिये भारत को एक बाज़ार के रूप में देख रहा है। वर्तमान में भारत-सऊदी संबंध तेल व्यापार से आगे बढ़ रहे हैं तथा दोनों देश आर्थिक और रणनीतिक स्तर पर भी करीब आए हैं। यह समय की मांग है कि दोनों देशों के बीच एक मज़बूत साझेदारी हो जिससे दोनों देश अपने साझा हितों की पूर्ति कर सकें। पाकिस्तान दोनों देशों के मध्य एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है लेकिन वर्तमान नीतियाँ इस ओर इशारा करती हैं कि सऊदी अरब भारत के संबंध में पाकिस्तान से आगे की सोच रहा है। भारत-सऊदी अरब यह महसूस कर रहे हैं कि यदि दोनों देश मिलकर अपनी पूर्ण क्षमता के साथ साझीदारी करें तो यह दोनों देशों के लिये समान रूप से लाभकारी होगा। इससे न सिर्फ भूमि पर बल्कि अरब सागर में भी स्थिरता प्रदान की जा सकेगी।
प्रश्न: भारत-सऊदी अरब संबंध दोनों देशों के लिये समान रूप से लाभकारी हैं। चर्चा कीजिये।