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फार्मास्युटिकल दवाएँ और संबंधित मुद्दे

  • 29 Feb 2020
  • 19 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में फार्मास्युटिकल दवाएँ और उससे संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

भारत फार्मा क्षेत्र में सुरक्षित, दक्ष और गुणवत्तायुक्त दवाओं के बल पर अपनी स्थिति मजबूत करने की राह पर आगे बढ़ रहा है। भारत के 32 अरब डॉलर के जेनेरिक आधारित फार्मा उद्योग के सामने तमाम अवसर हैं। जहाँ एक ओर वैश्विक स्तर पर अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे विकसित देशों में भारत में निर्मित सुरक्षित और गुणवत्तायुक्त दवाओं की मांग बढ़ रही है, तो वहीं दूसरी ओर भारत में स्थानीय स्तर पर ही इन दवाओं की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।

हाल ही में हिमाचल प्रदेश स्थित एक भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनी द्वारा निर्मित खाँसी से संबंधित सीरप कोल्डबेस्ट- पीसी (Coldbest-PC) का सेवन करने से जम्मू के उधमपुर ज़िले में 12 बच्चों की असामयिक मृत्यु हो गई। इस घटना से फार्मास्युटिकल दवाओं के उपयोग को लेकर लोगों के मन में संदेह उत्पन्न हो गया है। इस आलेख के माध्यम से भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा निर्मित दवाओं की गुणवत्ता, विनियमन, चुनौतियों तथा इसके समाधान ढ़ूँढ़ने का प्रयास किया जाएगा।

मुद्दा क्या है?

  • स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, चंडीगढ़ के डॉक्टरों की एक टीम ने अपने शोध में यह पाया कि उधमपुर ज़िले में बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण खाँसी से संबंधित सीरप कोल्डबेस्ट- पीसी का सेवन करना है, जिसमें डाइएथिलीन ग्लाइकाॅल (Diethylene Glycol) की मात्रा निर्धारित मानक से अधिक पाई गई।
  • डाइएथिलीन ग्लाइकाॅल एक एंटी-फ्रीज़िंग एजेंट है, जो मानव शरीर में पक्षाघात, सांस लेने में कठिनाई, किडनी की विफलता और अंततः मृत्यु का कारण बनता है।
  • डाईएथिलीन ग्लाइकाॅल के कारण बच्चों की मृत्यु का यह कोई पहला मामला नहीं है बल्कि इससे पहले वर्ष 1973 में चेन्नई के चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में 14 बच्चों, वर्ष 1986 में मुंबई के जे.जे. हॉस्पिटल में 14 मरीजों तथा वर्ष 1998 में नई दिल्ली में 33 बच्चों की मृत्यु हुई थी।
  • पूर्व में घटित इन तीन घटनाओं के बावजूद भी फार्मास्युटिकल कंपनियों ने डाइएथिलीन ग्लाइकाॅल के संदर्भ में शोध करने की आवश्यकता नहीं समझी जो पूरी तरह से चिकित्सीय लापरवाही को दर्शाता है।

भारतीय फार्मा क्षेत्र

  • भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है। विभिन्न वैक्सीन की वैश्विक मांग में भारतीय दवा क्षेत्र की आपूर्ति 50% से अधिक है।
  • वर्ष 2017 में फार्मास्युटिकल क्षेत्र का मूल्य 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • वित्त वर्ष 2018 में भारत का दवा निर्यात 17.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो वित्त वर्ष 2019 में बढ़कर 19.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
  • जैव-फार्मास्युटिकल्स, जैव-सेवा, जैव-कृषि, जैव-उद्योग और जैव सूचना विज्ञान से युक्त भारत का जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग प्रति वर्ष लगभग 30% की औसत वृद्धि दर के साथ वर्ष 2025 तक 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँचने की उम्मीद है।

समस्याएँ और चुनौतियाँ

  • शोध की कमी
    • भारतीय फार्मा उद्योग में अनुसंधान घटकों और वास्तविक समय में अच्छी विनिर्माण प्रथाओं का अभाव है।
    • भारतीय फार्मा कंपनियों द्वारा अनुसंधान और विकास में निवेश वित्त वर्ष 2018 में 8.5 प्रतिशत हो गया है जो वित्त वर्ष 2012 में 5.3 प्रतिशत के सापेक्ष अधिक है, लेकिन यह अमेरिकी फार्मा कंपनियों की तुलना में अभी भी कम है क्योंकि अमेरिकी फार्मा कंपनियाँ अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में 15–20% तक निवेश करते हैं।
    • चीन अनुसंधान और विकास में निवेश, वैज्ञानिक प्रकाशनों और पेटेंट के मामले में तीव्र गति से वृद्धि कर रहा है। चीन को निम्न-स्तर की जेनेरिक दवाओं के बड़े पैमाने पर उत्पादन और सक्रिय फार्मास्युटिकल संघटक (Active Pharmaceutical Ingredients-APIs) के 'वैश्विक कारखाने' के रूप में जाना जाता है। भारत बड़े स्तर पर चीन से सक्रिय फार्मास्युटिकल संघटक को आयात करता है।
  • नीति समर्थन का अभाव
    • भारत में सस्ती दरों पर जेनेरिक दवाओं के निर्माण तथा कच्चे माल की उपलब्धता में सुधार करने हेतु देश के सभी राज्यों में छोटे पैमाने पर कच्चे माल की विनिर्माण इकाइयों / इनक्यूबेटरों की स्थापना के लिये अनुकूल सरकारी नीति का अभाव है।
    • सरकार के पास उद्योग तथा फार्मासिस्ट समुदाय को उद्यमी बनाने और इनक्यूबेटर्स की स्थापना को बढ़ावा देने के लिये अवसंरचना का अभाव है।
    • स्वदेशी रूप से उत्पादित कच्चे माल की अच्छी गुणवत्ता का अभाव
    • छोटी इकाइयों से उत्पादित कच्चे माल की गुणवत्ता विनिर्देशों का पता लगाने के लिये इसे राज्य की परीक्षण प्रयोगशाला में ठीक से सत्यापित किया जाना चाहिये।
    • कच्चे माल के गुणवत्ता विनिर्देशन के कार्य को गति देने के लिये हर राज्य में एक कार्यात्मक परीक्षण प्रयोगशाला की आवश्यकता है।
  • कुशल श्रम का अभाव
    • फार्मास्युटिकल कंपनियों में कुशल श्रमशक्ति की कमी है।
  • चीन पर निर्भरता
    • जेनेरिक दवाओं के उत्पादन के लिये कच्चे माल की आपूर्ति हेतु भारतीय फार्मा उद्योग चीन पर निर्भर है।
    • चीनी सक्रिय फार्मास्युटिकल संघटक के आयात पर भारत की निर्भरता कीमतों के प्रति संवेदनशील है।
  • नैदानिक परीक्षणों में अनैतिकता
    • भ्रष्टाचार, परीक्षण की अल्प लागत, बेतरतीब अनुपालन और दवा कंपनियों व चिकित्सकों की मिलीभगत ने भारत में अनैतिक दवा परीक्षणों को अवसर दिया है। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण पर संसदीय समिति ने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization-CDSCO) को सौंपी रिपोर्ट में कहा कि ऐसे पर्याप्त साक्ष्य हैं कि दवा निर्माताओं, CDSCO के कुछ कर्मियों और कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों के बीच अनैतिक मिलीभगत है।
    • समिति ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि CDSCO ने बेतरतीब ढंग से चयनित 42 दवा नमूनों में से 33 को भारतीय मरीज़ों पर किसी नैदानिक परीक्षण के बिना ही इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी।

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन

  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • देश भर में इसके छह ज़ोनल कार्यालय, चार सब-ज़ोनल कार्यालय, तेरह पोर्ट कार्यालय और सात प्रयोगशालाएँ हैं।
  • विज़न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना।
  • मिशन: दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन और चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता और गुणवत्ता बढ़ाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा तय करना।
  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 (The Drugs & Cosmetics Act,1940 and rules 1945) के अंतर्गत CDSCO दवाओं के अनुमोदन, नैदानिक परीक्षणों के संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करके औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के प्रवर्तन में एकरूपता लाने के लिये उत्तरदायी है।
  • सरकारी मूल्य नीतियों के कारण कम मुनाफा
    • भारतीय फार्मा कंपनियों को उचित लाभ नहीं मिल रहा है, उनका मुनाफा मूल रूप से अमेरिका जैसे अन्य देशों में उनके समकक्षों की तुलना में बहुत कम है।
    • उनकी आय पर्याप्त नहीं है कि वे अनुसंधान एवं विकास पर पैसा लगा सकें।
    • कंपनियों का मानना ​​है कि सरकार द्वारा किये जा रहे सुधारों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक दवाओं की कीमतों को कम कर दिया गया है। ऐसा सरकार द्वारा जनता को कम मूल्य पर दवाएँ उपलब्ध कराने के लिये किया गया है। इसलिये सरकार द्वारा फार्मा कंपनियों को प्रोत्साहन देने के लिये अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिये।

विनियमन की आवश्यकता क्यों?

  • इस क्षेत्र में विनियमन इसलिये बेहद आवश्यक है कि वैश्विक स्तर पर निरंतर परिवर्तन आ रहे हैं। विशेषकर बेहतर विनिर्माण के तरीकों (Good Manufacturing Practices-GMP), बेहतर नैदानिक विधियों (Good Clinical Practices-GCP) और प्रयोगशाला के बेहतर उपयोग (Good Laboratory Practices-GLP) के संदर्भ में। इसके अलावा देश में सस्ते मूल्य पर गुणवत्तायुक्त दवाओं की सुचारु आपूर्ति सुनिश्चित करने का उत्तरदायित्व भी नियामक निकायों के ऊपर ही है।
  • वर्ष 1937 में जब संयुक्त राज्य अमेरिका को डाईएथिलीन ग्लाइकाॅल की विषाक्तता का सामना करना पड़ा तब सभी दवा निरीक्षकों को डाईएथिलीन ग्लाइकाॅल के स्रोत को जब्त करने का आदेश दिया गया। भारत में शासन तथा प्रशासन के स्तर पर इस प्रकार की कार्ययोजना का अभाव दिखता है।
  • भारत ने बाज़ार से खतरनाक दवाओं को वापस लेने पर कोई बाध्यकारी दिशा-निर्देश या नियम अधिसूचित नहीं किये हैं।
  • स्वास्थ्य पर संसदीय स्थायी समिति की 59वीं रिपोर्ट के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन (अपने राष्ट्रीय नियामक मूल्यांकन में) ने भी भारत में एक राष्ट्रीय रीकॉल फ्रेमवर्क की कमी पर भारत के औषधि नियंत्रक को चेतावनी दी थी। वर्ष 2012 में दिशा-निर्देशों का एक नया प्रारूप तैयार किया गया था, लेकिन इसे कभी भी कानून में अधिसूचित नहीं किया गया।
  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन तथा राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण जैसी नियामक संस्थाओं का प्रभावी रूप से कार्य न करना।

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण

(National Pharmaceutical Pricing Authority-NPPA)

  • यह एक स्वायत्त निकाय है तथा देश के लिये स्वास्थ्य संबंधी आवश्यक दवाओं (National List of Essential Medicines-NLEM) एवं उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करता है।

NPPA के कार्य

  • विनियंत्रित थोक औषधियों व फॉर्मूलों का मूल्य निर्धारित व संशोधित करना।
  • निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप औषधियों के समावेशन व बहिर्वेशन के माध्यम से समय-समय पर मूल्य नियंत्रण सूची को अद्यतन करना।
  • दवा कंपनियों के उत्पादन, आयात-निर्यात और बाज़ार हिस्सेदारी से जुड़े डेटा का रखरखाव।
  • दवाओं के मूल्य निर्धारण से संबंधित मुद्दों पर संसद को सूचनाएँ प्रेषित करने के साथ-साथ दवाओं की उपलब्धता का अनुपालन व निगरानी करना।

सुझाव

  • अनुसंधान योजनाएँ
    • उद्योगों द्वारा पहचान किये गए शोधकर्त्ता / संकाय के साथ सीधे संपर्क के माध्यम से शोध कार्य प्रारंभ किया जाना चाहिये।
    • उद्योगों के बेहतर संचालन के लिये शोध कार्य करने वाले छात्रों को प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जाना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
    • उद्योग क्षेत्र और सरकार को नए फार्मूलों, दवाओं और उपचारों का आविष्कार, अनुसंधान और विकास करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संगठनों के साथ सहयोग करना चाहिये।
  • आंतरिक औद्योगिक प्रशिक्षण
    • फार्मा उद्योग को प्रशिक्षुओं को उस क्षेत्र की आवश्यकता के अनुसार प्रशिक्षित करना चाहिये।
    • उपयोगकर्त्ता के अनुकूल नीतियों को अपनाने से लघु उद्योग स्थापित करने में मदद मिलेगी और इस क्षेत्र में छात्रों और मध्यम वर्ग के व्यापार मालिकों को प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे फार्मासिस्टों के लिये बेरोजगारी की समस्या को दूर करने और राष्ट्र में उद्यमिता को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।
  • विशेष फार्मा अनुसंधान केंद्रों की स्थापना
    • बदलते समय के साथ, छात्रों को अपने आसपास के अनुसंधान/प्रौद्योगिकी के बारे में इंटरनेट के माध्यम से जानकारी मिल रही है।
    • भारतीय शैक्षणिक संस्थान छात्रों के रचनात्मक विचारों से भरे हैं। भारतीय फार्मा उद्योग भविष्य में प्रगति के लिये इन रचनात्मक विचारों को अपना सकता है।
    • फार्मेसी छात्रों को डेटा व्याख्या और डेटा माइनिंग का अच्छा ज्ञान होने के साथ उपकरणों के संचालन में अत्यधिक जानकारी है। अतः इनका सहयोग उद्योगों में अनुसंधान के लिये किया अ सकता है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुछ शर्तों के अधीन चिकित्सा उपकरणों के विनिर्माण हेतु 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के लिये फार्मास्युटिकल क्षेत्र में मौजूदा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति में संशोधन संबंधी अपनी मंजूरी दे दी है।
  • औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, ड्रग्स और फार्मास्युटिकल्स क्षेत्र ने अप्रैल 2000 से मार्च 2019 के बीच 15.98 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है।
  • मार्च 2018 में ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने सहमति, अनुमोदन और अन्य जानकारी प्रदान करने के लिये एकल-खिड़की सुविधा शुरू करने की अपनी योजना की घोषणा की। इस कदम का उद्देश्य मेक इन इंडिया पहल को प्रोत्साहन देना है।
  • भारत सरकार ने दवाओं के निर्माण में भारत को वैश्विक नेता बनाने के उद्देश्य से 'फार्मा विजन 2020' का अनावरण किया। निवेश को बढ़ावा देने के लिये नई सुविधाओं के लिये अनुमोदन का समय कम कर दिया गया है।

आगे की राह

  • दवा नियामक प्रणाली को युक्तिसंगत बनाने, औषध क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने तथा संबंधित क्षेत्र के साथ सहक्रियता निर्माण व समान दृष्टिकोण विकसित करने जैसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के प्रावधानों को लागू किया जाना चाहिये।
  • मानकों का उल्लंघन करने वाली फार्मास्युटिकल कंपनियों पर अर्थदंड लगाने के साथ ही इनका लाइसेंस रद्द कर देना चाहिये।
  • विनियमन कानूनों को सुदृढ़ कर विनियामक निकायों को प्रभावी बनाना होगा।

प्रश्न: फार्मास्युटिकल उद्योग के विकास में आने वाली चुनौतियों का उल्लेख करते हुए समाधान के उपाय सुझाएँ।

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