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सामाजिक न्याय

भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानता

  • 14 Dec 2021
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 13/12/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Rags To Rags” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में आर्थिक असमानता और कोविड-19 महामारी के कारण इससे संबंधित समस्याओं में और वृद्धि के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

निस्संदेह भारत एक अत्यधिक विषमतापूर्ण अर्थव्यवस्था है। भारत का घरेलू सर्वेक्षण उपभोग, आय और धन को व्यापक रूप से कम करके दिखाने की प्रवृत्ति रखते हैं।

इसके साथ ही इस अनुमान पर संदेह कर सकना कठिन है कि कोविड-19 ने विद्यमान दोषों को और गहरा कर दिया है, जिससे गहन रूप से व्याप्त असमानताओं में और वृद्धि हो रही है।

इस अवधि के दौरान अत्यंत अमीर लोगों की संपत्ति में हुई वृद्धि की तुलना पैदल ही अपने गाँव लौटने को विवश उन लाखों प्रवासी श्रमिकों की विपदा के साथ करें तो देश में आर्थिक विषमताओं की चरम स्थिति स्पष्ट नज़र आ जाती है।

इस संदर्भ में, विश्व असमानता रिपोर्ट (2022) का नवीनतम संस्करण एक उपयोगी अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है और यह दर्शाता है कि आय की एकाग्रता पिरामिड के शीर्ष पर हो रही है।

भारत में सामाजिक-आर्थिक विषमता:

  • असमानता के क्षेत्र: सामान्यतः समग्र रूप से भारत में असमानता की चर्चा उपभोग, आय और धन के मामले में असमानताओं के इर्द-गिर्द केंद्रित होने की प्रवृत्ति रखती है।
    • किंतु देश में ‘अवसरों’ के मामलों में भी उच्च स्तर की असमानता विद्यमान है।
  • अवसरों में असमानता को प्रभावित करने वाले कारक: किसी व्यक्ति की उत्पत्ति का वर्ग, उसके जन्म का घर, उसके माता-पिता कौन हैं- ये सभी विषय उसकी शैक्षिक उपलब्धि, रोज़गार और आय की संभावनाओं पर उल्लेखनीय प्रभाव डालते हैं और इसके परिणामस्वरूप उसके गंतव्य/उपलब्धि का वर्ग तय करते हैं।
    • पीढ़ी-दर-पीढ़ी सामाजिक गतिशीलता के निम्न स्तर पर स्थित कमज़ोर/वंचित परिवारों में पैदा होने वाले बच्चों के लिये आय की सीढ़ी पर आगे बढ़ने की संभावना कम होती है।

विश्व असमानता रिपोर्ट के भारत संबंधित विशिष्ट निष्कर्ष:

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत अब दुनिया के सर्वाधिक विषमतापूर्ण देशों में से एक है।
  • भारत में शीर्ष 10% आबादी राष्ट्रीय आय का 57% अर्जित करती है।
  • शीर्ष 10% के अंदर शीर्षस्थ 1% अभिजात वर्ग 22% आय अर्जित करता है।
  • इसकी तुलना में राष्ट्रीय आय में निचले स्तर के 50% की हिस्सेदारी घटकर मात्र 13% रह गई है।
  • भारत में महिला श्रमिकों की आय में हिस्सेदारी 18% है जो एशिया में उनके औसत से पर्याप्त कम है [21% चीन को छोड़कर]।
  • कोविड-19 महामारी का प्रभाव: कोविड ने शिक्षा में व्याप्त असमानता की स्थिति को और बदतर किया है एवं श्रम बाज़ार पर नकारात्मक दीर्घकालिक प्रभाव डाला है और आय असमानता में वृद्धि की है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक गतिशीलता के अवरुद्ध होने की संभावना है।
  • शिक्षा पर प्रभाव: ASER 2021 ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि लंबे समय तक स्कूलों के बंद रहने और शिक्षा के ऑनलाइन मोड की ओर संक्रमण ने गरीब और अमीर परिवारों के बच्चों के बीच ’लर्निंग’ अंतराल में वृद्धि की है।
    • निम्न-आय परिवारों के छोटे बच्चे स्मार्टफोन, टैबलेट, इंटरनेट जैसे लर्निंग करने के तकनीकी माध्यमों से अधिक वंचित हुए।
    • इसके अलावा स्मार्टफोन उपलब्धता वाले परिवारों में भी एक-चौथाई से अधिक बच्चे इसके उपयोग से वंचित रहे।
  • रोज़गार पर प्रभाव: महामारी की शुरुआत से ही भारत में श्रम बल की भागीदारी में गिरावट आई है, विशेष रूप से महिला श्रमबल के बीच यह गिरावट दर्ज की गई।
    • इसी अवधि में बेरोज़गारी दर 7.5% से बढ़कर 8.6% हो गई, जिसका अर्थ यह है कि नौकरी की तलाश करने वालों लोगों में से नौकरी पाने में असमर्थ रहे (यहाँ तक कि संभवतः कम वेतन पर भी) लोगों की संख्या में वृद्धि हुई।
    • जिन लोगों के पास नौकरी है, उनमें से भी अधिकाधिक अनियमित/आकस्मिक वेतनभोगी श्रमिक के रूप में नियोजित किये जा रहे हैं।
    • कार्यबल के बढ़ते ‘कैज़ुअलाइज़ेशन’ (casualization) या ‘कॉन्ट्रैक्टुअलाइज़ेशन’/संविदाकरण (contractualisation) का अर्थ है अच्छे भुगतान वाली नौकरियों का अभाव।

आगे की राह

  • नॉर्डिक इकोनॉमिक मॉडल: धन के वर्तमान पुनर्वितरण को अधिक न्यायसंगत बनाने के लिये वर्तमान नव-उदारवादी मॉडल को 'नॉर्डिक इकोनॉमिक मॉडल' (Nordic Economic Model) द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
    • इस मॉडल में सभी के लिये प्रभावी कल्याणकारी सुरक्षा, भ्रष्टाचार मुक्त शासन, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा का मौलिक अधिकार, अमीरों के लिये उच्च कराधान आदि शामिल हैं।
  • राजनीतिक सशक्तीकरण: यह निर्धनता उन्मूलन का पहला प्रमुख घटक है। राजनीतिक सक्षमता वाले लोग बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा की माँग कर सकेंगे और इसे प्राप्त कर सकेंगे।
    • यह समाज में व्याप्त संरचनात्मक असमानता और सांप्रदायिक विभाजन को भी मिटाएगा।
  • धन का पुनर्वितरण: विश्व असमानता रिपोर्ट, 2022 अरबपतियों पर एक उपयुक्त/ प्रगतिशील संपत्ति कर (Progressive Wealth Tax) अधिरोपित करने का सुझाव देती है।
    • बड़ी मात्रा में धन संकेंद्रण को देखते हुए प्रगतिशील कर सरकारों के लिये उल्लेखनीय मात्रा में राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं।
    • 1 मिलियन डॉलर से अधिक की संपत्ति के लिये 1.2% की वैश्विक प्रभावी संपत्ति कर दर वैश्विक आय का 2.1% राजस्व उत्पन्न कर सकती है।
  • बुनियादी आवश्यकताओं की पहुँच बढ़ाना: भारत में बढ़ती असमानता को देखते हुए स्पष्ट सार्वजनिक नीतियाँ लानी चाहिये। जनसंख्या के बीच स्वास्थ्य और शिक्षा का अधिकाधिक व्यापक प्रसार करने की आवश्यकता है।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा लाभ, रोज़गार गारंटी योजनाओं जैसी सार्वजनिक वित्तपोषित उच्च गुणवत्तायुक्त सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित कर असमानता को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  • रोज़गार सृजन: कपड़ा, वस्त्र, ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता सामान जैसे विनिर्माण क्षेत्रों के विकास में व्याप्त बाधाएँ बढ़ती असमानताओं का एक महत्त्वपूर्ण कारण हैं।
    • श्रम-प्रधान विनिर्माण क्षेत्र में उन लाखों लोगों को समाहित करने की क्षमता है, जो खेती छोड़ रहे हैं जबकि सेवा क्षेत्र शहरी मध्यम वर्ग को लाभान्वित कर सकता है।
  • वेतन असमानताओं को कम करना: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने अनुशंसा की है कि एक न्यूनतम वेतन सीमा इस तरह से निर्धारित की जानी चाहिये जो व्यापक आर्थिक कारकों के साथ श्रमिकों और उनके परिवारों की आवश्यकताओं को संतुलित करे।
  • नागरिक समाज को बढ़ावा देना: पारंपरिक रूप से उत्पीड़ित और दमित समूहों को अधिकाधिक अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करना जहाँ इन समूहों के भीतर यूनियन और संघ जैसे नागरिक समाज समूहों को सक्षम करना शामिल है।
    • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उद्यमी बनने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये; स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं का वित्तपोषण बढ़ाकर इसकी पहुँच को व्यापक करने की आवश्यकता है।
  • लैंगिक समानता को आत्मसात करना: अर्थव्यवस्था में महिलाओं के पूर्ण समावेशन हेतु बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है। इसमें श्रम बाज़ार, संपत्ति के अधिकार और लक्षित ऋण एवं निवेश तक पहुँच प्रदान करना शामिल है।
    • अधिकाधिक महिलाओं को उद्यमी बनने के लिये प्रोत्साहित करने से दीर्घकालिक समाधान प्राप्त होगा।
    • रोज़गार सृजन और स्वास्थ्य एवं शिक्षा में निवेश को बढ़ावा देकर महिलाओं में उद्यमिता की वृद्धि भारत की अर्थव्यवस्था और समाज को रूपांतरित कर सकती है।

निष्कर्ष

  • यह स्पष्ट है कि कोविड-19 महामारी ने समाज के कमज़ोर वर्ग को विशेष रूप से रोज़गार और शिक्षा के मामले में अधिक गंभीर रूप से प्रभावित किया है। सामाजिक सुरक्षा प्रावधानों के साथ-साथ इन वर्गों को शिक्षित और नियोजित करने के लिये सक्षम परिस्थितियों को सुनिश्चित करने हेतु उन्हें श्रम बाज़ार में एकसमान अवसर प्रदान करने हेतु ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा अत्यधिक अमीर लोगों पर धन कर के अधिरोपण और एक सुदृढ़ पुनर्वितरण व्यवस्था से बढ़ती असमानता की मौजूदा प्रवृत्ति को अगर व्युत्क्रमित नहीं किया जा सकता, तो इस पर रोक तो अवश्य लगाया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानताओं से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिये ‘नॉर्डिक इकोनॉमिक मॉडल’ को अपनाना विवेकपूर्ण होगा। चर्चा कीजिये।

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